जिस पुलिस विभाग के कंधों पर अपराध रोकने की जिम्मेदारी हो, अगर वे ही कानून को धता बताने लगें और क्राइम ग्राफ बढ़ाने में मददगार बनने लगें तो निस्संदेह एक सभ्य समाज के लिए यह चिंता की बात हो सकती है. उत्तर प्रदेश में विगत सप्ताह में घटित कुछ घटनाएं इस बात की तस्दीक कर रही हैं. प्रदेश में पिछले सप्ताह कम से कम छह पुलिसवालों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया. तीन अलग-अलग मामलों में चार पुलिसकर्मियों को गिरफ्तार भी किया गया है.
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कथित तौर पर जबरन वसूली और सेक्स रैकेट चलाने के कारण पीलीभीत जिले में 17 फरवरी को दो कांस्टेबल को निलंबित कर दिया गया. हापुड़ जिले में यूपीएसआईडीसी चौकी पर तैनात सब इंस्पेक्टर बृजेश कुमार यादव को मेरठ के शराब माफिया के साथ उसके कथित सम्बंध के कारण गिरफ्तार कर लिया गया.
गोरखपुर में हाल की लूट की घटना वाकई चौंकाने वाली थी, जब कथित तौर पर वर्दीधारी पुलिसवालों ने महाराजगंज के दो सुनारों को अगवा कर लिया और उनसे 35 लाख के आभूषण और कैश लूट लिए. जांच में पता चला कि पुलिसकर्मियों ने न सिर्फ घटना को अंजाम दिया, बल्कि वे एक गिरोह भी चला रहे थे.
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बस्ती जिले में तैनात सब-इंस्पेक्टर धर्मेद्र यादव और दो कांस्टेबल - महेंद्र यादव और संतोष यादव को गिरफ्तार कर लिया गया है. गोरखपुर के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक जोगेंद्र कुमार ने दावा किया कि इसी गैंग ने पिछले महीने शहर में लूट की एक और वारदात को अंजाम दिया था.
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अपराध की इन घटनाओं से राज्य सरकार की किरकिरी हो रही है. उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक प्रकाश सिंह ने कहा कि कभी-कभी सत्तारूढ़ पार्टियां भी इस बात की वकालत करती दिखती हैं कि पुलिस सेवा में उनकी ही जाति के लोगों की भर्ती हो. ऐसे कई उदाहरण हैं, जब पुलिस वेरिफिकेशन नहीं की गई और आपराधिक पृष्ठभूमि के बावजूद लोगों की पुलिस में भर्ती की गई. उत्तर प्रदेश में यह बड़े पैमाने पर हुआ है जो अब स्पष्ट दिखाई दे रहा है.
बहरहाल, अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (कानून-व्यवस्था) प्रशांत कुमार ने कहा कि ये घटनाएं 'व्यक्तिगत रंजिश' का परिणाम हैं. उन्हें बर्खास्त किया जा रहा है और जेल भी भेजा गया है. इस बाबत सरकार अथवा सम्बंधित विभाग की ओर से कोई कोताही नहीं बरती जा रही है.
Source : IANS