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COVID-19 Exclusive: न्यूरोसर्जन ने बनाया कोरोना संक्रमण रोकने का उपकरण, ऐसे करेगा काम

अस्पताल से कुछ चीजों का जुगाड़ करके एम्बुलेंस, ओपीडी, इमरजेंसी वार्ड और वेंटिलेटर पर मरीज के होते हुए भी पैरा मेडिकल और चिकित्सक कैसे सेफ रह सकते हैं, उसका बेहतरीन आइडिया साकार कर लिया है.

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Ravindra Singh
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सांकेतिक चित्र( Photo Credit : फाइल)

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कोविड 19 में बचाव के रास्ते सबसे महत्वपूर्ण हैं, सोशल डिस्टेंसिंग पर ही सारा जोर दिया जा रहा है, लेकिन मेरठ के न्यूरो सर्जन डा. संजय शर्मा ने कुछ दिनों की रिसर्च करके अपने अस्पताल से कुछ चीजों का जुगाड़ करके एम्बुलेंस, ओपीडी, इमरजेंसी वार्ड और वेंटिलेटर पर मरीज के होते हुए भी पैरा मेडिकल और चिकित्सक कैसे सेफ रह सकते हैं, उसका बेहतरीन आइडिया साकार कर लिया है. दरअसल, न्यूरो सर्जन डा. संजय शर्मा का कहना है कि किसी भी संदिग्ध मरीज को भी इसी विधि से चेक करना चाहिए.

उन्होंने चार जगहों पर इसके इस्तेमाल की बात कही है. दरअसल उनका कहना है कि मास्क के बावजूद मरीज की सांसों से कोरोना वायरस का संक्रमण बाहर आता रहता है और चेकिंग करने वाले डाक्टर, केयर करने वाले स्टाफ उससे संक्रमित हो सकते हैं. इसके लिए मरीज की सांस सीधे एक जार में जाए और उसमें सोडियम हाइपो कारबोनेट हो जिससे कि वो बैक्टिरीया वहीं मर जाए. डा. संजय शर्मा ने अपने नर्सिंग होम में अपनी एम्बुलेंस, अपनी ओपीडी, इमरजेंसी वार्ड और आईसीयू में वेंटिलेटर पर ये डेमो करके दिखाए हैं.

डा. संजय शर्मा कहते हैं कि किसी भी संदिग्ध मरीज को सबसे पहले एम्बुलेंस से ही अस्पताल ले जाया जाता है. इसमें मरीज को स्ट्रेचर पर लिटा दिया जाता है, उसके मास्क भी अगर लगा हो फिर भी उसकी सांसों से छोड़े गए किटाणु एम्बुलेंस में फैल कर पैरा मेडिकल स्टाफ को संक्रमित कर सकते हैं, इसलिए जरूरत है कि इन कीटाणुओं को कैद कर लिया जाए. कैसे, डा. संजय शर्मा ने अपने नर्सिंग होम की एम्बुलेंस में ये करके दिखाया. उन्होंने बताया कि एम्बुलेंस में लाने वाले मरीज को वेंटी मास्क लगाया जाए, जिसमें थोड़ा से मॉडीफिकेशन करके दो ट्यूब जोड़कर मरीज के द्वारा छोड़ी गई सांस को नेगेटिव प्रेशर से जार के थ्रू पास करते हैं, जिसमें एक प्रतिशत सोडियम हाइपो क्लोराइड होती है. पाइप के जरिये ये सांस उस जार में जाएगी और सांस में होने वाली कीटाणु क्लोराइड के वजह से वहीं मर जाएंगे. इससे स्टाफ संक्रमित होने से बच जाएगा.

