इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति एक्ट के तहत मुकदमा चलाए जाने को लेकर एक अहम आदेश दिया है. हाई कोर्ट का कहना है कि इस एक्ट में मुकदमा तभी चलाया जाए, जब अपराध करते समय आरोपी को पता हो कि वह विशेष वर्ग का है. हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि मुकदमा चलाने के लिए यह जरूरी कि जान-बूझकर एससी-एसटी के साथ अपराध किया गया हो. यदि अपराध करने वाले को यह पता न हो कि वो एससी-एसटी एक्ट का उल्लंघन कर रहे हैं तो इस कानून के प्रावधान उन पर लागू नहीं होंगे.
कोर्ट ने अनुसूचित जाति की बच्ची से हुए दुष्कर्म के मामले में आरोपी को राहत दे दी. कोर्ट ने एससी-एसटी एक्ट के तहत मिली सजा से आरोपी को इसी आधार पर बरी कर दिया.
हाईकोर्ट ने जिला कोर्ट की उम्रकैद की सजा को घटाकर दस वर्ष कर दिया. अलीगढ़ के शमशाद की अपील पर हाई कोर्ट ने यह आदेश सुनाया. याची के खिलाफ नौ वर्ष की बच्ची से दुष्कर्म के मामले में मुकदमा दर्ज था.
15 अप्रैल 2009 को दर्ज मुकदमे में एससी-एसटी एक्ट की धाराएं भी लगी थीं. जस्टिस पंकज नकवी और जस्टिस एसएस शमशेरी की पीठ ने शमशाद की जेल में बिताई गई 12 वर्ष की अवधि को पर्याप्त मानते हुए रिहा करने का आदेश दिया.
Source : News Nation Bureau