धार्मिक पुस्तकों के विश्व के सबसे बड़े प्रकाशन केंद्र गीता प्रेस का शताब्दी वर्ष समारोह आज से गोरखपुर में शुरू हो गया है. यह समारोह आने वाले एक साल तक मनाया जाएगा. 4 जून को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद (Ram Nath Kovind) इसका आधिकारिक उद्घाटन करेंगे, 99 सालों के सफर में गीता प्रेस ने ना सिर्फ धार्मिक बल्कि नैतिक और सांस्कृतिक साहित्य की मशाल को भी थामे रखा है. अपने स्थापना के सौवें साल में प्रवेश कर रहा गीता प्रेस देश में उस समय स्थापित हुआ था जब भारत में धर्म परिवर्तन अपने चरम पर था. आज़ादी के संघर्ष के दौरान गीता प्रेस की स्थापना साल 1923 में हुई थी.
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इसको जय दयाल गोयनका ने स्थापित किया था. इसकी स्थापना के बाद इसके विस्तार में हनुमान प्रसाद पोद्दार का बड़ा योगदान रहा. स्थापना के पहले 4 वर्षों तक गीता प्रेस ने प्राचीन धर्मग्रंथ ही छापे थे. इसके प्रकाशन का दायरा साल 1927 में तब बढ़ा जब हनुमान प्रसाद पोद्दार ने कल्याण नाम की एक मैगज़ीन प्रकाशित की. इस कदम ने गीता प्रेस को एक नई पहचान दी.
हिन्दुओं के धर्मग्रंथों को छापने वाली गीता प्रेस का 99 साल में पूरी तरह से कायाकल्प हो गया है. अब गोरखपुर में गीताप्रेस में पुस्तकों का प्रकाशन हाईटेक तकनीक से हो रहा है. इसके लिए अब जापान और जर्मनी की मशीनों को प्रयोग में लाया जा रहा है. इन मशीनों से 15 भाषाओं 1800 से भी अधिक पुस्तकों की 50,000 कॉपियों को प्रतिदिन प्रकाशित किया जा रहा है. गीता प्रेस की पुस्तकें अधिकतर धार्मिक स्वभाव के हिन्दुओं के पूजा घरों में पाई जाती हैं. इन पुस्तकों में भगवत गीता, पुराण, चालीसा, रामायण और महाभारत जैसे ग्रंथ प्रमुख हैं. किताबों की मांग इस उत्पादन से काफी अधिक है.
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गीताप्रेस के प्रोडक्शन मैनेजर का कहना है कि इससे जुड़े हुए लोगों का कहना है कि उनका ध्यान लोगों को कम दामों में अच्छी किताब दिलाने पर है. उन्होंने कभी फायदे के लिए काम नहीं किया. लोग इस बात से आश्चर्य भी करते हैं कि इतने कम दाम में ऐसा वह कैसे कर पाते है. गीताप्रेस पुस्तकों के दाम काबू में इसलिए रख पाता है क्योंकि वह कच्चा माल इंडस्ट्री से नहीं खरीदते हैं. गीता प्रेस कोई डोनेशन नहीं लेता बल्कि वह इसे अपने दूसरी संस्थाओं से प्राप्त मुनाफे के दम पर चलाता है. आज गीता प्रेस की पहुँच हर घर तक है. अब तक 16 करोड़ 17 लाख श्रीमद भगवतगीता, 20 करोड़ 39 लाख रामचरित मानस, 2 करोड़ 61 लाख पुराण उपनिषद, महिलाओं और बच्चों के लिए उपयोगी पुस्तकें 2 करोड़ 61 लाख, भजन माला और अन्य 15 करोड़ 73 लाख धार्मिक पुस्तकें यहाँ से बिक चुकी हैं. हालांकि कुछ सालों पहले गीता प्रेस के आर्थिक संकट से बंद होने की अफवाह भी सोशल मीडिया पर तेजी से फैली थी लेकिन यह महज अफवाह ही थी और इस दौरान गीताप्रेस ने करोड़ों रुपए की आधुनिक मशीनों की खरीदारी भी की.
गीता प्रेस की अति प्रसिद्ध पुस्तक कल्याण के हिंदी वर्जन को लगभग 2,45,000 लोगों ने सब्स्क्राइब कर रखा है. इसी के इंग्लिश वर्जन कल्याण – कल्पतरु को लगभग 1,00,000 लोगों ने सब्स्क्राइब किया है. गीता प्रेस के कार्यालय को भी धार्मिक रूप से बनाया गया है. यहाँ प्रवेश द्वारा पर एलोरा की गुफाओं के चित्रों के साथ श्रीकृष्ण और अर्जुन की तस्वीर दिखाई देती है. यहाँ दरवाजों पर चारों धाम के चित्र बने हुए हैं. गीता प्रेस का कार्यालय कुल 32 एकड़ में फैला हुआ है. इसके कार्यालय का उद्घाटन 29 अप्रैल 1955 को भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने किया था. गीता प्रेस में कुल 4 विभाग हैं. इसमें प्री प्रेस, प्रिंटिंग, बाइंडिंग और डिस्ट्रीब्यूशन शामिल हैं. यहां पर घूमने आने वाले लोग भी यहां की व्यवस्था को लेकर भाव विभोर हो जाते हैं.
4 जून को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद गीताप्रेस के शताब्दी वर्ष समारोह का आधिकारिक उद्घाटन गोरखपुर में करेंगे. 99 साल का सफर पूरा कर गीताप्रेस आज से सौवें वर्ष में प्रवेश कर गया है और इस बार इन्होंने लक्ष्य रखा है कि देश के सभी हिंदू घरों में गीता प्रेस की पुस्तकों को पहुंचाया जाए और धर्म के साथ सांस्कृतिक और नैतिक मूल्यों को भी बढ़ाने के लिए गीता प्रेस अपना योगदान दे सकें इस दिशा में काम किया जाए.
(दीपक श्रीवास्तव की रिपोर्ट)