डा.संजय कहते हैं कि दूसरा स्टेप होता है ओपीडी या इसे क्लीनिक भी कह सकते हैं. यहां जब किसी भी मरीज की जांच होती है, चाहे वो कोविड-19 से पीड़ित हो या न हो लेकिन जांच के उपरांत ही किसी के पॉजिटिव होने की सूचना मिलती है, ऐसे में कौन से मरीज इन्फेक्टेड है या नहीं हैं ये किसी को नहीं पता चलता. मेरठ के जिला अस्पताल में एक गर्भवती महिला का अल्ट्रा साउंड हुआ वो कोरोना पोजिटिव थी, मगर चिकित्सकों ने उसकी जांच की और सभी संक्रमित हो गए और सारा स्टाफ कोरोन्टाइन करना पड़ा.

ऐसे में डा. संजय शर्मा ने अपने नर्सिंग होम में एक चैम्बर बनाया है, जो किसी भी धातु का हो सकता है. इस चैम्बर में उन्होंने कुछ इंतजाम किए हैं. दरअसल इस चैम्बर में केवल मरीज बैठेगा. चैम्बर के हिस्से में बड़ा ग्लास लगाया गया है, इसे ट्रायल रुम भी कह सकते हैं. बाहर से ही एक छेद करके अंदर रबड़ का मोटा ग्लब्स डाला गया है, मरीज के मुंह से सैम्पल लेने के लिए. साथ ही आडियो वायर और एक कैमरा भी लगाया गया है. डाक्टर या पैरा मेडिकल स्टाफ बाहर से इम मरीज का सैम्पल ले सकता है, और डाक्टर अपने चैम्बर से ही मरीज को कैमरे के जरिये देख सकता है. यही नहीं इस चैम्बर में एक्जॉस्ट फैन और वैक्यूम मोटर के जलिए चैम्बर की हवा एक एयर पाइप से बाहर ले जाई जाती है और इस पाइप को एक ड्रम में डाला गया है.

आपको बता दें कि इस ड्रम में भी सोडियम हाइपो क्लोराइ डाला गया है. डा.संजय एडवाइस करते हैं कि सारे मेडिकल कालेज में इस तरह के चैम्बर बनने चाहिए जिससे कि मरीज का इलाज भी हो जाए और कोई उसके सम्पर्क में भी न आए, न उसकी सांसों से बाकी लोग इन्फेक्टेड हों. डा.संजय इस चैम्बर का काम बताते हुए कहते हैं कि इसमें तीसरा स्टेप होता है इमरजेंसी वार्ड या आइसोलेशन वार्ड डा.संजय ने अपने इमरजेंसी वार्ड के एक बेड पर पुतला रखकर डेमो दिखाया, उन्होंने बताया कि मरीज को हर अस्पताल में आक्सीजन देने की व्यवस्था होती है, ऐसे में मरीज के मुंह पर एक बड़ा सा आक्सीजन हुड लगाया जाए और मरीज के द्वारा छोड़ी गई सांस जार में जमा कर ली जाए, उस जार में भी हाइपर सोडियम क्लोराइड डाली जाए और सेंटल वैक्यूम लाइन के जरिये इसे इमरजेंसी से बाहर ले जाया जाए, जिससे बाकी मरीज और स्टाफ भी संक्रमित होने से बचेंगे.

सबसे महत्वपूर्ण और गंभीर चौथा स्टेप है आईसीयू इस चरण में वेंटीलेटर में भी डा.संजय ने ट्यूब के जरिये ये डेमो करके दिखाया है कि कैसे जिस मरीज को वेंटिलेटर लगाया गया है कि उसकी सांस वेंटिलेटर वहीं आईसीयू वॉर्ड में ही फेंकता है. हालांकि वेंटिलेटर में फिल्टर लगा होता है. मगर फिल्टर सिर्फ बैक्टिरीया को ही फिल्टर करता है मगर वायरस को नहीं मार सकता है, इसके लिए वेंटिलेटर में एक बैग लगाकर यहां भी उसे कलेक्ट किया जा सकता है. और सेंट्रल सेक्शन के जरिये इस संक्रमित सांस को बाहर किया जा सकता है.

Source : News Nation Bureau

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