इसी हफ्ते शुरू हो रहे पवित्र रमजान माह में घरों में ही तरावीह की नमाज पढ़ना शरीयत के लिहाज से उचित होने या नहीं होने को लेकर पैदा संदेह और आशंकाओं के बीच इस्लामी विद्वानों का कहना है कि घर में ही यह नमाज पढ़ना शरीयत के लिहाज से कतई गलत नहीं है. अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त इस्लामी शोध संस्थान 'दारुल मुसन्निफीन शिबली एकेडमी' के निदेशक प्रोफेसर इश्तियाक अहमद ज़िल्ली ने मुसलमानों के एक बड़े वर्ग में तरावीह की नमाज घर में ही अदा करने को लेकर व्याप्त आशंकाओं के बारे में मंगलवार को बताया कि ये तमाम संदेह बेबुनियाद हैं.
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उन्होंने कहा कि तरावीह की नमाज फ़र्ज़ (अनिवार्य) नहीं, बल्कि वाजिब (अपेक्षित) है. आमतौर पर फर्ज नमाज को मस्जिद में जमात के साथ पढ़ना चाहिये, मगर बंद के दौरान जब लोग फर्ज नमाजें घर में पढ़ रहे हैं और यह शरीयत के लिहाज से गलत नहीं है तो वाजिब नमाज घर में पढ़ने को लेकर संदेह का कोई सवाल ही नहीं उठना चाहिये. उन्होंने कहा कि कोरोना वारयस के कारण घोषित बंद के दौरान लोग अपने घरों में ही तरावीह समेत तमाम नमाजें अदा करें. उल्लेखनीय है कि तरावीह रमजान के महीने में इशा (रात्रिकालीन नमाज) के बाद पढ़ी जाने वाली एक खास नमाज है.
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इसमें लोग मस्जिद में या घरों के इमाम से कुरान शरीफ सुनते हैं. यह परंपरा विभिन्न रूपों में हजरत मुहम्मद साहब के समय से चली आ रही है. प्रोफेसर ज़िल्ली ने कहा कि मुहम्मद साहब के ही जमाने से महामारी के दौरान लोगों को घर में रहने, किसी से हाथ न मिलाने और बार—बार हाथ धोने की सलाह दी गयी थी. ये नियम इन दिनों लागू बंद के भी बुनियादी नियम हैं. उन्होंने मुसलमानों के दूसरे खलीफा हजरत उमर का जिक्र करते हुए बताया कि एक बार वह कहीं जा रहे थे, तो उन्हें पता लगा कि वहां महामारी फैली है. इस पर जब वह बीच रास्ते से वापस लौटे तो लोगों ने तंज किया कि क्या ‘‘आप अल्लाह के फैसले से भाग रहे हैं’’? इस पर हजरत उमर ने कहा, ‘‘नहीं, मैं तो अल्लाह के फैसले की तरफ भाग रहा हूं.’’ प्रोफेसर जिल्ली ने कहा कि बहुत से मुसलमानों का मानना है कि मौत तो जब आनी है तभी आयेगी, ऐसे में कोरोना वायरस से क्या डरना?
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उन्होंने कहा कि लेकिन यह सोचना बेवकूफी है. अल्लाह ने लोगों को अक्ल इसीलिये दी है कि वे नफा—नुकसान पहचान सकें. इस वक्त समझदारी इसी में है कि हर हाल में बंद का पालन किया जाए और ऐसा करना नमाज और अन्य दीनी कर्तव्यों को निभाने में आड़े भी नहीं आता.’’ इस बीच, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में इस्लामिक स्टडीज विभाग में प्रोफेसर रहे यासीन मजहर ने भी कहा कि असल में तरावीह की नमाज घर पर ही पढ़ने का हुक्म है. उन्होंने कहा कि जमात के साथ तरावीह का सिलसिला इसलिये शुरू किया गया ताकि लोग पूरे महीने में कुरान शरीफ सुन लें, मगर यह कोई शरई नियम नहीं है. उन्होंने भी कहा कि मस्जिद में सिर्फ फर्ज नमाज ही पढ़नी चाहिये. मगर, हमारे जहन में बैठा है कि हर नमाज तो मस्जिद में ही होती है. महामारी के वक्त नमाज को लेकर भी कई चीजें हालात के हिसाब से बदली जाती हैं.
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प्रोफेसर मजहर ने मुहम्मद साहब और उनके बाद कई अन्य खलीफाओं के जमाने में फैली महामारियों का जिक्र करते हुए कहा कि मुहम्मद की जिंदगी से ही यह सिलसिला रहा है, मगर ज्यादातर मुस्लिम अपने इतिहास से वाकिफ नहीं हैं. लखनऊ के इमाम और आल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के वरिष्ठ सदस्य मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली ने कहा कि रमजान में तरावीह जरूर पढ़ें, मगर जो लोग मस्जिद में रह रहे हैं, वे वहीं तरावीह पढ़ें और एक बार में पांच से अधिक लोग जमा न हों. उन्होंने कहा कि बाकी लोग अपने घरों ही में तरावीह की नमाज अदा करें. इसमें शरीयत के लिहाज से कोई समस्या नहीं है. उन्होंने अपील की कि रमजान में खासकर इफ्तार के वक्त कोरोना वायरस महामारी के खात्मे की दुआ जरूर करें. उन्होंने कहा कि जो लोग हर साल मस्जिद में गरीबों के लिए इफ्तारी का आयोजन करते थे, वे इस साल इफ्तारी को जरूरतमंदों के घर जाकर सामाजिक दूरी अपनाते हुए बांट दें.
Source : Bhasha