एक वो भी जमाना था, जब हिंदुस्तान में स्त्री को चौका-चूल्हे तक समेट दिया गया था. महिला सशक्तीकरण के दौर ने मगर आज सब कुछ बदल डाला है. बदले दौर की रफ्तार के साथ क्या कुछ बदला है? देश की राजधानी दिल्ली से सटे उत्तर प्रदेश के हाईटेक शहर नोएडा में रहने वाला एक दंपति देगा इसका माकूल जबाब. यहां आईपीएस पत्नी होगी, आईपीएस पति की 'बॉस'.
यह सब कमाल है जिले में हाल ही में लागू हुए 'पुलिस कमिश्नरी सिस्टम' और एक खुबसूरत प्रेम-कहानी का.
इस खुबसूरत मीठी मगर सच्ची कहानी के मुख्य किरदार हैं वृंदा शुक्ला और अंकुर अग्रवाल. दोनों आईपीएस हैं. बचपन में अंबाला में पड़ोसी थे, सो हाईस्कूल तक दोनों अंबाला के ही जीसस एंड मेरी स्कूल में साथ-साथ ही पढ़े भी. वृंदा शुक्ला अब तक लखनऊ स्थित पुलिस महानिदेशालय (मुख्यालय) में नियुक्त थीं. वृंदा को अब गौतमबुद्ध नगर में पुलिस कमिश्नरी सिस्टम लागू होते ही यहां तैनाती दे दी गई है. पद मिला पुलिस उपायुक्त यानि डीसीपी (महिला सुरक्षा).
वृंदा के पति अंकुर अग्रवाल को एक महीने पहले ही गौतमबुद्ध नगर जिले में नगर पुलिस अधीक्षक पद पर तैनात किया गया था. कमिश्नरी सिस्टम लागू हुआ तो आईपीएस पत्नी का यहां तैनाती मिलते ही रुतबा बढ़ना लाजिमी था. सो बढ़ भी गया. इस नए सिस्टम में आईपीएस पति यानि अंकुर अग्रवाल अब अतिरिक्त या फिर अपर पुलिस उपायुक्त (एडिश्नर डीसीपी) कहे जाएंगे.
मतलब बहैसियत डीसीपी पत्नी वृंदा पति अंकुर की अब 'बॉस' होंगी.
दोनों ने अमेरिका में एक निजी कंपनी में नौकरी करने के दौरान ही भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) अधिकारी बनने की तैयारी शुरू कर दी थी. वृंदा को 2014 में दूसरे प्रयास में आईपीएस का नगालैंड कैडर मिल गया. जबकि इसके दो साल बाद ही उनके पति अंकुर अग्रवाल को 2016 में बिहार आईपीएस कैडर हासिल हो गया.
जब दोनों आईपीएस बन गए. तो उन्होंने बचपन की मुहब्बत को अंजाम तक पहुंचाने का ताना-बाना बुना. इसका लाजबाब अंजाम यह रहा कि दोनों ही बीते वर्ष (9 फरवरी 2019) हमेशा-हमेशा के लिए परिणय सूत्र में बंध गए, इस कसमों-वादों और विश्वास के साथ कि वर्दी में कोई भी किसी का 'बॉस' हो सकता है.
वृंदा बोलीं, "दिल-ओ-दिमाग से हम हमेशा सिर्फ और सिर्फ एक-दूजे के होकर ही जीवन बसर करेंगे, जहां हम दोनों में न कोई छोटा होगा और न कोई बड़ा. दौरान-ए-नौकरी आज कोई डीसीपी है, कोई एडिशनल डीसीपी. आने वाले कल में हममे से भले ही कोई पुलिस कमिश्नर क्यों न बन जाए."
उन्होंने आगे कहा, "बचपन में अंबाला की गलियों में गुजरे दिन. स्कूल में साथ-साथ पढ़ाई और हंसी-ठिठोली के दिन. उसके बाद एक साथ ही आईपीएस बनने की बेहद हसीन जिद. उससे पहले निजी कंपनी में नौकरी के दौरान सात समंदर पार. अमेरिका में गुजरे जिंदगी के यादगार लम्हों का मीठा अहसास. हममें से कौन किसका 'बॉस' है और कौन किसका 'मातहत'. यह सब सोचने का वक्त ही नहीं है."
Source : IANS