राजस्थान हाईकोर्ट की जोधपुर पीठ ने एक कैदी को 15 दिन की पैरोल पर रिहा करने का आदेश दिया था, जिसका आधार कैदी ने यह दिया था की उसे संतान प्राप्ति के लिए पत्नी से मिलना है ताकि वह गर्भ धारण कर सके. उनकी पत्नी ने अपने संतान के अधिकार पर जोर देकर अपने पति की रिहाई के लिए हाई कोर्ट में अर्जी लगाई थी. कोर्ट ने ऋग्वेद समेत हिंदू धर्मग्रंथों का भी हवाला दिया है, इसने कैदी को 15 दिन की पैरोल देने के लिए यहूदी, ईसाई धर्म और इस्लाम के सिद्धांतों का भी उल्लेख किया. अदालत ने आगे कहा कि 16 आवश्यक संस्कारों में गर्भ धारण करना भी शामिल है और महिला का अधिकार है. राजस्थान हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है. अगले हफ्ते होगी इस पर सुनवाई होगी.
हाईकोर्ट से राहत पाने वाला कैदी राजस्थान की भीलवाड़ा अदालत द्वारा सुनाई गई उम्रकैद की सजा काट रहा है. अजमेर जेल में बंद है. इससे पहले 2021 में उसे 20 दिन की पैरोल मिली थी. अदालत को बताया गया की उसने पैरोल अवधि के दौरान अच्छा व्यवहार किया. साथ ही खत्म होने पर उसने सरेंडर कर दिया. इसी आधार पर दूसरी बार पैरोल मिली, जिसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है.
क्या था पूरा मामला
राजस्थान की जोधपुर हाई कोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा काट रहे एक कैदी को केवल इसलिए 15 दिन की पैरौल पर घर जाने की इजाजत दे दी कि वो अपनी पत्नी को गर्भवती कर उसे माँ बना सके. कैदी की पत्नी ने इसके लिए संतान के अधिकार का हवाला देते हुए हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी.
Source : Avneesh Chaudhary