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Hijab controversy : ह‍िजाब विवाद पर कल यानि मंगलवार को फिर होगी सुनवाई 

14 फरवरी को कर्नाटक हाई कोर्ट में फिर से सुनवाई हुई. माना जा रहा था कि अदालत स्‍कूल-कॉलेजों में धार्मिक ड्रेस कोड को लेकर कोर्ट फैसला सुना सकती है. लेकिन ऐसा हुआ नहीं.

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Pradeep Singh
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KARANATAKA HIGH COURT

कर्नाटक हाई कोर्ट( Photo Credit : TWITTER HANDLE)

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कर्नाटक ह‍िजाब मामले  को लेकर आज यानी 14 फरवरी को कर्नाटक हाई कोर्ट में फिर से सुनवाई हुई. माना जा रहा था कि अदालत स्‍कूल-कॉलेजों में धार्मिक ड्रेस कोड को लेकर कोर्ट फैसला सुना सकती है. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. कोर्ट अब मंगलवार 15 फरवरी को दोपहर ढाई बजे से फिर सुनवाई करेगी. दरअसल, कर्नाटक सरकार ने राज्य में Karnataka Education Act-1983 की धारा 133 लागू कर दी है. इस वजह से अब सभी स्कूल-कॉलेज में यूनिफॉर्म को अनिवार्य कर दिया गया है. इसके तहत सरकारी स्कूल और कॉलेज में तो तय यूनिफॉर्म पहनी ही जाएगी, प्राइवेट स्कूल भी अपनी खुद की एक यूनिफॉर्म चुन सकते हैं.

इस फैसले को लेकर विवाद पिछले महीने जनवरी में तब शुरू हुआ था, जब उडुपी के एक सरकारी कॉलेज में 6 छात्राओं ने हिजाब पहनकर कॉलेज में प्रवेश किया. विवाद इस बात को लेकर था कि कॉलेज प्रशासन ने छात्राओं को हिजाब पहनने के लिए मना किया था. लेकिन वे फिर भी पहनकर आ गई थीं. उस विवाद के बाद से ही दूसरे कॉलेजों में भी हिजाब को लेकर बवाल शुरू हो गया.

आज अदालत में सुनवाई के दौरान की बातचीत

एडवोकेट मोहम्मद ताहिर: याचिकाकर्ताओं की व्यक्तिगत जानकारी दी जा रही है. मैं मीडिया के खिलाफ निर्देश चाहता हूं.
चीफ जस्टिस : हमारे सामने कुछ भी नहीं है हम क्या कर सकते हैं.

चीफ जस्टिस: हमने मीडिया से अपील की है. अगर आप सब कहें तो हम लाइव स्ट्रीमिंग बंद कर सकते हैं. वही हमारे हाथ में है. हम मीडिया को नहीं रोक सकते. जहां तक चुनाव की बात है, आप उन राज्यों के मतदाता नहीं हैं. न्यायमूर्ति दीक्षित का कहना है कि चुनाव के मुद्दों पर चुनाव आयोग को फैसला करना है.

एक वकील इस मुद्दे पर मीडिया और सोशल मीडिया टिप्पणियों को प्रतिबंधित करने के लिए एक आवेदन का उल्लेख करता है क्योंकि अन्य राज्यों में चुनाव चल रहे हैं.

चीफ जस्‍ट‍िस: हमें चुनाव से कोई सरोकार नहीं है. यदि यह अनुरोध चुनाव आयोग से आता है तो हम विचार कर सकते हैं.

वरिष्ठ अधिवक्ता युसूफ मचला का कहना है कि वह एक याचिकाकर्ता के लिए कुछ निवेदन करना चाहेंगे.

एडवोकेट जनरल से जस्टिस दीक्षित: क्‍या आपके आधिकारिक अनुवादक को कन्नड़ नहीं आता? सब हंसते हैं.

