कर्नाटक के मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी ने कहा है कि मेरे मन में राज्यपाल के लिए बहुत आदर है. लेकिन राज्यपाल के दूसरे प्रेम पत्र ने मुझे दुख पहुंचाया है. क्या उन्हें 10 दिन पहले ही केवल हॉर्स ट्रेडिंग के बारे जानकारी मिली. साथ ही कुमारस्वामी ने एक तस्वीर भी दिखाई, जिसमें बीजेपी के कर्नाटक प्रदेश अध्यक्ष बीएस येदियुरप्पा, पीए संतोष के साथ निर्दलीय विधायक एच नागेश के साथ बैठे हुए हैं.
यह भी पढ़ेंः बिहार : नवादा में बिजली गिरने से 9 लोगों की मौत, मरने वालों में 7 बच्चे भी शामिल
कर्नाटक का सियासी ड्रामा थमने का नाम नहीं ले रहा है. कर्नाटक कांग्रेस के बाद अब मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी भी दोबारा सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए हैं. उन्होंने कहा कि पार्टी को व्हिप जारी करने का अधिकार है, ऐसे में इसका पालन होना चाहिए. उन्होंने कहा, मेरे पास राज्यपाल की तरफ से दूसरा लव लेटर आया है. राज्यपाल कह रहे हैं कि होर्स ट्रेडिंग हो रही है, जो विधानसभा के लिए ठीक नहीं है.
यह भी पढ़ेंः'बिग बॉस' फेम एजाज खान कल तक के लिए पुलिस हिरासत में
बता दें कि राज्यपाल वजूभाई वाला ने कर्नाटक के सीएम एच डी कुमार स्वामी को आज शाम 6 बजे से पहले ही बहुमत साबित करने का समय दे दिया है. इसके एक दिन पहले राज्यपाल वजूभाई वाला ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर शुक्रवार दोपहर बाद डेढ़ बजे तक बहुमत साबित करने को कहा था पर 1:30 बजे तक कुमारस्वामी बहुमत साबित नहीं कर पाए थे. वहीं, विधानसभा अध्यक्ष ने सदन को 3 बजे तक के लिए स्थगित भी कर दिया है.
Karnataka Chief Minister HD Kumaraswamy in state Assembly: I leave the decision on the floor test to you (the Speaker). It won't be directed by Delhi. I request you to protect me from the letter sent by the Governor. https://t.co/zUHJxNKpIZ
— ANI (@ANI) July 19, 2019
यह भी पढ़ेंः सैकड़ों मुस्लिमों ने अच्छी बारिश के लिए मांगी दुआ और फिर झमाझम बरसने लगे बादल
कर्नाटक का सियासी ड्रामा थमने का नाम नहीं ले रहा है. कर्नाटक प्रदेश कांग्रेस समिति के अध्यक्ष दिनेश गुंडु राव ने सुप्रीम कोर्ट के 17 जुलाई के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है. उन्होंने SC में दायर याचिका में कहा है कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश 15 बागी विधायकों को विधानसभा में मौजूद रहने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट का आदेश पार्टी को मिले व्हीप जारी करने के संवैधानिक अधिकार के खिलाफ है. कोर्ट के इस आदेश से संविधान की 10वीं अनुसूची में दिए गए दल-बदल कानून का उल्लंघन होता है.