अयोध्या (Ayodhya) विवाद पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के फैसले (Ayodhya Verdict) का ऐलान जल्द होने वाला है. गृहमंत्रालय द्वारा सभी राज्यों को अलर्ट भी कर दिया गया है. सोशल मीडिया पर भी प्रशासन नजर रखे हुए है. कोई माने या नहीं माने, लेकिन बीजेपी के लिए अयोध्या और राम मंदिर का मुद्दा ट्रंप कार्ड साबित हुआ. 2 सीट से सत्ता के शिखर तक पहुंची बीजेपी के लिए यह मुद्दा सत्ता दिलाने में अहम भूमिका निभाया. आइए जानें बीजेपी के लिए कैसे ट्रंप कार्ड बना अयोध्या विवाद..
- 1984 के लोकसभा चुनाव में राम मंदिर दूर दूर तक मुद्दा नहीं थी . बीजेपी लोकसभा चुनाव में महज 2 सीटें जीत पाई
- 1984 में विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) ने बाबरी मस्जिद के ताले खोलने और राम जन्मस्थान को स्वतंत्र कराने व एक विशाल मंदिर के निर्माण के लिए अभियान शुरू किया। एक समिति का गठन किया गया।
- बीजेपी ने भी अंदरखाने इस आंदोलन का समर्थन किया
- 1989 में बीजेपी ने पलमपुर अधिवेशन में राम मंदिर आंदोलन को धार देने का फैसला किया. बीजेपी 1989 के लोकसभा चुनाव में 2 सीट से बढ़कर 85 पर पहुंच गई.
- 25 सितंबर, 1990: बीजेपी अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवाणी ने गुजरात के सोमनाथ से उत्तर प्रदेश के अयोध्या तक रथ यात्रा निकाली, जिसके बाद साम्प्रदायिक दंगे हुए।
- 30 अक्टूबर 1990 : कारसेवकों ने मस्जिद पर हमला किया
- 2 नवंबर 1990 : अयोध्या में 2 नवंबर, 1990 को हुए गोलीकांड में कई कारसेवक मारे गए
- नवंबर 1990: आडवाणी को बिहार के समस्तीपुर में गिरफ्तार कर लिया गया। बीजेपी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री वी.पी. सिंह की सरकार से समर्थन वापस ले लिया।
- 1991 लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने पहली बार 100 का आंकड़ा पार किया और 120 लोकसभी सीटें जीतीं
- यूपी से लेकर राजस्थान और मध्य प्रदेश सहित कई राज्यों में बीजेपी की सरकारें बनी थी.
- 1996 लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने राम मंदिर मुद्दा अपने घोषणा पत्र में शामिल किया । सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का नारा बुलंद किया ।
- लेकिन 1996 में लोकसभा की 161 सीटें जीतने के बावजूद अटल बिहारी को 13 दिन के बाद प्रधानमंत्री के रूप में इस्तीफ़ा देना पड़ा.वजह थी कट्टर हिंदुत्ववादी पार्टी की छवि , इस वजह से पार्टियां समर्थन देने से बचती रहीं
- 1992- 16 दिसंबर की तारीख को मस्जिद में हुई तोड़फोड़ की जांच के लिए लिब्राहन आयोग का गठन किया गया. जज एमएस लिब्रहान के नेतृत्व में पूरे मामले की जांच शुरू की गई.
- 2002-अप्रैल में हाईकोर्ट के तीन जजों की पीठ ने अयोध्या के विवादित स्थल पर मालिकाना हक को लेकर सुनवाई शुरू की.
- 2003- इलाहाबाद हाईकोर्ट के निर्देश पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने अयोध्या में खुदाई की.
- 2009- लिब्रहान आयोग ने अपने गठन के लगभग डेढ़ दशक बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को अपनी जांज रिपोर्ट सौंपी.
- 2010- 30 सितंबर को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए विवादित जमीन को तीन हिस्सों में बांट दिया. इसमें एक हिस्सा राम मंदिर, दूसरा सुन्नी वक्फ बोर्ड और तीसरा निर्मोही अखाड़ा को दे दिया गया.
- 2011- इस साल 9 मई को सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी.
- 2017- 21 मार्च को सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर ने इस विवाद को आपसी सहमति से सुलझाने की सलाह दी.
- 2018- 29 जुलाई सुप्रीम कोर्ट ने मामले की जल्द सुनाई पर इनकार करते हुए केस जनवरी 2019 तक के लिए टाल दिया.
- 2019- सुप्रीम कोर्ट ने 8 जनवरी 2019 को चीफ जस्टिस की रंजन की अध्यक्षता में पांच जजों की संवैधानिक पीठ का गठन किया है. पीठ में चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के अलावा जस्टिस एस ए बोबडे, एन वी रमन्ना, यू यू ललित और डी वाई चंद्रचूड़ को भी शामिल किया.
- 2019- 10 जनवरी 2019 को पीठ में शामिल जस्टिस यू यू ललित ने खुद को संवैधानिक पीठ से अलग कर लिया, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के लिए नई बेंच का गठन करने के लिए 29 जनवरी की तारीख तय की.
- 2019- 25 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता में इस मामले की सुनवाई के लिए संवैधानिक पीठ का गठन किया. चीफ जस्टिंस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली इस पीठ में जस्टिस एस ए बोबडे, जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्चिस एस ए नजीर को शामिल किया गया.
- 6 अगस्त 2019 से 16 अक्टूबर 2019 तक 40 दिनों तक इस केस की रोज़ाना सुनवाई हुई , 17 नवम्बर से पहले अब इस केस में फैसला आना है
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