कामत जीओ पढ़ते हैं - छात्रों को एकता, समानता और सार्वजनिक व्यवस्था के हित में ड्रेस पहनना चाहिए.
एडवोकेट जनरल का कहना है कि अनुवाद सटीक नहीं है.
चीफ जस्टिस: हमें यह भी लगता है कि अनुवाद सही नहीं है. वास्तविक त्रुटि हो सकती है.

चीफ जस्‍ट‍िस: वह स्टैंड कहां है? पहले स्टैंड स्पष्ट किया जाए. तभी हम आपके तर्कों की सराहना कर सकते हैं.

कामत: मेरे मामले में सिर पर दुपट्टा पहनने का अधिकार राज्य यह नहीं कह सकता कि इसे पहनने से लोग भड़केंगे.

कामत: अगर वे कहते हैं कि सार्वजनिक व्यवस्था की कोई समस्या नहीं है, तो मैं सुरक्षित हूँ. वे केवल सार्वजनिक व्यवस्था के आधार पर प्रतिबंधित कर सकते हैं.
चीफ जस्‍ट‍िस: आप यह नहीं मान सकते कि वे क्या कहेंगे.
कामत: अगर राज्य ऐसा कहेगा तो मुझे खुशी होगी. अनुच्छेद 25 को केवल सार्वजनिक व्यवस्था पर ही प्रतिबंधित किया जा सकता है.

कामत: मेरे धार्मिक अधिकार को प्रतिबंधित करने के लिए राज्य क्या कह रहा है? उनका कहना है कि सार्वजनिक व्यवस्था दो धार्मिक समुदायों के बच्चों के लिए समस्या होगी.
मुख्य न्यायाधीश: आप मान रहे हैं.

कामत: क्या राज्य इस बात की सहज दलील ले सकता है कि सार्वजनिक व्यवस्था का मुद्दा होगा और ऐसा कह सकते हैं?
चीफ जस्टिस: उन्होंने ऐसा नहीं कहा है.
कामत: यही इस जीओ का आधार है. राज्य का कहना है कि सार्वजनिक व्यवस्था के मुद्दे होंगे.

जस्टिस दीक्षित: तो आपके प्रस्ताव का समर्थन करने के लिए कोई सुप्रीम कोर्ट का फैसला नहीं है?
कामत: नहीं, मिल जाए तो मैं अच्छा कर लूंगा.

जस्टिस दीक्षित: क्या आप सुप्रीम कोर्ट के किसी ऐसे फैसले का हवाला दे सकते हैं जो दूर से भी कहता हो कि एक विधायक समिति का हिस्सा नहीं हो सकता?
कामत: मैं यह नहीं कह रहा हूं कि निर्वाचित प्रतिनिधि समिति का हिस्सा नहीं हो सकते. मैं कह रहा हूं कि सार्वजनिक व्यवस्था एक आवश्यक पुलिस कार्य है, इसे समिति पर नहीं छोड़ा जा सकता है.

जस्टिस दीक्षितः क्या आप समिति की वैधता पर बहस नहीं कर रहे हैं?
कामत: मैं GO के साथ समाप्त कर चुका हूँ. मैंने अनुच्छेद 25 को देखा है. अब मैं इस बात पर हूं कि क्या अधिकार को प्रतिबंधित किया जा सकता है. यह कहकर कि दूसरा समूह बाधा डाल रहा है.

कामत: राज्य का कहना है कि सिर पर स्‍कार्फ पहनना एक समस्या हो सकती है क्योंकि अन्य छात्र अपनी धार्मिक पहचान प्रदर्शित करना चाहते हैं. इसका जवाब एससी ने दिया है, राज्य को अनुकूल माहौल बनाना है.

कामत: क्या धर्म के अधिकार से सार्वजनिक व्यवस्था को ठेस पहुँचती है, यह राज्य द्वारा तय किया जाना है.
सीजे: जीओ सार्वजनिक व्यवस्था के बारे में कुछ नहीं कहता है. जीओ का कहना है कि सीडीसी द्वारा ड्रेस तय की जानी है.

