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Ayatollah Khamenei: ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्ला खामनेई का UP कनेक्शन, इस गांव से जुड़ा है इतिहास

Ayatollah Khamenei: ईरान- इजराइल युद्ध के कारण ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्ला अली खामनेई चर्चा में हैं. लेकिन क्या आपको पता है कि अयातुल्ला अली खामनेई के तार यूपी से भी जुड़े हैं.

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Yashodhan.Sharma
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Ayatollah Khamenei
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इजराइल और ईरान के बीच भीषण युद्ध छिड़ा हुआ है. आतंकी संगठन हिजबुल्लाह के चीफ हसन नसरल्लाह की मौत के बाद दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ गया है. दोनों देश एक-दूसरे को मिटाने के लिए मिसाइल से अटैक कर रहे हैं.

ईरान की ओर से इजराइल पर 200 से अधिक रॉकेट दागे गए हैं. रॉकेट से इजराइल को काफी नुकसान पहुंचा है. ईरान का कहना है कि उसने ये हमले हानिया और हसन नसरल्लाह की मौत का बदला लेने के लिये किया है.

यूपी से जुड़े हैं अयातुल्ला के तार

वहीं, अब ईरान- इजराइल युद्ध के कारण ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्ला अली खामनेई चर्चाओं में आ गए हैं. लेकिन क्या आपको पता है कि अयातुल्ला अली खामनेई का यूपी से भी कनेक्शन है. ईरान के सबसे बड़े नेता अयातुल्ला अली खामनेई के पूर्वज बाराबंकी के हैं.

नाम के साथ हिंदी जोड़ने का कारण

अयातुल्ला अली खामनेई के दादा सैय्यद अहमद मूसवी हिंदी का जन्म 1790 में बाराबंकी की सिरौलीगौसपुर तहसील के छोटे से गांव किन्तूर में हुआ था, बाद में वह ईरान के खुमैनी गांव जाकर बस गए और वहीं से उनका परिवार आगे बढ़ा. अयातुल्ला अली खामनेई के पिता धार्मिक नेता थे, भारतीय मूल को न भूलें इसके लिए खुद सैय्यद अहमद मूसवी ने भी अपने नाम के साथ ‘हिंदी’ जोड़ना जारी रखा.

1830 में छोड़ा था भारत

बता दें कि सैय्यद अहमद मूसवी हिंदी लगभग 40 साल की उम्र में अवध के नवाब के साथ 1830 में इराक होते हुए ईरान पहुंचे. सैय्यद अहमद मूसवी हिंदी के बेटे अयातुल्ला मुस्तफ़ा हिंदी इस्लामी धर्मशास्त्र के बड़े विद्वान बने. उनके बेटे रूहुल्लाह का जन्म 1902 में हुआ. जो आगे चलकर ‘अयातुल्ला अली खामनेई’ या ‘इमाम खुमैनी’ के नाम से मशहूर हुए. खामनेई ने 1979 में ईरान में इस्लामी क्रांति की अगुवाई की और देश को इस्लामिक गणराज्य के रूप में स्थापित किया.

इसलिए किया पलायन

किंतूर के ग्रामीणों ने बताया कि अयातुल्ला रूहुल्ला खामनेई साहब के दादाजी सैयद अहमद मूसवी हिंदी का जन्म 1790 में यहीं पर किन्तूर में हुआ था. अयातुल्ला अली खुमैनी के परिवार के आदिल का कहना है कि 40 साल की उम्र में अवध के नवाब के साथ 1830 में इराक होते हुए ईरान पहुंचे. अंग्रेजी हुकूमत से तंग आकर उन्होंने ईरान के खुमैन गांव में बस गए .

 तो बाराबंकी का नाम गर्व से लिया जाता है

वहीं आदिल ने लोकल 18 से बातचीत में बताया कि ईरान में बसने के बाद खुमैनी साहब के पिता अयातुल्ला मुस्तफा हिंदी का जन्म हुआ. जब हम लोग सुनते हैं कि उन्होंने इतनी बड़ी क्रांति की और इस्लामिक गणराज्य की स्थापना की तो हमें बहुत फक्र होता है. ईरान एक शांति पसंद मुल्क है और ईरान ने कभी किसी के ऊपर हमला नहीं किया. जब भी खुमैनी की इस्लामी क्रांति की चर्चा होती है, तो बाराबंकी का नाम भी गर्व से लिया जाता है. 

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