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आठ माह तक दर-दर भटकी गीता, बजरंगी भाईजान बनकर मनोज ने परिवार से मिलाया, जानें पूरा मामला

सलमान की फिल्म बजरंगी भाईजान की तरह इस मामले में गीता को मनोज उसके घर तक लाने में मदद करता है. वोटर आईडी कार्ड की फोटो को लेकर मनोज उसे खोजने का प्रयास करता था. 

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Mohit Saxena
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सलमान खान और करीना कपूर की बजरंगी भाई जान फिल्म आपने देखी होगी लेकिन हम आपको दिखाते है अयोध्या के गीता की वह कहानी  जो भले ही फिल्मी लगती हो लेकिन असलियत में इसके किरदार और उनके जज्बात बिलकुल असली है. इनके दर्द भी असली है और बिछड़ने का गम और मिलने की खुशी भी असली है. सलमान खान की फिल्म की कहानी में 5 वर्ष की मुन्नी परिवार से भटक जाती है और दर दर ठोकरे खाने के बाद सलमान से मिलती है और उनकी कोशिश से अपने परिवार से, लेकिन अयोध्या की यह कहानी तीन बच्चों की मां गीता और उसके परिवार की आप बीती है. 

दर दर भटकती गीता और एक रिश्ते के जन्म की भी कहानी है, जिसे वह अब अपना भाई कहती है. उसकी कोशिशों से अब वह अपने परिवार से आखिरकार मिल सकी. यह कहानी उस परिवार की भी है जिसने अब गीता से मिलने की आस ही छोड़ दी थी और अब मिलने के बाद आंखो में खुशी के आंसू है तो जुबा से शब्द ही गायब है. 

जेवरात एक पोटली में बांध कर निकल पड़ती है

दरअसल दो बेटों और एक बेटी की मां गीता की तबियत खराब होती है. जिसका असर उसके दिमाग पर भी पड़ता है. 8 माह पूर्व एक दिन  वह अपने घर से सारे जेवरात एक पोटली में बांध कर निकल पड़ती है. वह दर-दर भटकती रहती है, मांगने से जो खाना मिला वह खा लेती है, चबूतरा हो या कोई और जगह जहां भी मन किया सो जाती है. लेकिन वह अपनी पोटली को हमेशा सीने से लगाए रहती है. 2 महीने भटकते भटकते बीत जाता है. अयोध्या के जनौरा क्षेत्र में गेस्ट हाउस चलाने वाले मनोज पाठक की नजर एक दिन गीता पर पड़ती है तो वह उसे अपने घर लाते हैं. उसकी देखभाल करते हैं और इलाज कराते है. गीता को अभी भी अपने परिवार के बारे में कुछ याद नहीं आता. वह कहती है उसका कोई नहीं है और घर अतिक्रमण की चपेट में आकर गिर गया है. 

फोटो खींच कर मनोज लगातार उसकी तलाश करता

विश्वास का धागा मजबूत होता है तो वह अपने जेवरात की पोटली भी मनोज को दे देती है लेकिन परिवार के बारे में उसे अभी भी कुछ याद  नहीं आता. गीता के वोटर कार्ड और उसकी फोटो खींच कर मनोज लगातार उसकी तलाश करता है और बजरंग बली के दिन मंगलवार को महीनों बाद आखिरकार उसकी यह तलाश पूरी हो जाती है. उम्मीद के कमजोर धागे को पकड़े हुए परिवार को गीता से मिलने के बाद इतनी खुशी मिलती है की आंखों से खुशी के आंसू बहने लगते है लेकिन होठों से शब्द बड़ी मुश्किल से निकलते है. घर जाते समय गीता को उसके जेवरात भी दे दिए जाते है लेकिन घर जाने के पहले गीता जिद कर बैठती है कि उसके भाई उसे घर तक छोड़ने जाए. वही भाई जो उसको अचानक मिले, जिन्होंने न सिर्फ उसको अपने परिवार से मिलाया बल्कि एक बार फिर उसके जीवन को रोशन कर दिया. अंततः अब गीता परिवार के साथ अपने घर चली गई है और इसी के साथ फिल्मी जैसी इस पूरी पटकथा का सुखद अंत हो गया. 

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