जस्टिस दीक्षित: क्या आप विधायकों को बाहर करना चाहते हैं? कृपया पढ़ें और अनुमान न लगाएं. ऐसा कहा जाता है कि समिति में x, y, z शामिल हैं. विधायकों के पास वीटो पावर नहीं है.

कामत: क्या विधायकों को संवैधानिक प्रावधानों की जानकारी नहीं है? वे उसी के अनुसार करेंगे. यह एक अतिरिक्त विधिक समिति है. दुष्परिणाम देखें. मैं इसे करने वाले राज्य को समझ सकता हूं. यह मौलिक स्वतंत्रता का मजाक है. मैं कहता हूं कि यह पूरी तरह से अवैध है.

कामत: संविधान कहता है कि अनुच्छेद 25 सार्वजनिक व्यवस्था के अधीन होगा. राज्य का कहना है कि सार्वजनिक व्यवस्था वही होगी जो एक विधायक समिति द्वारा तय की जाएगी. सार्वजनिक व्यवस्था एक आवश्यक राज्य कार्य है. विधायक समिति पर नहीं छोड़ा जा सकता?

कामत: मैं यह कहने का साहस करता हूं कि जिस व्यक्ति ने इस शासनादेश का मसौदा तैयार किया है, उसने अनुच्छेद 25 को नहीं देखा है.

कामत: सीडीसी का यह पूरा प्रतिनिधिमंडल यह तय करना है कि हेडस्कार्फ़ पहनने की अनुमति दी जाए या नहीं, यह राज्य की जिम्मेदारी का पूर्ण परित्याग है.

कामत: वह मुद्दा यहाँ नहीं उठता. लोग केवल एक हेडस्कार्फ़ पहनना चाहते हैं जो उनके विवेक के अधिकार का एक पहलू है.

कामत: आखिरी सबमिशन जो मैं करना चाहता हूं, वह यह है कि मुझे ईआरपी में बिल्कुल भी गहराई तक जाने की जरूरत नहीं है. क्योंकि ईआरपी सिद्धांत तब आता है जब धर्म के मौलिक अधिकारों का अभ्यास किसी और के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है.

कामत: सिर पर दुपट्टे के संबंध में कुरान में ही ऐसा कहा गया है, इसलिए हमें किसी अन्य अधिकार के पास जाने की आवश्यकता नहीं है और यह अनुच्छेद 25 के तहत संरक्षित होगा.

जस्टिस दीक्षित: क्या कुरान के सभी आदेश उल्लंघन योग्य हैं?
कामत: मैं बड़े मुद्दों पर टिप्पणी नहीं करना चाहूंगा कि क्या पवित्र कुरान में वर्णित हर सिद्धांत ईआरपी है. इस मामले के उद्देश्य के लिए हिजाब आवश्यक है.

जस्टिस दीक्षित: मिस्टर कामत, क्या कुरान में जो कुछ कहा गया है, क्या वह अनिवार्य धार्मिक प्रथा है?
कामत: मैं ऐसा नहीं कह रहा हूँ.
कामत: अगर पवित्र कुरान के इस्लामी ग्रंथ कहते हैं कि यह प्रथा अनिवार्य है तो अदालतों को इसकी अनुमति देनी होगी. शायरा बानो मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक प्रथा को कुरान द्वारा मंजूरी नहीं दी थी.

चीफ जस्‍टिस: अनुच्छेद 25(1) और 25(2) को एक साथ पढ़ा जाना चाहिए.
चीफ जस्‍टिस: बिजो इमैनुएल पढ़िए, यह अनुच्छेद 25(1) और 25 (2) के बीच अंतर नहीं करता है. पैरा 19 पढ़ें.

