सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान सरकार को आदेश दिया है कि वह 48 घंटे में अरावली पहाड़ियों के 115.34 हेक्टेयर क्षेत्र में चल रहे अवैध खनन पर रोक लगाए, सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार के लिए कहा कि उसने इस मुद्दे को ‘बहुत हल्के’ में लिया, जिसके कारण उसे अरावली पहाड़ियों में अवैध खनन पर आदेश पारित करना पड़ा. इस मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस मदन बी लोकुर और जस्टिस दीपक गुप्ता की बेंच ने केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति की उस रिपोर्ट का भी जिक्र किया, जिसमें मुताबिक अवैध खनन के चलते राजस्थान के अरावली क्षेत्र में 31 पहाड़ियों के खत्म होने की बात कही गई है. इसके अलावा कोर्ट ने यह भी कहा कि दिल्ली में प्रदूषण बढ़ने का एक कारण राजस्थान में पहाड़ियों का गायब होना भी हो सकता है. अब शुक्रवार को खनन विभाग हलफनामा पेश करेगा. सोमवार को इस मामले में सुनवाई होगी.
पिछले दो-तीन वर्षों से राजस्थान में खनन को लेकर बार बार अड़चनें आती रही हैं. कभी विवेकाधीन कोटा समाप्त कर खनन आवंटन के 54000 आवेदनों को निरस्त करना तो कभी खनन महाघूसकांड का सामने आ जाना. इसके बाद पर्यावरण मंजूरी के मामले में प्रदेश में खनन बंद रहा, जैसे तैसे सुप्रीम कोर्ट से मंजूरी मिली तो फिर 15 नवंबर से प्रदेश में बजरी खनन को बंद कर दिया गया। अब एक बार फिर खनन क्षेत्र पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं।
दरअसल प्रदेश का अधिकांश हिस्सा अरावली पर्वतमाला से जुड़ा हुआ है. करीब 19 जिलों में अरावली पर्वतमाला निकलती है. ऐसे में इन जिलों में 15 हजार से ज्यादा खदानों को बंद किया जा सकता है. अभी तक अरावली को लेकर रिचर्ड मरफी का सिद्धांत लागू था. इसके मुताबिक सौ मीटर से ऊंची पहाड़ी को अरावली हिल माना गया और वहां खनन को निसिद्ध कर दिया गया था, लेकिन इस मामले में विवाद उपजने के बाद फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया ने अरावली की नए सिरे से व्याख्या की. फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया के मुताबिक, जिस पहाड़ का झुकाव 3 डिग्री तक है उसे अरावली माना गया. इससे ज्यादा झुकाव पर ही खनन की अनुमति है. जबकि राजस्थान सरकार का कहना था कि 29 डिग्री तक झुकाव को ही अरावली माना जाए. अब मामला सुप्रीम कोर्ट में है और सुप्रीम कोर्ट यदि फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया के 3 डिग्री के सिद्धांत को मानता है तो प्रदेश के 19 जिलों में खनन को तत्काल प्रभाव से बंद करना पड़ेगा.
Source : लाल सिंह फौजदार