उत्तर प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर भारतीय जनता पार्टी ने चुनावी रणनीति बनानी शुरू कर दी है. बीजेपी पंचायत चुनाव में जीत के बाद मिशन 2022 को लेकर कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहती. पार्टी कभी केवल सवर्णों की मानी जाती थी, लेकिन बीजेपी इस मिथक तोड़ना चाहती है. हाल के वक्त में भारतीय जनता पार्टी ने खुद को पिछड़ों की पार्टी के रूप में पेश करने के संकेत दिया है. कभी समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी की वोट बैंक माने जाने वाली पिछड़ी जातियों में पिछले काफी वक्त से भारतीय जनता पार्टी ने भी सेंधमारी शुरू कर दी है, जो उत्तर प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों के लिहाज से महत्वपूर्ण है.
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गैर-यादव ओबीसी जातियों को जोड़ने में सफल रही बीजेपी
दरअसल, साल 2014 के बाद से ही बीजेपी गैर-यादव ओबीसी जातियों जैसे कुर्मी, कुशवाहा, लोध, जाट और कुछ अन्य छोटी जातियों को अपने वोटबैंक में जोड़ने में सफल रही है. 2022 के विधानसभा चुनावों से पहले भारतीय जनता पार्टी ओबीसी मतदाताओं के बीच अपनी पकड़ को और मजबूत करना चाहती है.
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गैर-यादव ओबीसी जातियों के 148 उम्मीदवारों को टिकट दिया था
न्यूज वेबसाइट ईटी के अनुसार, 23 जुलाई को नई दिल्ली में बीजेपी ओबीसी मोर्चा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक है. माना जा रहा है कि इस बैठक में यूपी में ओबीसी के बीच पैर जमाने का मुद्दा उठाए जाने की संभावना है. ओबीसी समुदाय पर भारतीय जनता पार्टी की पकड़ कमजोर न हो जाए, इसलिए पार्टी अभी से ही रणनीति बनाने में जुट गई है. हालांकि, यूपी में बीजेपी के लिए एकमात्र समस्या जाट है, जिसका एक वर्ग कृषि कानूनों को लेकर पार्टी से नाराज दिख रहा है. जाटों की आबादी 2 प्रतिशत है, मगर यूपी में विधानसभा की 55 सीटें ऐसी हैं, जहां उनका दबदबा है. फिर भी नरेंद्र कश्यप ने दावा किया कि किसान संघ के साथ कुछ ही जाट हैं. उनमें से ज्यादातर हमारे साथ हैं. बता दें कि 2017 के विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने गैर-यादव ओबीसी जातियों के 148 उम्मीदवारों को टिकट दिया था और इससे पार्टी को लाभ हुआ.
HIGHLIGHTS
- मिशन 2022 के लिए बीजेपी का फॉर्मूल तैयार
- ओबीसी पर खेलेंगे दांव, जीतेंगे यूपी!
- गैर-यादव ओबीसी जातियों पर बीजेपी की फिर नजर!