वर्ष 1948 से अब तक भारत- पाकिस्तान अधिकारिक रूप से 4 युद्ध लड़ चुके हैं , हालांकि बीते 74 साल से भारत लगातार पाकिस्तान के प्रॉक्सी वॉर वाले प्रोपेगेंडा को भी झेल रहा है. 1971 के भारत- पाक युद्ध का सबसे पहला, मशहूर औऱ रोमांचकारी किस्से आपको जैसलमेर के लोंगेवाला पोस्ट से ही सुनने को मिलता है, यहीं पर महज 100 सैनिकों की बहादुर टुकड़ी ने पाकिस्तानी सेना के 2000 सैनिकों को धूल चटा दी थी. लोंगेवाला पोस्ट पश्चिमी सीमा पर एक रणनीतिक पोस्ट है, जहां लोंगेवाला की लड़ाई लड़ी गई थी. पाकिस्तानी सेना ने 2000 सैनिकों और टैंकों के साथ इस पोस्ट पर हमला किया था. इस लड़ाई को दुनिया के सबसे भयानक टैंक युद्धों में से एक माना जाता है. इस लड़ाई में पाकिस्तानी सेना भारतीय टुकड़ी पर हर मायने में 21 साबित होती, अगर 'बम वाली' देवी का मंदिर वहां ना होता !
माता के चमत्कारों को देख पाक ब्रिगेडियर हो गए थे नतमस्तक
भारतीय सैनिकों की मानें तो मां के चमत्कार देख पाकिस्तानी ब्रिगेडियर झुक गया था . पाक रेंजर्स भारत-पाक सीमा पर आपस में ही लड़ने लगे थे. जैसलमेर से 120 किलोमीटर दूर तनोट माता का मंदिर श्रद्धालुओं के अटूट विश्वास का केंद्र है. देश भर से श्रद्धालु माँ का आशीर्वाद लेने पहुंचते हैं. नवरात्रि के मौके पर तनोट मंदिर में दर्शनों के लिए भक्तों की लंबी कतारें लगती है. तनोट माता का मंदिर जो 1965 के उस भारत-पाक युद्ध का गवाह है जिसके बाद देवी के मंदिर का नाम भी बम वाली देवी के नाम से मश्हूर हो गया, यहां से पाकिस्तान बॉर्डर मात्र 20 किलोमीटर है. तनोट माता को देवी हिंगलाज माता का एक रूप माना जाता है. हिंगलाज माता शक्तिपीठ वर्तमान में पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत के लासवेला जिले में स्थित है. भाटी राजपूत नरेश तणुराव ने तनोट को अपनी राजधानी बनाया था. उन्होंने विक्रम संवत 828 में माता तनोट राय का मंदिर बनाकर मूर्ति को स्थापित किया था.
भाटी राजवंशी और जैसलमेर के आसपास के इलाके के लोग पीढ़ी दर पीढ़ी तनोट माता की अगाध श्रद्धा के साथ उपासना करते रहे. बाद में भाटी राजपूत अपनी राजधानी तनोट से जैसलमेर ले गए, लेकिन मंदिर वहीं रहा. तनोट माता का यह मंदिर स्थानीय निवासियों का एक पूजनीय स्थान हमेशा से ही रहा है, लेकिन 1965 में भारत-पाक युद्ध के दौरान जो चमत्कार देवी ने दिखाए उसके बाद तो भारतीय सैनिकों और सीमा सुरक्षा बल के जवानों की भी गहरी आस्था बन गई.
1965 के युद्ध के बम आज भी जिंदा, कभी नहीं फटे
तनोट माता के मंदिर से भारत-पाकिस्तान युद्ध की कई चमत्कारिक यादें जुड़ी हुई हैं. यह मंदिर भारत ही नहीं बल्कि पाकिस्तानी सेना के फौजियों के लिए भी आस्था का केन्द्र रहा है. 1965 के भारत-पाक युद्ध में पाक सेना ने हमारी सीमा में भयानक बमबारी करके लगभग 3 हजार हवाई और जमीनी गोले दागे थे, लेकिन तनोट माता की कृपा से मंदिर परिसर में किसी का बाल भी बांका नहीं हुआ. पाकिस्तानी सेना 4 किलोमीटर अंदर तक सीमा में घुस आई थी, पर युद्ध देवी के नाम से प्रसिद्ध इस देवी के प्रकोप ने 2000 पाक सेनिकों को 100 भारतीय सैनिकों (जो कि पाकिस्तानी टैंकों के मुकाबले बेहद साधारण हथियारों से लड़ रहे थे) को उल्टे पांव लौटना पड़ा. पाक सेना को अपने 100 से अधिक सैनिकों के शवों को भी छोड़ कर भागना पड़ा था. माना जाता है कि युद्ध के समय माता के प्रभाव ने पाकिस्तानी सेना को इस कदर उलझा दिया था कि रात के अंधेरे में पाक सेना अपने ही सैनिकों को भारतीय समझ कर उन पर गोलाबारी करने लगे. नतीजा ये हुआ कि पाक सेना ने अपने ही सैनिकों का अंत कर दिया. इस घटना के गवाह के तौर पर आज भी मंदिर परिसर में 450 तोप के गोले रखे हुए हैं.
