गोरखपुर के पादरी बाज़ार इलाके में एक छोटी सी दुकान के मालिक हैं वीरेंद्र पासवान। दूध दही और मिठाइयों की इस दुकान को वीरेंद्र 1995 से चला रहे हैं और तभी से चल रहा है इनका वो काम जो इनको आज गोरखपुर ही नहीं बल्कि पूरे पूर्वांचल में सबसे अलग पहचान दिलाता है। वीरेंद्र अपने युवावस्था में खुद खिलाडी बनना चाहते थे और इसके लिए इन्होने काफी मेहनत भी की पर आर्थिक और पारिवारिक जिम्मेदारियों की वजह से इनको अपना खेलप्रेम छोड़ना पड़ा और दूध का व्यापार शुरू करना पड़ा। दूध की दुकान तो चल निकली पर एक खिलाडी का मन आज भी खेल से दूर नहीं हुआ। वीरेंद्र ने तय किया कि जिस वजह से उनका खेल से नाता टूट गया उस वजह से दूसरे प्रतिभावान खिलाडियों को दिक्कत न झेलनी पड़े और इसके बाद इन्होने अपनी दुकान समर्पित कर दी उन नए खिलाडियों को जो सुविधाओं के अभाव में पीछे रह जाते हैं।
वीरेंद्र ने अपनी दुकान पर आने वाले सभी खिलाडियों को मुफ्त में दूध दही मिठाई और पनीर देना शुरु कर दिया। जो खिलाड़ी आर्थिक रूप से कमजोर होते उनको रुपयों से मदद करते, उनके लिए एक अदद छत भी मुहैया कराते और पूरी कोशिश करते कि उसका जीवन संवर जाए। इनकी दुकान और दरियादिली कि बदौलत आज 100 से अधिक खिलाडी राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय खेल में भाग ले रहे है। कई यही रहकर और यहाँ का दूध-दही खाकर आज सरकारी सेवा में जा चुके हैं। पिछले 18 सालों हर रोज इनकी दुकान पर दर्जनों उभरते खिलाडी आते हैं और यह उनको अपनी दुकान का दूध, मिठाई और पनीर मुफ्त खिलाने के साथ उनके रहने-खाने, किट और कहीं आने जाने के लिए रूपयों-पैसों की भी व्यवस्था करते हैं।
हर सुबह वीरेन्द्र की दुकान पर इन खिलाडियों की भीड़ लगी रहती है जो यहाँ खाने के बाद अपने साथ भी दूध दही लेकर जाते है। इसके अलावा गोरखपुर के रीजनल स्टेडियम में खेलने वाले अधिकतर खिलाडी यहाँ पर आकर वीरेन्द्र का सहयोग लेते है। वीरेन्द्र के इस काम में इनके घरवाले भी इनका पूरा सहयोग करते हैं। वीरेन्द्र ने अपने भाई को पढाकर उनकी सरकारी नौकरी लगा दी है और आज दोनों भाई इस दुकान की कमाई से गरीब एथलीट को आगे लाने और उसे उसकी मंजिल दिलाने का प्रयास कर रहे है। हालत ये हैं की आज यहां के खिलाडी इनको अपना गॉडफादर मानते हैं। राष्ट्रीय और अर्न्तराष्ट्रीय स्तर पर पहुंच चुके खिलाडी आज अपने जीवन के संवरने में वीरेन्द्र का महत्वपूर्ण योगदान मानते हैं। इनका मानना है कि ऐसे लोग 10-20 और हो जाए तो कई अन्य लोगों को भी आगे बढने का अवसर मिलेगा।
वीरेंद्र का मानना है कि उन्होंने बस एक छोटा सा प्रयास किया है उन प्रतिभाओं के लिए जो सुविधाओं के अभाव में दम तोड़ देती हैं। हर इंसान को अपने छोटी कमाई में दूसरों के लिए कुछ न कुछ प्रयास करना चाहिए ताकि खेलों को नयी ऊर्जा और हौसलों से लैस प्रतिभाये मिल सकें। वीरेन्द्र भले ही अपने सपने को पूरा नहीं कर पाए लेकिन उनके जज्बे ने कई राष्ट्रीय और अर्न्तराष्ट्रीय खिलाडियों के सपनों को पंख दे दिया है जिससे वह उंची उडान के सपनों को पूरा कर सकें। यदि देश का हर नागरिक इन दूधवाले की तरह सोच रखे तो प्रतिभाएं कभी भी अभावग्रस्त नहीं होंगी और देश ही नहीं, विदेशों तक में भारत का नाम रोशन कर, पदक लाने के अपने सपने को पूरा करने में कामयाब हो सकेंगी।
Source : Jaivardhan Singh Rajput