2013 में हुए मुजफ्फरनगर दंगा (Muzaffarnagar riots) मामले में कोर्ट ने सबूतों के अभाव में 12 आरोपियों को बरी कर दिया है. इस मामले में अभियोजन की ओर से पेश किए गए तीन गवाह अपने बयान से पलट गए. जिसके बाद अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश संजीव कुमार तिवारी ने सभा आरोपियों को भारतीय दंड संहिता की धारा 395 (डकैती) और 436 (आगजनी) के आरोपों से बरी कर दिया.
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7 सितंबर 2013 को मुजफ्फरनगर जिले के लिसाढ गांव में दंगों के दौरान भीड़ ने कई घरों में आग लगा दी थी और वहां लूटपाट की घटनाओं को अंजाम दिया था. गांव निवासी मोहम्मद सुलेमान ने 16 सितंबर को फुगाना थाने में दर्ज कराई गई थी. उसने गांव के ही नरेंद्र उर्फ लाला, धर्मेंद्र उर्फ काला, बिजेंद्र, राजेंद्र, अनुज, अमित, ब्रह्म, सुरेंद्र, कृष्णा, निशु, शोकेंद्र, बिट्टू उर्फ अरुण के खिलाफ आगजनी और डकैती की शिकायत दी थी.
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शिकायत में आरोप लगाए गए थे कि 7 सितंबर की शाम को ये सभी आरोपी हथियारों से लैस होकर उनके घर में घुसे और परिजनों से मारपीट की. इस दौरान इन्होंने करीब डेढ़ लाख की नगदी, जेवरात और अन्य सामान लूट ली और मकान में आग लगा दी. इसके बाद मामले की जांच एसआईटी को सौंपी गई थी.
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अभियोजन पक्ष के मुताबिक, एसआईटी (SIT) ने मामले में 13 लोगों के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया था. साथ ही सभी आरोपियों पर भारतीय दंड संहिता की धारा 395 (डकैती) और 436 (आगजनी) के मामले दर्ज किए गए थे. मामले के लंबित रहने के दौरान एक आरोपी ऋषिदेव की मौत हो गई थी.
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