एक समाज सेविका ने अपना प्लाज्मा दान कर 20 वर्षीय युवती की जान बचाई है. ललितपुर की अलका जैन प्लाज्मा डोनेट करने वाली बुंदेलखंड की पहली महिला बनीं हैं. हालांकि इससे पहले झांसी में तीन पुरुष भी प्लाज्मा थेरेपी के लिए अपना-अपना प्लाज्मा डोनेट कर चुके हैं. ललितपुर की बिटिया तनुशा (20) के झांसी कोरोना वार्ड में गंभीर स्थिति में भर्ती होने पर उसको प्लाज्मा थेरेपी के लिए प्लाज्मा की आवश्यकता थी. उसका ब्लड ग्रुप बी पॉजिटिव था. अलका अमित प्रिय जैन को जब इस बारे में पता चला तो उन्होंने झांसी जाकर अपना प्लाज्मा डोनेट किया. वह खुद भी 14 जुलाई को कोरोना संक्रमित हुई थीं और 23 जुलाई को ठीक हो कर तालबेहट से डिस्चार्ज हो गई थी. डॉक्टर ने बताया कि कोरोना मरीज स्वस्थ होने के 28 दिन बाद अपना प्लाज्मा डोनेट कर सकता है. जिसे गंभीर रूप से पीड़ित मरीज के ब्लड से क्रॉस मैच किया जाता है.
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डोनर के शरीर में मात्र 72 घंटे प्लाज्मा रिकवर हो जाता
एंटीबॉडीज की जांच तथा अन्य जांचें की जाती हैं. इसके बाद उसका प्लाज्मा लिया जाता है और देने वाले का 20 से लेकर 40 घंटे तक समय लगता है. डोनर के शरीर में मात्र 72 घंटे प्लाज्मा रिकवर हो जाता है. वह तीन दिन बाद पुनः प्लाज्मा डोनेट कर सकता है. एक बार में 400 ML प्लाज्मा डोनेट किया जाता है. जिसे 200ml, 200 Ml करके दो बार में चढ़ाया जाता है. अतः जिस व्यक्ति को कोरोना हुआ हो व वह स्वस्थ हो चुका हो. वह अपना प्लाज्मा देकर गंभीर रूप से कोरोना से पीड़ित मरीज की जान बचा सकता है. कोरोना की जंग जीतने के बाद उसके शरीर में एंटीबाडीज तैयार हो जाती है. जो प्लाज्मा के माध्यम से गंभीर रूप से पीड़ित मरीज के शरीर में जाकर बहुत तेज रिकवरी देता है.
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प्लाज्मा डोनेट करने के बाद बिल्कुल भी कमजोरी महसूस नहीं हो रही
अलका जैन ने बताया कि उन्हें प्लाज्मा देने के बाद ऐसा लगा ही नहीं कि उनके शरीर से कुछ निकला है. जबकि इसके पूर्व वह 7 बार ब्लड डोनेट कर चुकी हैं. लेकिन ब्लड डोनेट करने के बाद थोड़ी सी कमजोरी महसूस होती है, लेकिन प्लाज्मा डोनेट करने के बाद बिल्कुल भी कमजोरी महसूस नहीं हो रही है. अतः जो लोग कोरोना की जंग जीतकर स्वस्थ हो चुके हैं. वह अपना प्लाज्मा डोनेट कर गंभीर रूप से जिनके फेफड़ों में कोरोना संक्रमण कर गया है, उनको प्लाज्मा देकर उनकी जान अवश्य बचा सकते हैं.