कर्नाटक विधानसभा के अध्यक्ष के.आर. रमेश कुमार ने सोमवार को राज्य में सत्तारूढ़ कांग्रेस-जनता दल (सेकुलर) के 15 बागी विधायकों को नोटिस भेज दिया। नोटिस में विधानसभा अध्यक्ष ने 15 बागी विधायकों से सत्तारूढ़ दलों (कांग्रेस और जद-एस) द्वारा उन्हें (बागी विधायकों) अयोग्य ठहराने की याचिका पर अपना जवाब दर्ज कराने के लिए मंगलवार सुबह 11 बजे यहां स्थित उनके कार्यालय में मिलने के लिए कहा है। सत्तारूढ़ दल द्वारा सदन में विश्वास प्रस्ताव के दौरान उपस्थित रहने के लिए व्हिप जारी किए जाने के बावजूद बागी विधायकों के अनुपस्थित रहने पर सत्तारूढ़ दलों ने विधानसभा अध्यक्ष से उन्हें अयोग्य ठहराने के लिए याचिका दायर की है।
Karnataka Speaker KR Ramesh Kumar summons rebel MLAs to meet him at his office at 11 am on July 23. The notice has been issued over disqualification (of rebel MLAs) petition by coalition leaders. pic.twitter.com/d4fZqHJefk
— ANI (@ANI) July 22, 2019
क्या है दलबदल कानून
1985 में दलबदल कानून को 10वीं अनुसूची में शामिल किया गया. इस कानून के तहत यदि कोई विधायक जिस पार्टी के टिकट पर चुना जाता है, उस पार्टी को स्वेच्छा से छोड़ता है या फिर अपनी पार्टी के इच्छा के विपरीत जाकर वोट करता है तो उसे अयोग्य करार दिया जाएगा. यदि पार्टी नेतृत्व 15 दिनों के भीतर वोट या अवज्ञा को रद्द कर देता है तो विधायक को अयोग्य करार नहीं दिया जाएगा.
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अगर किसी भी विधानसभा सत्र के दौरान कोई विधायक अयोग्य करार दिया जाता है तो वह उस सत्र के दौरान चुनाव नहीं लड़ सकता है. हालांकि वह अगले सत्र में चुनाव लड़ने के योग्य है. यही नहीं ऐसे किसी भी सदस्य को मंत्री भी नहीं बनाया जा सकता है जब तक कि उसका कार्यकाल पूरा ना हो जाए. अगर किसी अपराध के लिए विधायक को अयोग्य करार दिया जाता है तो फिर इसकी अवधि 6 साल हो सकती है लेकिन अगर 3 महीने के भीतर अपील दायर की जाती है तो वह सजा के बावजूद अपने पद पर बने रह सकते हैं.
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अगर कोई विधायक त्यागपत्र देता है तो फिर उसे सरकार में मंत्री बनाया जा सकता है और वह छह महीने के भीतर विधायिका के किसी भी सदन से वह निर्वाचित हो सकता है लेकिन अयोग्य करार दिए जाने पर नए चुनाव में फिर से चुने जाने से पहले वह मंत्री नहीं बनाया जा सकता है.