आर्थिक आधार पर सामान्य वर्ग को 10 प्रतिशत आरक्षण की मोदी सरकार की घोषणा से देशभर में सियासत गरमा रही है. मोदी के मास्टर स्ट्रोक को लेकर नेता इसको चुनावी स्टंट बता रहे हैं मगर विरोध से बच रहे है. राजस्थान में 10 प्रतिशत सवर्ण आरक्षण को लेकर जमकर बयानबाजी हो रही है. वहीं बीजेपी के इस फैसले को ऐतिहासिक करार दे रहे है. बीजेपी नेताओं का कहना है कि लंबे समय से गरीब सवर्ण वर्ग आरक्षण की मांग कर रहा था. पीएम मोदी ने एक साहसिक कदम उठाया है जो आगे देश के विकास की गति को तेज करेगा. ऐसे में आइए जानते है राजस्थान में सवर्ण आरक्षण का इतिहास.
सवर्ण इतिहास की बात करें तो विधानसभा ने दो बार सवर्ण आरक्षण बिल पास किया. दो बार कमेटियां बनाई गई लेकिन हर बार ये अटक गया. प्रदेश में आर्थिक आधार पर सवर्णों को 14 फीसदी आरक्षण के राजस्थान विधानसभा में 2008 में पहली बार बिल पास किया गया. उसके आधार पर सवर्ण आरक्षण 2008 में तत्कालीन बीजेपी सरकार ने लागू किया, लेकिन वो भी सिर्फ पांच दिन के लिए लागू हो सका.
इसके बाद यह आरक्षण का मामला पहली बार वर्ष 2008 मे ये आरक्षण लागू हुआ लेकिन कोर्ट में फैसला जाने के बाद ये सिर्फ पांच दिन ही चल सका. हालांकि इसके बाद वर्ष 2012 आर्थिक आधार पर आरक्षण के लिए कमेटी बनी.
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साल 2015 में आर्थिक आधार पर 14 प्रतिशत आरक्षण का बिल दोबारा विधानसभा पेश किया गया लेकिन सरकारें इसे लागू नहीं करा सकी. सवर्ण आरक्षण पर प्रदेश में पिछले 10 साल में दो कमेटियां बन चुकी है. कमेटियों की सिफारिशों को लागू कराने में राज्य सरकारें सफल नहीं हो सकी है.
गुर्जर सहित पांच जातियों को पांच प्रतिशत अलग से आरक्षण का मामला तीन सरकारों में बार बार कोर्ट में अटका. कोर्ट हर बार सरकार को दिशा निर्देश देता रहा कि 50 फीसदी सीमा से अधिक आरक्षण नहीं दिया जा सकता. इसी कारण सवर्णों को अलग से 14 फीसदी आरक्षण का मामला भी हर बार अटकाने से सरकारें ठंडे बस्ते में डालती रही.
Source : Lal singh fauzdar