इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ज्ञानवापी परिसर का भारतीय पुरातत्व विभाग से सर्वे कराने के वाराणसी की अदालत के आदेश व सिविल वाद की वैधता को लेकर दाखिल याचिकाओं पर दोनों पक्षों की बहस पूरी होने के बाद फैसला सुरक्षित कर लिया है. साथ ही फैसला आने तक सर्वे कराने के वाराणसी की अदालत के आदेश पर लगी रोक बढ़ा दी है. सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड व अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी की याचिकाओं की सुनवाई न्यायमूर्ति प्रकाश पाडिया कर रहे हैं. याची अधिवक्ता पुनीत कुमार गुप्ता का कहना था कि प्लेसेस आफ वर्शिप एक्ट 1991की धारा 4के तहत सिविल वाद पोषणीय नहीं है.
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स्थापित कानून हैं कि कोई आदेश पारित हुआ है और अन्य विधिक उपचार उपलब्ध नहीं है तो अनुच्छेद 227 के अंतर्गत याचिका में चुनौती दी जा सकती है. वरिष्ठ अधिवक्ता एस एफ ए नकवी ने गुप्ता की बहस को अपनाया लिया. कोर्ट ने कहा दोनों अधिवक्ता 227 मे याचिका दाखिल करने के पक्ष में कोई कानून नहीं दिखा सके. विपक्षी मंदिर पक्ष के अधिवक्ता सी एस वैद्यनाथन,विजय शंकर रस्तोगी का कहना था कि भगवान विश्वेश्वर स्वयं भू भगवान है. प्रकृति प्रदत्त है. मानव द्वारा निर्मित नहीं है. उन्होंने इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के एम सिद्दीकी बनाम महंत सुरेश दास व अन्य केस के फैसले का हवाला दिया.
उन्होंने कहा मूर्ति स्वयं भू प्राकृतिक है. इसलिए प्लेसेस आफ वर्शिप एक्ट की धारा 4 इस मामले में लागू नहीं होगी. वैद्यनाथन का कहना था कि आदेश 7 नियम 11 सिविल प्रक्रिया संहिता की अर्जी वाद के तथ्यों पर ही तय होगी. सिविल वाद में लिखा है कि स्वयं भू विश्वेश्वर नाथ मंदिर सतयुग से है. 15 अगस्त 1947 से पहले और बाद में लगातार निर्बाध रुप से पूजा की जा रही है. याची का यह कहना कि कोई स्वयं भू भगवान सतयुग में नहीं था ,इसका निर्धारण साक्ष्य से ही हो सकता है. यह भी तर्क था कि वाराणसी अदालत के आदेश के खिलाफ याची की पुनरीक्षण अर्जी खारिज हो गई है. कोर्ट ने आपत्ति को पोषणीय नहीं माना. इस आदेश के खिलाफ अनुच्छेद 227 मे याचिका पोषणीय नहीं है. याचिका खारिज की जाए. कोर्ट ने दोनों पक्षों की लंबी चली बहस के बाद सभी विचाराधीन याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित कर लिया है.
HIGHLIGHTS
- फैसला आने तक सर्वे कराने की रोक को कोर्ट के आदेश पर बढ़ाया
- याची का यह कहना कि कोई स्वयं भू भगवान सतयुग में नहीं