कामत: प्रमुख धार्मिक प्रथाएं, यदि वे सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य को ठेस पहुंचाती हैं, तो उन्हें अनुच्छेद 25(1) के तहत नियंत्रित किया जा सकता है. कोई धार्मिक गतिविधियां नहीं, उन्हें अनुच्छेद 25(2) के तहत नियंत्रित किया जा सकता है.

कामत: यहां तक कि एक प्रमुख धार्मिक प्रथा, अगर यह सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य को ठेस पहुंचाती है, तो इसे लागू किया जा सकता है.
चीफ जस्टिस: क्या अनुच्छेद 25(1) और 25(2) को अलग-अलग पढ़ा जा सकता है?

चीफ जस्टिस: अनुच्छेद 25(2) के बारे में क्या?
कामत: अनुच्छेद 25 (2) के तहत राज्य को धर्म से जुड़ी किसी भी आर्थिक, वित्तीय, राजनीतिक या धर्मनिरपेक्ष गतिविधि को प्रतिबंधित करने की शक्ति दी गई है. इसी अवधारणा का अर्थ है कि धर्म की अन्य प्रमुख धार्मिक गतिविधियों को प्रतिबंधित किया जा सकता है.

कामत: मेरे अनुसार, राज्य के पास आर्थिक, वित्तीय या राजनीतिक, या धर्म के धर्मनिरपेक्ष अभ्यास को लागू करने की शक्ति है.
जस्टिस दीक्षित: क्या आप राज्य की शक्ति के संबंध में बिजो इमैनुएल के फैसले को स्पष्ट कर सकते हैं?

कामत: यह एक ऐसा मामला है जहां छात्र बरसों से सिर पर दुपट्टा ओढ़ रही हैं.

कामत: मैं एक वकील के रूप में सोच सकता हूं कि हिजाब आक्रामक है. मैं सोच सकता हूं कि स्कूलों में एक समान ड्रेस होनी चाहिए. लेकिन मेरे विचार मायने नहीं रखते. मैं सहमत नहीं हो सकता. एक आस्तिक का दृष्टिकोण क्या मायने रखता है.

कामत: एक धर्म न केवल नैतिक नियमों का एक कोड निर्धारित कर सकता है, यह अनुष्ठानों को निर्धारित कर सकता है, जिन्हें धर्म के अभिन्न अंग के रूप में माना जाता है, और ये पालन खाना और पोशाक के मामलों तक भी विस्तारित हो सकते हैं.

कामत अब शिरूर मठ मामले का हवाला दे रहे हैं.

कामत का कहना है कि जीओ में लिखित मद्रास हाई कोर्ट का निर्णय संविदा शिक्षकों के लिए ड्रेस निर्धारित करने की सरकार की शक्ति के संबंध में था और उस मामले में अनुच्छेद 25 की कोई चर्चा नहीं हुई थी. इन निर्णयों का हवाला देकर, GO एक घातक गलती करता है.

कामत: जीओ के दोनों निर्णय हमारे मामले में लागू नहीं होते हैं. एक अल्पसंख्यक संस्थान में है और दूसरा सभी लड़कियों के स्कूल में है. तीसरा फैसला मद्रास हाईकोर्ट के फैसले का है, इसका अनुच्छेद 25 से कोई लेना-देना नहीं है.

कामत अब जीओ में लिखित बॉम्बे एचसी के फैसले को अलग करने की कोशिश कर रहे हैं. उनका कहना है कि लड़कियों के एक स्कूल में पढ़ रही थी और इसलिए कोर्ट ने कहा कि हिजाब जरूरी नहीं है.

जस्टिस दीक्षित: आपने हाई कोर्ट के उस फैसले का हवाला दिया, जिसमें एक इस्लामिक देश की शीर्ष अदालत का हवाला दिया गया था कि हिजाब पहनना जरूरी है? आपके पास किसी अन्य इस्लामी देश या धर्मनिरपेक्ष देश के बारे में कोई भिन्न दृष्टिकोण रखने का कोई फैसला है?

