पूर्वांचल से मानसून मानो रूठ गया है। आसमान में बादल छाते तो हैं लेकिन बिना बरसे वापस चले जाते हैं। आषाढ़ का पूरा महीना बिना बरसे बीत गया तो वहीं सावन महीने की शुरुआत होने के बाद भी अब तक बारिश की फुहार यहां की धरती पर नहीं पड़ी है। खेतों में धान की फसल सूखने के साथ-साथ अब जलने लगी है और किसानों की सारी मेहनत उनकी आंखों के सामने ही बर्बाद होती नजर आ रही है। प्रकृति के इस मार से बचने के लिए पूर्वी उत्तर प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में लोग ईश्वर की शरण में जाने को मजबूर हो गए हैं और अब तक बरसात का नहीं होना दैवीय आपदा मान रहे हैं।
गोरखपुर के सिधावल गांव में आज सैकड़ों की संख्या में महिलाओं और पुरुषों ने भगवान इंद्र और सूर्यदेव की उपासना की। देवताओं को मनाने के लिए हवन पूजन किया और धरती की प्यास बुझाने की कामना की। ग्रामीण महिलाओं ने भगवान सूर्य से उन की तपिश कम करने की प्रार्थना करते हुए उनको धार चढ़ाया। पीतल के लोटे में जल लेकर उसमें नीम की पत्तियां डालकर सूर्य को अर्पित किए जाने वाले जल को धार कहते हैं। माना जाता है कि भगवान सूर्य इससे काफी प्रसन्न होते हैं और इससे सूर्यदेव की तपिश कम होती है। गांव के ब्रह्म स्थान पर एकत्र हुए गांव की सैकड़ों महिलाओं और पुरुषों ने इंद्रदेव को मनाने के लिए पारंपरिक गीतों के जरिए उनसे अपनी पीड़ा कही। बारिश नहीं होने से परेशान ग्रामीणों का कहना है कि इस बार इंद्रदेव नाराज नजर आ रहे हैं और यही कारण है कि जहां दूसरे प्रदेशों में हर रोज बारिश हो रही है वहां यह महीनों से बारिश की एक बूंद को भी देखने के लिए तरस गए हैं।
इसके साथ ही भगवान सूर्य की अग्निवर्षा की वजह से उनके खेतों में मानो आग सी लग गई है। पंपिंग सेट से खेतों की सिंचाई भी काफी मुश्किल हो गई है क्योंकि मंहगे डीजल वाले पंपिंग सेट से पानी चलाकर खेत को सींच पाना यहां के गरीब किसानों के वश में नहीं है। यहां के लोगों के लिए खेती ही उनकी आजीविका का सबसे बड़ा विकल्प है और अगर इस बार खेत में फसल नही हुई तो ना तो उनके घरों में कोई मांगलिक कार्यक्रम हो पाएगा और ना ही पूरे साल उनके बच्चों का पेट पल पायेगा। विज्ञान भी इस बार पूरी तरह से मौसम को लेकर भविष्यवाणी करने में फेल साबित हुआ है ऐसे में अब भगवान ही एकमात्र रास्ता है जो उन्हें इस विकट घड़ी से निकाल सकेंगे। ईश्वर को मनाने के लिए वह लोग लगातार पूजा अर्चना कर रहे हैं ताकि दैवीय प्रकोप कम हो और इंद्र देव की कृपा से यहां की धरती की प्यास भी बुझ सके।
Source : Deepak Shrivastava