उत्तर प्रदेश में लव जेहाद के मामलों के बीच शादियों के रजिस्ट्रेशन को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने बुधवार को बड़ा फैसला सुनाया है. हाईकोर्ट ने शादियों से पहले नोटिस प्रकाशित होने और उस पर आपत्ति मंगाने को गलत माना है. कोर्ट ने इसे स्वतंत्रता और निजता के मौलिक अधिकारों का हनन बताया है. कोर्ट ने विशेष विवाह अधिनियम की धारा 6 और 7 को गलत बताया है.
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि किसी के दखल के बिना पसंद का जीवन साथी चुनना व्यक्ति का मौलिक अधिकार है. स्पेशल मैरिजेस एक्ट के तहत कोर्ट ने यह अहम फैसला सुनाया है. इसके साथ ही कोर्ट ने फैसले में एक महीने तक शादी करने वालों की फोटो नोटिस बोर्ड पर लगाने की पाबंदी को खत्म कर दिया है.
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि शादी कर रहे लोग अगर नहीं चाहते तो उनका ब्यौरा सार्वजनिक न किया जाए. ऐसे लोगों को सूचना प्रकाशित कर उस पर लोगों की आपत्ति न ली जाए. हालांकि, विवाह अधिकारी के सामने यह विकल्प रहेगा कि वे दोनों पक्षों की पहचान, उम्र व अन्य तथ्यों को सत्यापित कर ले. कोर्ट ने टिप्पणी कि है कि इस तरह का कदम सदियों पुराना है, जो युवा पीढ़ी पर क्रूरता तथा अन्याय करने जैसा है.
आपको बता दें कि हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच से जस्टिस विवेक चौधरी ने स्पेशल मैरिज को लेकर ये फैसला दिया है. साफ़िया सुलतान की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर कोर्ट ने आदेश दिया है. साफिया सुल्तान ने हिंदू धर्म अपनाकर अभिषेक कुमार पांडेय से विवाह किया था. शादी करने के लिए सफिया सुल्तान ने अपना नाम बदल सिमरन कर लिया था. सुनवाई पूरी होने के बाद हाईकोर्ट ने 14 दिसंबर को अपना फैसला सुरक्षित रखा था. हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने बुधवार को अपना फैसला सुनाते हुए याचिका निस्तारित कर दी है.
Source : News Nation Bureau