गंगा नदी में डॉल्फिन पर मंडरा रहे खतरों से निपटने के लिये उत्तर प्रदेश में 'डॉल्फिन टास्क फोर्स' का गठन किया जाएगा. राज्य के मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक सुनील पांडे ने सोमवार को वन विभाग और डब्ल्यूडब्ल्यूएफ—इंडिया के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित सात दिवसीय 'माई गंगा, माई डॉल्फिन अभियान-2020' के वर्चुअल समापन समारोह में घोषणा की कि गंगा नदी में डॉल्फिन पर मंडरा रहे खतरे से निपटने के लिए टास्क फोर्स का गठन किया जाएगा तथा स्थानीय समुदायों की सहभागिता को और मजबूत करने के लिए 'डॉल्फिन मित्र' बनाए जाएंगे. उन्होंने यह भी ऐलान किया कि इस बार बिजनौर से नरौरा बैराज तक सात जिलों --बुलंदशहर, अमरोहा, मेरठ, बिजनौर, सम्भल और मुजफ्फरनगर और हापुड़ में चलाये गये इस अभियान को निकट भविष्य में पूरे उत्तर प्रदेश में चलाया जाएगा.
गंगा डॉल्फिन सर्वे के दौरान बिजनौर से नरोरा बैराज तक 188 किलोमीटर के प्रवाह क्षेत्र में 41 डॉल्फिन पायी गयी हैं. यह संख्या बेहद उत्साहजनक है. पांडे ने इस मौके पर कहा कि अब हमारे पास एक डॉल्फिन की आबादी के बारे में मूलभूत सूचना उपलब्ध हो गयी है, लिहाजा डॉल्फिन के लिए मौजूद तमाम खतरों को स्थानीय समुदायों की मदद से खत्म करने के प्रयासों को और तेज किए जाने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि माई गंगा माई डॉल्फिन अभियान के तहत वर्ष 2015 में गंगा में 22 डॉल्फिन पाई गई थी. उसके बाद वर्ष 2020 के अभियान के दौरान इस संख्या में और उत्साहजनक तथा दिलचस्प बढ़ोत्तरी हुई है. डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इंडिया के सीईओ और महासचिव रवि सिंह ने कहा, ''माई गंगा माई डॉल्फिन अभियान स्थानीय समुदायों की सहभागिता सुनिश्चित करने के लिहाज से बेहद सफल रहा है.
साथ ही यह डॉल्फिन के संरक्षण के प्रति जागरूकता पैदा करने के मामले में भी कामयाब रहा है. भविष्य में प्रोजेक्ट डॉल्फिन के संदेश को दूर-दराज के गांवों, खासकर उत्तर प्रदेश में गंगा तट के नजदीक बसे गांवों तक पहुंचाने में भी इससे बहुत मदद मिलेगी.'' इस अभियान में उत्तर प्रदेश वन विभाग के सात प्रभागों, डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इंडिया और डब्ल्यूआईआई के प्रतिनिधियों तथा गंगा मित्रों को शामिल किया गया था. इसके अलावा इस अभियान से स्थानीय समुदायों के 600 सदस्य भी जुड़े और 6500 से ज्यादा लोगों ने वर्चुअल माध्यमों से अपनी सहभागिता सुनिश्चित की.
Source : Bhasha