पाकिस्तानी ब्रिगेडियर ने चढ़ाया था चांदी का छत्र
बताया जाता है कि 1965 के युद्ध के दौरान माता के चमत्कारों को देखकर पाकिस्तानी ब्रिगेडियर शाहनवाज खान नतमस्तक हो गए थे. युद्ध हारने के बाद शाहनवाज ने भारत सरकार से मंदिर में दर्शन की परमिशन मांगी थी. करीब ढाई साल में उन्हें अनुमति मिली. बताया जाता है तब शाहनवाज खान की ओर से माता की प्रतिमा पर चांदी का छत्र भी चढ़ाया गया था.
1971 युद्ध के बाद BSF ही संभालती है मंदिर की व्यवस्था की जिम्मेदारी
करीब 1200 साल पुराने तनोट माता के मंदिर के महत्व को देखते हुए बीएसएफ ने यहां अपनी चौकी बनाई.
बीएसएफ जवान ही अब मंदिर की पूरी देखरेख करते हैं. मंदिर की सफाई, पूजा अर्चना और यहां आने वाले श्रद्धालुओं के लिए सुविधाएं जुटाने तक का सारा काम बीएसएफ बखूबी निभा रही है. देश के इन जवानों की आस्था भी किसी दूसरे श्रद्धालू की तरह ही माँ के लिए असाधारण है
मंदिर परिसर में घूमते हैं बकरे
पहले देवी मंदिरों में पशु बलि दी जाती थी, लेकिन भारत सरकार ने पशु बलि पर रोक लगा दी. इसके बाद से यहां मंदिर में मन्नत पूरी होने के बाद लोग जिंदा बकरे मंदिर को भेंट करके लौट जाते हैं. फिलहाल मंदिर में 2 हजार से भी ज्यादा जीवित बकरे हैं, जो आस-पास के इलाकों में घूमते - चरते नजर आ जाते हैं. चमत्कारी मंदिर में आम आदमी के साथ-साथ कई बड़े नेताओं के भी रूमाल बंधे हैं इस अनूठे मंदिर में लोग मन्नत मांगने के लिए रूमाल बांधते हैं. मंदिर में 50 हजार से भी ज्यादा रूमाल बांधने वालों में कई मंत्री भी शामिल हैं.
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत जैसलमेर जाते समय जरूर जाते हैं माता मंदिर
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत जब भी जैसलमेर का दौरा करते हैं, तब तनोट माता मंदिर जरूर आते हैं. एक बार अपनी धर्मपत्नी के साथ आकर वे भी यहां मन्नत का रूमाल बांध चुके हैं. पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की भी तनोट माता में बड़ी आस्था है. 21 वीं सदी में खड़ी दुनिया यूँ तो विज्ञान के तर्क को सर्वोपरी और सर्वश्रेष्ठ मानती है लेकिन अक्सर मानव जाति के आगे आज भी ऐसे दैवीय चमत्कार आ जाते हैं जिन पर खुली आँखों से विश्वास करना मुश्किल हो जाता है. तनोट माता मंदिर इसी तरह की एक बानगी को बयाँ करता है जिसके आगे सुपरपॉवर अमेरिका के हाई-टेक हथियार फेल हो गए, 2000 पाकिस्तानी सैनिक गिनती भर भारतीय सैनिकों से हार गए, और देवी के मंदिर परिसर में एक ईंट इधर से उधर ना हुई. इस धरती पर जो प्राण है उसका रक्षक कोई तो है जो युगों से इंसानी विनाश के बीच जीव रक्षा करता आ रहा है.
HIGHLIGHTS
- तनोट माता का मंदिर श्रद्धालुओं के अटूट विश्वास का केंद्र
- माता के चमत्कारों को देख पाक ब्रिगेडियर हो गए थे नमस्तक
- मुख्यमंत्री अशोक गहलोत जैसलमेर जाते समय जरूर जाते हैं माता मंदिर
Source : PANKAJ KUMAR JASROTIA