कामत ने हाई कोर्ट को मलेशियाई फैसले का हवाला दिया.

जस्टिस दीक्षित: मलेशिया धर्मनिरपेक्ष देश है या इस्लामिक देश?
कामत: इस्लामिक देश. हमारे सिद्धांत कहीं अधिक व्यापक हैं. हमारे सिद्धांतों की तुलना इस्लामी संविधानों से नहीं की जा सकती.

कामत ने एम अजमल खान बनाम चुनाव आयोग में मद्रास हाई कोर्ट के फैसले के बारे में बताया.
कामत: मुस्लिम विद्वानों के बीच लगभग एकमत है कि पर्दा जरूरी नहीं है. लेकिन स्कार्फ से सिर ढंकना अनिवार्य है. मद्रास हाई कोर्ट ने कहा था.

कामत: मुस्लिम छात्रों के लिए हिजाब की अनुमति देना राष्ट्रीय स्तर की प्रथा है. सिख छात्रों के हेड गियर के लिए भत्ता भी दिया जाता है. यह अनुच्छेद 25 के साथ गठबंधन में है.

कामत ने कहा क‍ि केंद्रीय विद्यालय भी एक समान रंग के हिजाब की अनुमति देते हैं. केंद्रीय विद्यालय के पास ड्रेस है फिर भी वे मुस्लिम लड़कियों को ड्रेस के रंग का हेडस्कार्फ़ पहनने की अनुमति देता है.

कामत: यह ऐसा मामला नहीं है, जहां छात्र अलग यूनिफॉर्म की मांग कर रहे हैं. वे केवल इतना कह रहे हैं कि वे सिर को उसी रंग के ड्रेस से ढकेंगे जो निर्धारित है.

चीफ जस्टिस: छात्राएं कब से हिजाब पहन रही हैं?
कामत: मैं इस प्रश्न के लिए आभारी हूँ. प्रवेश के बाद से ही छात्राएं सिर पर स्कार्फ बांधे हुए थीं. वे पिछले दो साल से पहन रही हैं.

कामत: मैं इन सभी आयतों का हवाला दे रहा हूं और इसमें विवाद है कि मैं एक हिंदू होकर भी इन सभी का हवाला दे रहा हूं. मैं एक वकील हूँ और इस न्यायालय की सहायता कर रहा हूँ.
चीफ जस्‍टिस: आप सही हैं. रिपोर्टिंग में मीडिया को जिम्मेदार होना चाहिए.

चीफ जस्‍टिस: खुमूर क्या है?
कामत: यह सिर और सिर के बालों को ढकता है.
चीफ जस्‍टिस: क्या इसका मतलब हिजाब है?
कामत: मैं आभारी हूँ.

देवदत्त कामत: इस न्यायालय को इस्लाम में महिलाओं के लिए निर्धारित ड्रेस कोड की जांच करनी है और; ऐसा नुस्खा धर्म का एक अनिवार्य हिस्सा है या नहीं; और यदि यह आवश्यक धार्मिक प्रथा का हिस्सा है, तो क्या इसे अनुच्छेद 25(1) के तहत लागू किया जा सकता है.

देवदत्त कामत: सरकार का आदेश कहता है कि हेडस्कार्फ़ पहनना अनुच्छेद 25 द्वारा संरक्षित नहीं है और सरकार का आदेश कहता है कि यह कॉलेज विकास समिति को यह तय करने के लिए छोड़ देना चाहिए कि यह ड्रेस का हिस्सा होगा या नहीं.

देवदत्त कामत: कॉलेज कमेटी को प्रतिनिधिमंडल यह तय करने के लिए कि हिजाब की अनुमति है या नहीं पूरी तरह से अवैध है.

