कर्नाटक अब महज कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन सरकार औऱ बीजेपी की नाक की लड़ाई का अखाड़ा भर नहीं रहा. पल-पल बदलते सियासी तापमान ने इस राज्य को संवैधानिक चौखट पर ला खड़ा किया है. राज्यपाल वजुभाई के विश्वास मत हासिल करने की समय-सीमा से जुड़े निर्देश के बावजूद विधानसभा स्पीकर रमेश कुमार ने अपने अधिकारों की इस्तेमाल कर सदन को सोमवार तक के लिए स्थगित कर दिया. इस तरह लोकतांत्रिक व्यवस्था के दो संवैधानिक पद राज्यपाल और स्पीकर आमने-सामने आ गए हैं. दोनों के पास ही विधायी कामों के लिए कई विशेषाधिकार हैं.
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स्पीकर को दिशा-निर्देश नहीं दे सकते राज्यपाल
हालांकि संविधान की समझ रखने वालों की मानें तो भले ही राज्यपाल किसी भी राज्य के मुख्यमंत्री को हटाने की शक्ति रखते हों, लेकिन स्पीकर पर उनका कोई जोर नहीं है. स्पीकर के सामने विश्वास मत की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है, जो फिलहाल पूरी नहीं हुई है. यानी मामला पेचीदा है क्योंकि सदन सोमवार तक स्थगित किए जाने से मत विभाजन नहीं हुआ है. सदन के भीतर मत विभाजन स्पीकर के अधिकार क्षेत्र में आता है. यानी राज्यपाल वजुभाई संवैधानिक अधिकार के तहत स्पीकर को किसी किस्म का कोई निर्देश नहीं दे सकते हैं. ऐसे में स्पीकर रमेश कुमार मत विभाजन के मामले में राज्यपाल पर भारी पड़ रहे हैं.
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अरुणाचल प्रदेश मामले में सुप्रीम कोर्ट
गौरतलब है कि अरुणाचल प्रदेश के मामले में जब बात सुप्रीम कोर्ट तक पहुंची, तो सर्वोच्च अदालत ने स्पीकर और राज्यपाल के अधिकारों को स्पष्ट तौर पर रेखांकित किया. 2016 के इस फैसले के अनुसार स्पीकर और राज्यपाल दोनों ही स्वतंत्र संवैधानिक पद हैं. राज्यपाल किसी भी स्थिति में स्पीकर के गाइड या मेंटर नहीं बन सकते हैं. यानी वह स्पीकर को कोई संदेश या दिशा-निर्देश नहीं दे सकते हैं. यहां राज्यपाल को लोकतांत्रिक परिपाटी को बचाए रखने की जिम्मेदारी दी गई है. यानी जब तक आवश्यकता नहीं पड़े तब तक राज्यपाल को किसी राजनीतिक विवाद में पड़े बगैर लोकतांत्रिक प्रक्रिया को सुचारू बनाए रखने में मदद करनी होगी.
HIGHLIGHTS
- राज्यपाल विधानसभा स्पीकर को नहीं दे सकते कोई दिशा-निर्देश.
- कर्नाटक में मत विभाजन स्पीकर का अधिकार क्षेत्र.
- राज्यपाल लोकतांत्रिक प्रक्रिया में नहीं दे सकते अनावश्यक दखल.