पड़ोसी देश श्रीलंका के दिवालिया होने के बाद भारत में सरकारों की ओर से मुफ्त सुविधाएं देने (रेवड़ी कल्चर) को लेकर देश में गंभीर बहस छिड़ी हुई है. इस बीच राजस्थान सरकार पर भी इसे लेकर गंभीर आरोप लगने लगे हैं कि उसने पांच साल में जितना कर्ज लेना था, उतना ही तीन सालों में ही लेकर राज्य पर 200 फीसदी कर्ज को बढ़ा दिया है. अगले डेढ़ साल चुनावी साल हैं और रेवड़ियां बटनी तय है. ऐसे में कर्ज की यह रकम कई गुना और भी बढ़ने की आशंका जताई जा रही है. इस बीच विपक्षी भाजपा ने कांग्रेस की गहलोत सरकार पर निशाना साधना शुरू कर दिया है.
दरअसल, साल 2018 के विधानसभा चुनावों में जब कांग्रेस ने किसानों की कर्ज माफ़ी का वादा किया था तभी से यह तय था कि सरकार को इसके लिए भारी भरकम कर्ज लेना पडेगा. हुआ भी यही, किसान कर्जमाफी के साथ-साथ इन तीन सालों में विकास योजनाओं की अशोक गहलोत सरकार ने जमकर ऐलान किया. योजनाएं तो बनीं, लेकिन अब तक उसके लिए जरूरी धन नहीं मिल पा रहा है. ऊपर से रिजर्व बेंक की राजस्थान को भी कर्ज देते वक्त सावधानियां बरतने के बयान के बाद सरकार की मुश्किलें बढ़ गई है. क्योंकि, प्रदेश का कर्ज बढ़कर 4.77 लाख करोड़ रुपए पहुंच गया है. इसमें 82 हजार करोड़ रु. का गारंटीड लोन भी शामिल है. प्रदेश पर कुल कर्ज 5.59 लाख करोड़ रुपए पहुंच गया है. साल 2019 तक बजट में शामिल कर्ज 3.39 लाख करोड़ रु. था. यानी की सरकार साढ़े तीन साल में 1.91 लाख करोड़ रु. का कर्ज (गारंटीड लोन शामिल नहीं) ले चुकी है. आंकड़े बता रहे हैं कि राजस्थान के हर नागरिक पर साल 2019 में प्रति व्यक्ति कर्ज 38,782 रु. था, जो 2022-23 के बजट में बढ़कर 70,848 रु. हो गया है.
केंद्र के आर्थिक प्रबंधन पर तोहमत लगाने से पहले राज्य सरकार रिजर्व बैंक के उस नोटिस को याद करें, जिसमें राज्य सरकार को आर्थिक आपातकाल की तरफ जाने की बात कही गई है. सारा कर्जा मिलाकर करीब पौने दो लाख करोड़ के पार पहुंच गया है. उन्होंने कहा कि जो कुल कर्ज की लिमिट होती है, उसके लिए तय मापदंडों को भी वह पार कर रही है.
दरअसल, राजस्थान में अगले साल विधानसभा चुनाव है. लिहाजा, सरकार ने कांग्रेस नेताओं को राजनीतिक नियुक्तियां देने के साथ-साथ लोक लुभावनी योजनाओं का रेवड़ी कल्चर चला रखा है. अध्यक्ष के साथ-साथ बोर्ड और निगमों के उपाध्यक्षों को 70 हज़ार रूपये प्रतिमाह तक का वेतन और भत्ते देने का एलान हो गया है. ऊपर से बजट में 50 यूनिट तक फ्री बिजली का ऐलान से 6 हजार करोड़ का भार आ गया. यही नहीं, किसानों के सहकारी बैंकों के कर्जमाफी के नाम पर 7 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च हो गया और अब सूबे की 1.33 करोड़ महिलाओं को फ्री मोबाइल बांटने की योजना के बजट को भी ढाई हजार करोड़ से बढ़ाकर 12,500 करोड़ रु. किया जा रहा है. जबकि, स्टेट टोल फ्री कर दिए गए हैं. इससे 300 करोड़ रुपए से ज्यादा का राजस्व का नुकसान हो रहा है. कर्ज का यह मर्ज कितना चिंताजनक है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि ब्याज के रूप में सरकार हर साल 28 हजार करोड़ रु. से ज्यादा खर्च कर रही है. जबकि साल 2019 में राजस्थान पर चढ़ा कर्ज करीब 3:30 लाख करोड़ ही था.
Source : Lal Singh Fauzdar