देवदत्त कामत: राज्य सरकार द्वारा जारी 5,2022 सर्कुलर / सरकारी आदेश ड्रेस कोड तय करने से गलत निष्कर्ष निकलता है कि हिजाब पहनना संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत संरक्षित नहीं है. राज्य सरकार ने ड्रेस के मुद्दे को संबंधित कॉलेज विकास समितियों पर छोड़ने के लिए राज्य सरकार का निर्णय अवैध है.

देवदत्त कामत: सरकारी आदेश (हिजाब पर प्रतिबंध) सही नहीं है. यह GO (सरकारी आदेश) अनुच्छेद 25 के तहत है और यह कानूनी रूप से टिकाऊ नहीं है.

कर्नाटक हाई कोर्ट- कोर्ट ने मीडिया से की अपील, कहा- मीडिया से हमारी सबसे बड़ी गुजारिश है कि वे ज्यादा जिम्मेदार बनें

हिजाब विवाद में कर्नाटक हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान छात्राओं की तरफ से दलील दे रहे हैं वकील देवदत्त कामत

कर्नाटक उच्च न्यायालय ने कॉलेजों में हिजाब पर प्रतिबंध को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की.

कर्नाटक हाईकोर्ट की मुख्य न्यायाधीश रितु राज अवस्थी (Chief Justice Ritu Raj Awasthi), न्यायमूर्ति कृष्णा एस दीक्षित (Justice Krishna S Dixit) और न्यायमूर्ति जेएम खाजी (Justice JM Khazi) की पीठ सुनवाई करेगी.

कर्नाटक में खुले स्कूल, हिजाब में दिखीं छात्राएं
ह‍िजाब मामले पर जारी सुनवाई के बीच कर्नाटक में सोमवार से स्‍कूल-कॉलेज खुल गए. कोर्ट के रोक के बावजूद उडुपी में कई स्कूल छात्राएं हिजाब और बुर्का पहनकर स्कूल जाती दिखीं. उडुपी जिला प्रशासन ने सभी हाई स्कूल, और उनके आसपास के क्षेत्रों में धारा-144 लागू कर दी थी. यह आदेश 14 फरवरी को सुबह छह बजे से 19 फरवरी की शाम छह बजे तक प्रभावी रहेगा. सरकार और जिला प्रशासन की ओर से पर्याप्त सुरक्षा बंदोबस्त किए गए हैं. वहीं, मुख्यमंत्री ने राज्य में शांति व्यवस्था कायम रहने की उम्मीद जताई है.

पिछली सुनवाई में क्‍या हुआ था?
ह‍िजाब मामले को लेकर कर्नाटक हाई कोर्ट पिछली बार गुरुवार को सुनवाई थी. कर्नाटक उच्च न्यायालय की पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े और देवदत्त कामत को सुनने के बाद सुनवाई सोमवार तक के लिए स्थगित कर दिया था. साथ ही कोर्ट ने कहा है क‍ि वह कॉलेजों को फिर से खोलने का निर्देश देने वाला एक आदेश पारित करेंगे और फैसला आने तक छात्रों को धार्मिक चीजों को पहनकर कॉलेज नहीं आना है. कोर्ट का कहना है कि शांति होनी चाहिए.

बुधवार को सुनवाई के दौरान क्या हुआ था?
गुरुवार से ए‍क दिन प‍हले बुधवार को इस मामले पर सुनवाई हुई थी. तब जज केएस दीक्षित ने टिप्पणी करते हुए कहा था कि ये मामला बुनियादी महत्व के कुछ संवैधानिक प्रश्नों को उठाता है. ऐसे में चीफ जस्टिस को यह तय करना चाहिए कि क्या इस पर सुनवाई के लिए बड़ी बेंच का गठन किया जा सकता है. छात्राओं की ओर से अंतरिम राहत देने की मांग की गई, जिसका कर्नाटक सरकार ने विरोध किया.

Source : News Nation Bureau

Karnataka Hijab Row Karanataka High Court Karnataka Education Act-1983
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