कोरोना की इस गंभीर स्थिति के बीच बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के जूलॉजी विभाग के प्रोफेसर ज्ञानेश्वर चौबे ने दावा किया है कि आने वाले 2-3 हफ्तों में कोरोना की रफ्तार कम हो रही है. उन्होंने कहा है कि इंफेक्शन का लेवल दो से तीन सप्ताह में सैचुरेशन तक पहुंच गया है. जिसके बाद वायरस को मीडियम न मिलने के कारण कोरोना केस कम आने लगे है और जल्द ही कोरोना का की चेन टूटेगी. इसके साथ ही उन्होंने वैकिसन को लेकर भी रिसर्च की है जिसमे किस तरह से वैक्सीन एंटी बॉडी विकसित करता है कितने दिनों में व्यक्ति सुरक्षित हो जाता है इसकी भी रसर्च सामने आई है.
देश में कोरोना की दूसरी लहर के चलते संक्रमण तेजी से बढ़ने के बीच प्रोफेसर ज्ञानेश्वर चौबे की अगुआई में वैज्ञानिकों की टीम ने बनारस में लोगों का परीक्षण किया. इसमें यह पता चला कि बीते वर्ष सितम्बर से नवम्बर के बीच सीरो सर्वे में जिन 100 लोगों में 40 फीसदी तक एंटीबॉडी थी उनमें से 93 लोगों में पांच महीने बाद यानी कि इस साल मार्च तक 4 फीसदी ही एंटीबॉडी बची थी. सिर्फ सात लोग ऐसे मिले जिनमें पूरी एंटीबॉडी बची है.
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प्रोफेसर ने बताया कि सीरो सर्वे के समय यह अनुमान लगाया गया था कि जिन लोगों में एंटीबॉडी मिली है वह छह महीने तक बनी रहेगी. लेकिन ऐसा हुआ नहीं है. कोरोना की पहली लहर में बिना लक्षण वाले मरीजों की संख्या बहुत अधिक थी और उनमें एंटीबॉडी नाममात्र की बनी थी. ऐसे में बिना लक्षण वाले कोरोना वायरस का आसानी से निशाना बने और मौत भी उन्हीं की सबसे अधिक हुई. जिनमें एंटीबॉडी बनी भी तो छह महीने से पहले ही खत्म होने की वजह से ऐसे लोग कोरोना की दूसरी लहर की चपेट में आने से बच नहीं पा रहे हैं.
प्रोफेसर का दावा है की इंफेक्शन का लेवल दो से तीन सप्ताह में सैचुरेशन तक पहुंच जाएगा. जिसके बाद वायरस को मीडियम न मिलने के कारण कोरोना केस कम आने लगेंगे. हालांकि उन्होंने सावधान भी किया है कि हमें सतर्क रहकर संक्रमण से बचना पड़ेगा. जब कोरोना के फैलाव को हम कम कर देंगे तो इसकी चेन भी तोड़ी जा सकेगी.
प्रोफेसर ज्ञानेश्वर के अनुसार वाराणसी में मरीजों के रिकवरी रेट में काफी सुधार देखने को मिला है. उन्होंने बताया कि वाराणसी में 15 अप्रैल को रिकवरी रेट 20 फीसदी के आसपास था. पिछले कुछ दिनों में यह 80 फीसदी तक चला गया है. रिकवरी रेट में इस प्रकार से चार गुने से ज्यादा की बढ़ोत्तरी हुई है. उन्होंने कहा कि वाराणसी में अभी तक जितने भी लोग वैक्सीनेटेड या इंफेक्टेड हुए है और जो लोग एंटीबॉडी कैरी कर रहे है. इन सभी को काउंट किया जाए तो वाराणसी में सभी को मिलाकर लगभग 5 लाख से अधिक जनसंख्या वायरस के खिलाफ इम्यूनिटी ले चुकी है जिससे अब खतरा कम हो रहा है.
इसके साथ ही वैक्सीनेशन पर प्रो. ज्ञानेश्वर ने बताया कि वैज्ञानिकों की टीम टीकाकरण कराने वालों पर शोध में जुटी है. प्रारंभिक परिणाम से यह सामने आया है कि पहली लहर में संक्रमित न होने वालों में वैक्सीन लगवाने के बाद एंटीबॉडी बनने में चार सप्ताह तक का समय लगा. जबकि संक्रमित हो चुके लोगों में वैक्सीन लगने के हफ्ते-दस दिन में एंटीबॉडी बन गई. इसके पीछे संक्रमित लोगों की इम्युनिटी में मेमोरी बी सेल का निर्माण होना है. यह सेल नए संक्रमण की पहचान कर व्यक्ति की प्रतिरोधक क्षमता को सक्रिय कर देती है. इसलिए जो लोग पिछली बार संक्रमित हुए थे, वे दूसरी लहर में जल्द ठीक हो गए. लेकिन जो पहली लहर की चपेट में आने से बच गए थे, उनमें मृत्यु दर ज्यादा देखी जा रही है.
प्रोफ़ेसर बताते है की जो वायरस से पहले संक्रमित हो चुके है उनके लिए वैक्सीन की पहली डोज ही काफी है पर जो अभी तक संक्रमित नहीं हुए उन्हें दोनों डोज लेना जरूरी है. उन्होंने आगे कहा कि तीसरी लहर आने में कुछ समय है तब तक बच्चो के टिके बाजार में आ गए तो बहुत हद तक राहत होगी पर समय रहते तीसरी लहर की तैयारी पूरी होनी चाहिए तब तीसरी लहर का मुकाबला आसनी से किया जा सकता है और वैक्सीनेशन जितनी तेजी से होगा कोरोना से लड़ाई उतनी सहायक होगी.