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राजस्थान के टोंक में कुछ इस अंदाज में मनाया जाता है मकर संक्रांति का पर्व

लेकिन राजस्थान के टोंक जिले में यह बड़े ही अनूठे तरीके से मनाया जाता है.

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yogesh bhadauriya
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राजस्थान के टोंक में कुछ इस अंदाज में मनाया जाता है मकर संक्रांति का पर्व

राजस्थान के टोंक जिले में यह बड़े ही अनूठे तरीके से मनाया जाता है यह पर्व

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मकर संक्रांति का महापर्व देशभर में अलग-अलग तरीकों से सदियों से मनाया जाता रहा है. लेकिन राजस्थान के टोंक जिले में यह बड़े ही अनूठे तरीके से मनाया जाता है. देवली उपखंड के आवां गांव में 12 गांवों के लोगों ने मिलकर दड़ा खेल परम्परागत तरीके से आज भी खेला. इस खेल को लेकर यहां के लोगों की अलग मान्यताएं है...और कुछ अनूठी सी कहानी भी है. टोंक जिले के देवली उपखण्ड के आंवा कस्बे मे मकर सक्रांति पर्व पर आंवा कस्बे मे दड़े का अनोखा खेल खेला जाता है जिसमे 12 गांव के लोग हिस्सा लेने के लिय आते है खेलने के लिय करीब 80 किलो वजन का एक फुटबाल नुमा बोरीयो के टाट से दडा बनाया जाता है...पहले राजा महाराजा के राज मे सेना मे भर्ती करने के लिय इस खेल मे जो लोंग अच्छा प्रर्दशन करते थे उन्हे राजा अपनी फोज मे सेनिक के लिय भर्ती करते थे. पहले चयन का तरीका था अब परम्परा बन गया है..इस बार दड़ा किसी भी दरवाजे पर नही पहुंचा और मध्य में ही खेल का अंत हो गया. इसलिये साल भी मध्यम रहेगा परम्परा अनुसार ऐसा माना जा रहा है.

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आंवा कस्बे में मकर सक्रांति पर्व पर जोश व उमंग के साथ भाईचारा व सोहार्द को बढावा देने वाला पारपंरिक खेल दडा़ खेल खेला जाता है. ये खेल 14 जनवरी को वर्षों से खेला जा रहा है जिसमे 12 गांव के लोग हिस्सा लेने के लिए आते हैं. खेलने के लिय करीब 80 किलो वजन का एक फुटबाल नुमा बोरीयो के टाट से दडा बनाया जाता है जिसे पानी मे भिगोया जाता है फिर आंवा के गोपाल चोक मे लाकर रख दिया जाता है बाद मे खेलने के लिय आये 12 गांव के लोगो को 6-6 गांव के लोगों के आमने-सामने टीम बनाकर खेलने के लिय बांट दिया जाता इस खेल के कोई नियम नहीं होते. खेल शुरू होते ही दड़े को लोग अपने पेरो से एक दूसरे की तरफ भेजने का प्रयास करते हैं.

खेल से जुड़ी किवदंतियों को मानें तो इस खेल से ये मालूम हो जाता है कि इस साल अकाल होगा या सुकाल. इस खेल को लोग वर्षों से खेलते आ रहे है एंव इस खेल की मान्यता को किसान आने वाले साल मे सुकाल होगा या अकाल होगा उससे जोडकर देखते है इस खेल के मेदान मे दो दरवाजे बने हुहे है. जिनके नाम एक अखनिया दरवाजा एंव दसरे का नाम दूनी दरवाजा अगर खिलाडी दड़े को दूनी दरवाजे की तरफ धकेल कर ले जाते है तो लोगो का मानना हे कि इस वर्ष सुकाल होगा ओर किसानो की फसल की पेदावार अच्छी होगी. अगर दड़ा अखनिया दरवाजे की तरफ चला जाता है तो लोगो की मान्यता है कि इस बार अकाल पड़ेगा ओर अगर दड़ा बीच में ही रह जाता है तो लोगो की मान्यता है कि इस वर्ष मध्यम रहेगा उसी हिसाब से किसान अपनी फसल की बुआई करते हैं. हजारो की तादात में इस खेल को देखने के लिय लोग दूर-दूर से आते है. यह खेल 12 बजे शुरू होता है जो करीब 3 बजे तक लगातार खेला जाता है.

आज खेला गया खेल निर्णायक स्थिति में नही पहुंचा दड़ा... खेल का कोई निर्णय नही हो पाया है क्योंकि दड़ा किसी दरवाजे पर जाता तो निर्णय होता लेकिन इस बार दड़ा किसी भी दरवाजे पर नहीं पहुंच कर बीच में ही रहा. इसलिये ऐसा माना जा रहा है कि न अकाल होगा और न ही सुकाल बल्कि मध्यम रहेगा साल ...

Source : News Nation Bureau

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