Thank you CJI...सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, AMU छात्रों और प्रशासन में खुशी की लहर

सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ द्वारा अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के अल्पसंख्यक दर्जे को लेकर दिए गए फैसले के बाद छात्रों और अधिकारियों ने अपनी खुशी व्यक्त की है.

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Garima Sharma
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Thank you CJI...सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, AMU छात्रों और प्रशासन में खुशी की लहर

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सुप्रीम कोर्ट ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) के अल्पसंख्यक दर्जे को लेकर महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है. संविधान पीठ ने 4-3 के बहुमत से AMU के माइनॉरिटी स्टेटस को बरकरार रखा है. हालांकि, अब एक नियमित बेंच यह तय करेगी कि क्या AMU को अल्पसंख्यक संस्था का दर्जा दिया जाए या नहीं. इस फैसले के बाद छात्रों और विश्वविद्यालय प्रशासन में खुशी की लहर दौड़ गई है. 

सुप्रीम कोर्ट का फैसला 

सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की संविधान पीठ ने AMU के अल्पसंख्यक दर्जे पर 4-3 का फैसला सुनाया, जिसमें AMU को माइनॉरिटी स्टेटस देने का समर्थन किया गया. हालांकि, बेंच ने यह भी स्पष्ट किया कि यह अंतिम निर्णय नहीं है. अब एक नियमित बेंच यह तय करेगी कि AMU को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा दिया जा सकता है या नहीं. 

इस फैसले से पहले AMU में भारी हलचल देखने को मिल रही थी. पुलिस ने सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए थे, और सभी की नजरें सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर टिकी थीं. जब फैसला आया, तो छात्रों और अधिकारियों ने इसे ऐतिहासिक और सही ठहराया.

छात्रों और अधिकारियों की खुशी

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद AMU के छात्र बेहद खुश नजर आए. एक छात्र ने News18 से बातचीत में कहा, "AMU एक सेंट्रल यूनिवर्सिटी है और इसे माइनॉरिटी स्टेटस मिलना चाहिए था. सुप्रीम कोर्ट ने हमारे हक में फैसला सुनाया है." यूनिवर्सिटी के अधिकारियों ने भी फैसले का स्वागत किया. एक अधिकारी ने कहा, "हम सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सम्मान करते हैं. अब, सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने जो निर्णय दिया है, वह हमारे लिए एक सकारात्मक संकेत है."

समाजवादी पार्टी का बयान

सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर समाजवादी पार्टी (SP) के प्रवक्ता अमीक जामेई ने भी प्रतिक्रिया दी. उन्होंने कहा, "संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत AMU को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा मिलना चाहिए था. यह संविधान की जीत है और अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा करता है."

फैसले का महत्व और आगे का रास्ता

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में 1967 के अजीज बाशा मामले को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि AMU को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा नहीं मिल सकता क्योंकि इसकी स्थापना मुसलमानों ने नहीं की थी. सुप्रीम कोर्ट ने यह माना कि केवल संस्थान की स्थापना ही नहीं, बल्कि इसका प्रशासन भी महत्वपूर्ण है. यदि संस्थान के प्रशासन में अल्पसंख्यक समुदाय की महत्वपूर्ण भूमिका है, तो वह अल्पसंख्यक दर्जे का दावा कर सकता है. 

अब, मामले को एक नियमित बेंच के पास भेजा जाएगा, जो तय करेगी कि AMU को संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा दिया जा सकता है या नहीं.

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