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विचाराधीन कैदियों के लिए बनी योजनाओं को लागू करने के निर्देश

कोर्ट ने गंभीर अपराधों में जेल में बंद कैदियों को कानूनी सहायता मुहैया कराने के निर्देश दिए हैं.

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Vijay Shankar
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Allahabad High Court

Allahabad High Court ( Photo Credit : File)

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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है हर कैदी को कोर्ट में जमानत अर्जी दाखिल करने का कानूनी अधिकार है. इस अधिकार से उसे वंचित नहीं किया जा सकता. कोर्ट ने विचाराधीन कैदियों को कानूनी सहायता और बिना देरी किए जमानत अर्जी दाखिल करने के मामले में विधिक सेवा प्राधिकरण की  योजनाओं के प्रभावी  क्रियान्वयन का निर्देश दिया है. कोर्ट ने कहा है कि कानूनी सहायता और जमानत अर्जी  दाखिल करने का अधिकार आपस में जुड़ा हुआ है. कोर्ट ने कहा कि विधिक सेवा प्राधिकरण को इस पर काम करने की जरूरत है. कोर्ट ने गंभीर अपराधों में जेल में बंद कैदियों को कानूनी सहायता मुहैया कराने के निर्देश दिए हैं. यह आदेश न्यायमूर्ति अजय भनोट ने जौनपुर के अनिल गौर उर्फ सोनू की जमानत अर्जी पर सुनवाई करते हुए दिया है. 

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कोर्ट ने गंभीर अपराधों में विचाराधीन मामलों में जेल में बंद कैदियों को कानूनी सहायता मुहैया कराने के लिए एक व्यापक कार्यक्रम बनाने को भी कहा है. कोर्ट ने कहा कि ऐसे बंदियों को चिह्नित किया जाए जो ट्रायल कोर्ट से जमानत खारिज होने के बाद हाईकोर्ट में जमानत के लिए अर्जी नहीं दे पाए या जो हाईकोर्ट में पहली जमानत अर्जी खारिज होने के बाद दूसरी जमानत अर्जी नहीं दाखिल कर पाए। कोर्ट ने जमानत अर्जियों पर प्रभावी रूप से पैरवी नहीं कर पाने वाले कैदियों को भी चिह्नित करने को कहा है. यह भी निर्देश दिया कि जो अधिवक्ता ऐसे कैदियों को कानूनी सहायता मुहैया कराते हैं, उन्हें सुविधाएं मुहैया कराई जाए ताकि वह जरूरी दस्तावेज प्राप्त कर सकें. कोर्ट ने न्याय पाने वाले बंदियों की पहचान करने और विधिक सहायता का निर्धारण करने की जेलों में एक स्थापित प्रक्रिया की जरूरत बताई. 

कोर्ट ने जेल अधिकारियों को भी निर्देश दिया है कि वे विधिक सेवा प्राधिकरण का सहयोग करें. याची की ओर से तर्क दिया गया कि 2019 में उसकी जमानत अर्जी ट्रायल कोर्ट ने खारिज कर दी थी. याची एक गरीब व्यक्ति है, जिसे उसके नजदीकियों और रिश्तेदारों ने भी जेल जाने के बाद छोड़ दिया और हाईकोर्ट में याचिका दाखिल करने में उसे तीन साल लग गए. 

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