उत्तर प्रदेश में लव जिहाद और अवैध धर्मांतरण पर रोक लगाने के लिए बनाए गए यूपी सरकार के 'अध्यादेश' के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में आज सुनवाई होगी. बता दें कि उत्तर प्रदेश में बनाए गए कानून के खिलाफ सर्वोच्च न्यायलय में याचिकाएं दाखिल की गई थीं. याचिकाकर्ताओं का आरोप है कि नया कानून उनके मौलिक अधिकारों का हनन है. उनका कहना है कि उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार का ये कानून संविधान की मूल भावना के खिलाफ है, लिहाजा इन्हें निरस्त किया जाना चाहिए.
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बताते चलें कि देश के 104 पूर्व नौकरशाहों ने भी पत्र लिखकर आरोप लगाया था कि उत्तर प्रदेश राजनीतिक घृणा, विभाजन और कट्टरता का केंद्र बन गया है. वहीं, इसके बाद सोमवार को 224 से ज्यादा पूर्व सैनिक, पूर्व न्यायाधीश और कई बुद्धिजीवियों ने जवाबी पत्र में सरकार के काम की तारीफ की है. बताया जा रहा है कि सरकार के पक्ष में लिखे गए पत्र में कहा गया है कि यह सियासत से प्रेरित है. साथ ही कहा गया है कि ऐसे लोग एक लोकप्रिय और चुनी हुई सरकार को बदनाम करने की कोशिश कर रहे हैं.
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तीन पेज की चिट्ठी में देश के जाने-माने रिटायर्ड जज, ब्यूरोक्रेट, आर्मी अफसर और पूर्व कुलपतियों ने संयुक्त बयान जारी किए हैं. जो उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव और राज्य सभा के पूर्व सेक्रेटरी जनरल योगेन्द्र नारायण की ओर से जारी किया गया है. इस पर 224 बुद्धिजीवियों के हस्ताक्षर हैं. इन्होंने कहा कि इनके बयान को ब्यूरोक्रेसी की राय न समझी जाए. बता दें कि उत्तर प्रदेश में 27 नवंबर, 2020 को जारी अध्यादेश में धर्म परिवर्तन की प्रक्रिया का जिक्र है और अवैध धर्मांतरण पर रोक लगाई गई है. मध्य प्रदेश की बीजेपी सरकारने भी इसी तरह का अध्यादेश जारी किया है.
Source : News Nation Bureau