कुछ वर्षो से राजस्थान लिंचिंग की घटनाओं का लगभग पर्याय बन गया है. ऐसे में सवाल उठता है कि एक राज्य जो अपनी सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत के लिए जाना जाता है, अब गुस्से व लिंचिंग के लिए जाना जाता है. राज्य के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी का मानना है कि अभद्र भाषा, इंटरनेट का अति प्रयोग और ओटीटी पर हिंसा युवाओं को गुस्सैल बना रही है. वहीं एक अन्य अधिकारी ने नैतिक मूल्यों की कमी को उग्र स्वभाव के कारणों में से एक बताया.
आइए एक नजर डालते हैं रेगिस्तानी राज्य से रिपोर्ट की गई लिंचिंग की कुछ घटनाओं पर. पहलू खान के मामले ने इस परिप्रेक्ष्य में काफी ध्यान खींचा. पहलू खान, उनके दो बेटे और चार अन्य 1 अप्रैल, 2017 को हरियाणा के नूंह जा रहे थे, जब गाय तस्करी के संदेह में जयपुर को दिल्ली से जोड़ने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग 8 पर भीड़ ने उन पर हमला कर दिया.
गंभीर रूप से घायल खान का तीन दिन बाद अलवर के एक अस्पताल में निधन हो गया. यह हमला कैमरे में कैद हो गया. एक अन्य घटना में राजस्थान के अलवर जिले में गायों की तस्करी के संदेह में लोगों के एक समूह द्वारा 28 वर्षीय एक व्यक्ति की कथित तौर पर पीट-पीटकर हत्या कर दी गई. पीड़ित अकबर खान पड़ोसी राज्य हरियाणा के फिरोजपुर झिरका क्षेत्र का निवासी था.
जब खान और उसका दोस्त असलम दो गायों को रामगढ़ के लालवंडी गांव में एक जंगल के रास्ते पैदल ले जा रहे थे, तो ग्रामीणों ने उन्हें घेर लिया और उनकी पिटाई शुरू कर दी. असलम भागने में सफल रहा जबकि खान को बुरी तरह पीटा गया. बाद में उन्हें रामगढ़ के एक सरकारी अस्पताल ले जाया गया जहां डॉक्टरों ने मृत घोषित कर दिया.
इस साल 15 अगस्त को जब देश स्वतंत्रता दिवस मना रहा था तो राजस्थान के अलवर जिले के एक गांव में सब्जी बेचकर रोजी-रोटी कमाने वाले चिरंजीलाल नाम के युवक की कथित तौर पर पीट-पीटकर हत्या कर दी गई. आईएएनएस ने इसका कारण जानने की कोशिश की कि ऐसी घटनाएं क्यों हो रही हैं. अलवर की एसपी तेजस्विनी गौतम ने इस तरह के मामलों के लिए सोशल मीडिया और इंटरनेट के अत्यधिक प्रयोग को कारण बताया.
इंटरनेट का अत्यधिक उपयोग, हिंसा से भरा डिजिटल प्लेटफॉर्म, ओटीटी प्लेटफॉर्म पर फिल्में और वेब सीरीज ऐसी घटनाओं को आगे बढ़ाने के लिए जिम्मेदार हैं. जब सोशल मीडिया नहीं था, तब भी लोगों के बीच रोड रेज जैसे छोटे-छोटे झगड़े हुआ करते थे. हालांकि यह कभी मायने नहीं रखता था कि व्यक्ति किस धर्म के थे, लेकिन अब कुछ ही सेकंड में मामला धार्मिक रूप ले लेता है.
उन्होंने कहा, ऐसी घटनाओं के पीछे अभद्र भाषा एक और प्रमुख कारण है. उनके मुताबिक सोशल मीडिया को विनियमित करने की आवश्यकता है, ताकि सत्यापन के बिना कुछ भी गलत तरीके से पोस्ट करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जा सके.
उन्होंने सवाल किया कि एक घटना दो लोगों के बीच हो सकती है लेकिन यह दो जातियों, लिंग या धर्म के बीच का मुद्दा कैसे बन सकती है? तेजस्विनी ने कहा कि कोविड महामारी और लॉकडाउन ने मनुष्य के मानसिक धैर्य की भी परीक्षा ली. राजस्थान सरकार ने विधानसभा में लिंचिंग से राजस्थान संरक्षण विधेयक, 2019 पेश किया था.
नए कानून के तहत एक व्यक्ति जो लिंचिंग करता है, जिससे पीड़ित की मृत्यु हो जाती है, उसे कठोर आजीवन कारावास की सजा और 1-5 लाख रुपये का जुर्माना होगा. गंभीर चोट के मामले में 10 साल तक की जेल और 25,000 रुपये से 3 लाख रुपये तक का जुर्माना और अन्य चोटों के लिए सात साल तक की जेल की सजा और 1 लाख रुपये का जुर्माना होगा. हालांकि नए कानून की भाजपा ने आलोचना की और केंद्र सरकार ने इसे लौटा दिया था.
इस बीच एएसपी सुनीता मीणा ने कहा हमने ज्यादातर देखा है कि हिंसा के ऐसे कृत्यों में शामिल लोगों की उम्र 50 वर्ष से कम है. मुख्य रूप से वे 18 से 35 वर्ष के आयु वर्ग में आते हैं और क्रोध पर नियंत्रण नहीं रखते हैं. उनको मानसिक परामर्श की आवश्यकता है.
Source : IANS