राजस्थान (Rajasthan) का सियासी ड्रामा लगातार बढ़ता जा रहा है. मामले की आज सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) और हाईकोर्ट (High Court) में सुनवाई हो रही है. इसी बीच कांग्रेस और बीजेपी के अलावा अब इस शह-मात के खेल में अब बीएसपी की भी एंट्री हो गई है. बीएसपी (BSP) ने अपने सभी 6 विधायकों को व्हिप जारी किया और विधानसभा में कांग्रेस के किसी भी प्रस्ताव के खिलाफ वोट करने को फरमान दिया है.
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बहुजन समाजवादी पार्टी ने फैसला किया कि राज्य में उसके 6 विधायकों के कांग्रेस में विलय करने और उसे विधानसभा अध्यक्ष की मंजूरी दिए जाने के निर्णय के खिलाफ वह सोमवार को राजस्थान हाई कोर्ट में याचिका दाखिल करेगी. इसी मुद्दे पर बीजेपी विधायक मदन दिलावर ने भी राजस्थान हाई कोर्ट में याचिका लगा रखी है. बीजेपी विधायक की याचिका पर एकल न्यायाधीश की बेंच द्वारा सोमवार को हाई कोर्ट में सुनवाई की जाएगी.
बीएसपी के महासचिव सतीश मिश्रा ने रविवार को राजस्थान में अपने सभी 6 विधायकों को व्हिप जारी कर कांग्रेस सरकार की ओर से लाए जाने वाले विश्वास मत के खिलाफ वोट करने को कहा है. बीएसपी की ओर से जारी व्हिप में सभी विधायकों को निर्देश दिया गया है कि राजस्थान विधानसभा में कांग्रेस की ओर से लाए जाने वाले विश्वास मत या किसी भी अन्य प्रस्ताव की कार्यवाही के दौरान वे सरकार के खिलाफ वोट करें. व्हिप में कहा गया है कि अगर कोई भी विधायक पार्टी व्हिप के खिलाफ जाकर वोट करता है तो उनके खिलाफ कार्यवाही की जाए और उनकी विधानसभा सदस्यता रद्द की जाए.
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दूसरी तरफ बीएसपी खेमे से विधायक भी साफ कर चुके हैं कि वह मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का ही साथ देंगे. बीएसपी की हिदासत पर राजेन्द्र गुढ़ा ने कहा कि हमारा कांग्रेस में विलय हो चुका है. मुख्यमंत्री गहलोत के प्रति हमने विश्वास जताया है. हम किसी भी तरह के व्हिप मानने को तैयार नहीं. दरअसल बसपा विधायक इस बात को लेकर भी आश्वस्त हैं कि उनके खिलाफ दलबदल कानून के तहत कोई कार्रवाई नहीं हो सकती है. अगर सभी छह विधायकों ने पार्टी व्हिप का उल्लंघन भी किया को उन्हें सिर्फ बसपा से निष्कासित किया जा सकता है लेकिन उनकी विधायकी बरकरार रहेगी.
क्या है दरबदल कानून
भारतीय राजनीति में विधायकों- सांसदों की खरीद-फरोख्त की खबरें और आरोप लगते रहते हैं. वहीं अपने फायदे के हिसाब से विधायक और सांसद पार्टी बदलते रहे हैं. यह राजनीति में भ्रष्टाचार की जड़ बन गया. इसको रोकने के लिए दल-बदल कानून 1985 में लाया गया. संविधान में 10वीं अनुसूची जोड़ी गई. ये संविधान में 52वें संशोधन था. नियम के मुताबिक यदि कोई सांसद या विधायक अपनी इच्छा से अपनी पार्टी को छोड़ देता है तो सदन से उसकी सदस्यता चली जाएगी. पार्टी के व्हिप का उल्लंघन करते हुए कोई सांसद या विधायक सदन में खिलाफ वोट करता है. सचिन पायलट को सीएम गहलोत इसी के दायरे में ला सकते हैं.
Source : News Nation Bureau