Hathras Stampede: कैसे पुलिस की नौकरी छोड़ सत्संग की दुनिया में आए बाबा साकार हरि? खुद के पास है अपनी फौज
हाथरस के सिकन्दाराराऊ में साकार हरि नाम के जिस बाबा के सत्संग में भगदड़ मची, उनका असली नाम सूरज पाल है. साकार हरि अपने प्रवचन में दावा करते हैं कि पहले वह पुलिस के खुफिया विभाग में नौकरी करते थे.
New Delhi:
Hathras Stampede: साकार हरि की अपनी फौज है. हल्के गुलाबी रंग के पैंट-शर्ट, पुलिस बेल्ट, हाथ में लाठी और सीटी लेकर हजारों की संख्या में इनके स्वयंसेवक कार्यक्रम स्थल और सड़कों पर चप्पे-चप्पे पर तैनात रहते हैं. एक नजर में देखने पर यह होमगार्ड जैसा कोई अनुशासित बल दिखाई देता है. बड़ी संख्या में महिला स्वयंसेवक भी तैनात रहती हैं. इनकी भी वर्दी होती है. बाबा की यह लंबी-चौड़ी फौज ट्रैफिक व्यवस्था से लेकर, पानी और दूसरे इंतजाम देखती है. कार्यक्रम स्थलों पर बाबा की फौज का यह गणवेश आप कई काउंटरों से बिकते देख सकते हैं. कहा जाता है इसे खरीदने की अनुमति उन्हीं लोगों की होती है, जिसे बाबा चाहते हैं. कई बार यह स्वयंसेवक आम आदमी को कार्यक्रम स्थल के पास से गुजरने से रोक भी देते हैं. प्रशासन भी इन स्वयंसेवकों के भरोसे शायद उतना ध्यान नहीं देता जितना उसे देना चाहिए. शायद प्रशासन की उपेक्षा और बाबा के स्वयंसेवकों पर जरूरत से ज्यादा भरोसे ने हाथरस जैसे बड़े हादसे को जन्म दिया है. हादसे से हाथरस से लेकर लखनऊ और दिल्ली तक हड़कंप मचा हुआ है.
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हाथरस के सिकन्दाराराऊ में साकार हरि नाम के जिस बाबा के सत्संग में भगदड़ मची, उनका असली नाम सूरज पाल है. साकार हरि अपने प्रवचन में दावा करते हैं कि पहले वह पुलिस के खुफिया विभाग में नौकरी करते थे. बाद में उन्होंने नौकरी छोड़कर सत्संग करना शुरू कर दिया. प्रवचन के क्षेत्र में आने के बाद सूरजपाल ने अपना नाम साकार विश्व हरि रख लिया. उन्हें भोले बाबा के नाम से भी जाना जाता है. परंपरागत कथावाचकों से अलग भोले बाबा थ्री पीस सूट में प्रवचन देते हैं. सत्संग के दौरान उनके साथ उनकी पत्नी भी विराजमान रहती हैं.
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एटा में जन्म हुआ, दान-दक्षिणा नहीं लेते
भोले बाबा एटा जिले के बहादुर नगरी गांव के रहने वाले हैं. उनकी शुरुआती पढ़ाई एटा जिले में हुई. वह कांशीराम नगर में पटियाली गांव के रहने वाले हैं. बचपन में पिता के साथ खेती-किसानी करते थे. जवान हुए तो पुलिस में भर्ती हो गए. उनकी पोस्टिंग यूपी के 12 थानों के अलावा इंटेलिजेंस यूनिट में रही. 18 साल की नौकरी के बाद उन्होंने 90 के दशक में VRS ले लिया. अब अपने गांव में झोपड़ी बनाकर रहते हैं. अध्यात्म की तरफ जाने के बाद उन्होंने अपना नाम बदलकर साकार विश्वहरि रख लिया. उनकी पत्नी भी समागम में साथ रहती हैं. वह किसी अन्य बाबा की तरह भगवा पोशाक नहीं पहनते. वह अपने सत्संग में सफेद सूट और सफेद जूते में नजर आते हैं. कई बार कुर्ता-पैजामा और सिर पर सफेद टोपी भी लगाकर सत्संग करने पहुंचते हैं.
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