कर्नाटक का नाटक खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है. राज्यपाल लगातार मुख्यमंत्री से बहुमत साबित करने को कह रहे हैं पर सत्ताधारी गठबंधन विधानसभा अध्यक्ष के विशेषाधिकार की आड़ में लगातार इसे लटकाने की कोशिश कर रहा है. विधायकों के बागी होने के कारण सत्तापक्ष के पास अब बहुमत नहीं है, लेकिन विधानसभा में विश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग नहीं हो पा रही है. पहले गुरुवार, फिर शुक्रवार और अब सोमवार के लिए वोटिंग टल गई है. एक तरह से सरकार को सोमवार तक के लिए जीवनदान मिल गया है.
अब जब राज्य में संवैधानिक संकट गहराता जा रहा है तो क्या केंद्र सरकार धारा 356 का उपयोग कर राष्ट्रपति शासन लागू करना चाहेगी. इससे पहले दो राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगाने के मामले में मोदी सरकार को मुंह की खानी पड़ी है. जाहिर है कर्नाटक के मामले में कोई भी फैसला लेने से पहले मोदी सरकार पिछले अनुभव पर भी विचार करेगी.
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने पहले कार्यकाल (2014 से 2019) में 2 बार (अरुणाचल प्रदेश और उत्तराखंड) धारा 356 का इस्तेमाल कर राज्य सरकार को बर्खास्त किया था, पर दोनों मामलों में सुप्रीम कोर्ट से सरकार को जोर का झटका लगा था. केंद्र सरकार की इस मामले में काफी किरकिरी हुई थी. माना जा रहा है कि कर्नाटक में केंद्र सरकार कोई भी फैसला लेने से पहले सोमवार को विश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग का इंतजार करेगी.
अरुणाचल प्रदेश में पहली कोशिश नाकाम
दिसंबर 2014 में अरुणाचल प्रदेश में सत्तारूढ़ कांग्रेस और बीजेपी ने बागी गुटों के साथ मिलकर जमकर जोर आजमाइश की. नबाम तुकी सरकार ने विधानसभा भवन पर ताला जड़ दिया. समय से पहले आयोजित विधानसभा सत्र की बैठक दूसरे भवन में कराई गई. बैठक में 33 विधायकों ने हिस्सा लिया, जिसमें विधानसभा अध्यक्ष नबाम रेबिया को विधानसभा अध्यक्ष के पद से हटाने का प्रस्ताव पारित हुआ और नया अध्यक्ष नियुक्त कर लिया गया. बागी विधायकों ने होटल में ही विधानसभा सत्र बुला लिया और मुख्यमंत्री नबाम तुकी के खिलाफ मतदान किया. फिर कालिखो पुल को मुख्यमंत्री बनाया गया. मामला सुप्रीम कोर्ट में गया. इस बीच मोदी सरकार ने राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश कर दी. कोर्ट के फैसले के बाद राज्य में राष्ट्रपति शासन समाप्त हो गया था.
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उत्तराखंड में भी हुई किरकिरी
मार्च 2016 में विजय बहुगुणा के नेतृत्व में कांग्रेस के 9 विधायकों के बागी होने के बाद उत्तराखंड में हरीश रावत सरकार अल्पमत में आ गई. मुख्यमंत्री हरीश रावत को बहुमत साबित करने के लिए 28 मार्च तक का वक्त दिया गया, लेकिन इससे पहले ही गर्वनर की रिपोर्ट के आधार पर केंद्र सरकार ने राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश कर दी, जिसे राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने स्वीकार कर लिया. फैसले के खिलाफ राज्य सरकार उत्तराखंड हाईकोर्ट चली गई, जहां कोर्ट ने केंद्र के फैसले को गलत ठहराया. हाईकोर्ट के फैसले को केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. वहां भी मोदी सरकार के फैसले को गलत बताया गया. सरकार के बहुमत के लिए विधानसभा में शक्ति परीक्षण कराया गया और मई में हरीश रावत सरकार बच गई. इस प्रकरण में भी केंद्र सरकार की काफी किरकिरी हुई थी.
सोमवार तक का इंतजार करेगी मोदी सरकार
कर्नाटक में राजनीतिक सरगर्मी के बीच मोदी सरकार वहां की सरकार को बर्खास्त करने की जल्दी में नहीं होगी, क्योंकि बागी विधायकों के इस्तीफा देने के कारण कुमारस्वामी की सरकार आज नहीं तो कल जानी ही जानी है. इसलिए केंद्र की मोदी सरकार किसी तरह की जल्दबाजी में नहीं है. हालांकि राज्य सरकार लगातार फ्लोर टेस्ट टाल रही है, लेकिन अगर सोमवार तक विधानसभा में फ्लोर टेस्ट नहीं हुआ तो संभवत: राज्यपाल की रिपोर्ट पर केंद्र सरकार राष्ट्रपति शासन की सिफारिश कर सकती है.
Source : Sunil Mishra