दिल्ली की एक स्पेशल फास्ट ट्रेक कोर्ट ने पुलिस कस्टडी में एक युवक की दर्दनाक मौत के मामले में उत्तर प्रदेश पुलिस के 2 सब इंस्पेक्टर समेत पांच पुलिस कर्मियों को 10-10 साल की सश्रम कैद और भारी जुर्माना भरने की सजा सुनाई है. यह केस सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर दिल्ली की फास्ट ट्रेक कोर्ट में साल 2011 में ट्रांसफर हुआ था, क्योंकि पीड़ित पक्ष को आशंका थी कि यूपी पुलिस मामले की जांच और यूपी में न्यायिक प्रक्रिया को प्रभावित कर सकती है. बुधवार शाम कड़कड़डूमा अदालत के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश संजीव कुमार मल्होत्रा ने दोषियों को सजा सुनाई.
यह भी पढ़ें-Lok Sabha Election 2019 : वाराणसी में प्रियंका गांधी के दिखे कई रंग, कहीं ली सेल्फी तो किसी को लिया गोद
सजा सुनाए जाने से पहले बचाव पक्ष के वकीलों ने अदालत से दोषी पुलिस कर्मियों के प्रति नरमी बरतने की अपील की. दलील दी कि दोषी गिरफ्तारी के बाद 18 से 23 महीने अदालत में बीता चुके हैं, उनका सर्विस रेकॉर्ड अच्छा रहा है और जेल जाने से उन पर अश्रित परिजन बेसहारा रह जाएंगे. इसी बिनाह पर प्रॉबेशन (नेकचलनी) पर छोड़ने की मांग की. लेकिन अदालत ने बिना सबूत एक नौजवान को कस्टडी में रखने और गैर इरादतन हत्या के जुर्म की गंभीरता को देखते हुए बचाव पक्ष की अपील को खारिज कर दिया.
कोर्ट ने यूपी पुलिस के सब इंस्पेक्टर हिन्दवीर सिंह, सब इंस्पेक्टर महेश मिश्रा, कॉन्स्टेबल प्रदीप, कॉन्स्टेबल पुष्पेंद्र और कॉन्स्टेबल हरीपाल को 10-10 साल कैद की सजा सुनाई है. सभी पुलिस कर्मियों पर पांच-पांच लाख रुपये जुर्माना भी लगाया है. इस साजिश में शामिल कुंवरपाल नाम के शख्स को 3 साल कैद की सजा सुनाई है.
उत्तर प्रदेश के खुर्जा के हजरतपुर गांव में रहने वाले 26 साल के सोमवीर को पुलिस 1 सितंबर 2006 की शाम उसके घर से ले गई थी. उसके ऊपर मोबाइल लूटने का केस दर्ज किया गया और उसे नोएडा सेक्टर-20 थाने के लॉकअप में रखा गया था. अगली सुबह पीड़ित परिवार को खुर्जा पुलिस से सूचना मिली कि सोमवीर की लॉकअप में मौत हो गई है. परिजन थाने पहुंचे तो पुलिस ने उन्हें बताया कि सोमवीर ने लॉकअप में अपनी कमीज से फांसी लगा ली, इस बात से परिजन सन्न रह गए, उन्होंने देखा कि सोमवीर की गर्दन पर जले के निशान हैं और सिर के पिछले हिस्से में चोट भी लगी है. उन्होंने पुलिस पर लॉकअप में थर्ड डिग्री प्रताड़ना देकर हत्या करने का आरोप लगाया.
मामले की वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के सुपरविजन में जांच हुई. उसके बाद आरोपी पुलिस कर्मियों के खिलाफ केस दर्ज कर लिया गया. जिसके बाद सभी की गिरफ्तारी हुई, लेकिन बाद में सभी को जमानत मिल गई.
यह भी पढ़ें- मतदान का जज्बा : राम प्रसाद शर्मा 110 साल की उम्र में 17वीं लोकसभा के लिए करेंगे मतदान
बचाव पक्ष के वकील एस.के. आहलूवालिया ने बताया कि जमानत मिलने के बाद सभी आरोपी पुलिस कर्मी बहाल हो गए साथ ही कुछ की पदोन्नति भी हुई. ऐसे में पीड़ित पक्ष को आशंका हुई कि वह जांच के साथ न्यायिक प्रक्रिया को भी प्रभावित कर सकते हैं, इसलिए सुप्रीम कोर्ट में केस दिल्ली ट्रांसफर करने की अर्जी लगाई.
वर्ष 2012 में शुरू हुई दिल्ली की अदालत में सुनवाई
दिल्ली की अदालत में साल 2012 में मामले की सुनवाई शुरू हुई. केस में कुल 32 गवाह पेश किए गए. इस दौरान यह तथ्य भी सामने आए कि पुलिस कर्मियों ने अपने बचाव में दस्तावेजों से भी छेड़छाड़ की थी.
अदालत ने यूपी पुलिस के डीजीपी को निर्देश दिए हैं कि इस मामले में घटना के दौरान नोएडा सेक्टर-20 थाने में तैनात रहे इंस्पेक्टर दीपक चुतर्वेदी और कॉन्स्टेबल मनोज के खिलाफ थाने के रेकॉर्ड से छेड़छाड़ कराने के मामले में विभागीय कार्रवाई की जाएगी.
Source : News Nation Bureau