उत्तर प्रदेश में सत्ता वापसी के लिए मायावती फिर से मोर्चा संभाल लिया है. सत्ता का वनवास खत्म करने के लिए बसपा 14 साल बाद फिर से ब्राह्मण समुदाय को जोड़ने की कवायद में जुट गई हैं. सूबे में ब्राह्मणों को अपने पाले में करने के लिए फिर से मायावती पूरी कोशिश कर रही हैं. मायावती ने इस वर्ग को साधने के लिए खुद ही मोर्चा संभाल लिया है. वर्ष 2007 की तरह सत्ता में वापसी के लिए बसपा सोशल इंजीनियरिंग के जरिए अपने सियासी समीकरण को दुरुस्त करने के लिए अब तक सूबे के 74 जिलों में प्रबुद्ध सम्मेलन (ब्राह्मण सम्मेलन) कर चुकी है और अब आखिरी सम्मेलन मंगलवार को लखनऊ स्थित पार्टी के प्रदेश मुख्यालय में होगा, जिसे मायावती संबोधित करेंगी. वर्ष 2019 लोकसभा चुनाव के बाद मंगलवार को पहली बार बसपा प्रमुख व पूर्व सीएम मायावती किसी सार्वजनिक मंच पर नजर आएंगी. ऐसे में माना जा रहा है कि मायावती ब्राह्मण सम्मेलन के जरिए बसपा के मिशन-2022 का आगाज करेंगी. वो ब्राह्मण सम्मलेन के बहाने अपने कार्यकर्ताओं और समर्थकों के सामने मिशन-2022 के सियासी एजेंडा को रखेंगी.
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सतीश मिश्रा के कंधों पर जिम्मा
यूपी में 2022 की चुनावी लड़ाई में अभी तक कमजोर मानी जा रही मायावती ने बसपा महासचिव सतीश मिश्रा के कंधों पर ब्राह्मणों को जोड़ने का जिम्मा दे रखा है. सतीश चंद्र मिश्रा की अगुवाई में बसपा ने 23 जुलाई को अयोध्या से प्रबुद्ध वर्ग विचार गोष्ठी की शुरुआत की थी. इसके बाद अलग-अलग चरणों में सम्मेलन करते हुए अब तक 74 जिलों में ब्राह्मण सम्मेलन किए जा चुके हैं. बसपा के ब्राह्मण सम्मेलन का स सभी 75 जिलों के सम्मेलनों के ब्राह्मण कोऑर्डिनेटर शामिल होंगे. प्रदेश भर से भी ब्राह्मण समाज के बड़ी संख्या में प्रतिनिधि बुलाए गए हैं, जिन्हें बसपा सुप्रीमो मायावती संबोधित करेंगी.
2022 में जीत के लिए कोशिश
बसपा अध्यक्ष मायावती की तरफ से इस कदम को मिशन 2022 के आगाज के तौर पर देखा जा रहा है. पांच महीने के बाद विधानसभा चुनाव होने हैं. यह चुनाव बसपा और मायावती दोनों के लिए सियासी तौर पर काफी अहम माना जा रहा है. 2012 के बाद से बसपा का जनाधार जिस तरह से खिसका है, वो मायावती के लिए बड़ी चुनौती बन गया है. इसीलिए अब खुद भी चुनावी रण में उतरकर पार्टी का माहौल बनाने की कवायद में जुट रही हैं. उत्तर प्रदेश में 10 से 12 फीसदी ब्राह्मण मतदाता काफी निर्णायक माने जाते हैं. 1990 से पहले तक सूबे में सत्ता की बागडोर ब्राह्मणों के हाथों में रही है, लेकिन मंडल की राजनीति के बाद से ब्राह्मण वोट बैंक बनकर रह गया है. यूपी में ब्राह्मण समाज की संख्या भले ही कम हो, लेकिन सियासी तौर पर काफी अहम हैं. पूर्वांचल से लेकर अवध और रुहेलखंड तक कई सीटों पर ब्राह्मण राजनीतिक तौर पर हार और जीत में भूमिका अदा करते हैं. यही वजह है कि बसपा से लेकर सपा और बीजेपी तक ब्राह्मणों को साधने में जुट गई है.
दलित-ब्राह्मण गठजोड़ के लिए कर रहे प्रयास
यूपी में देवरिया, संतकबीरनगर, बलरामपुर, बस्ती, महाराजगंज, गोरखपुर, जौनपुर, अमेठी, वाराणसी, भदोही, प्रतापगढ़, चंदौली, कानपुर, प्रयागराज, हाथरस, शाहजहांपुर, बरेली, सुल्तानपुर और अंबेडकरनगर में ब्राह्मण समुदाय की अच्छी खासी संख्या है. इन जिलों की विधानसभा सीटों पर ब्राह्मण समुदाय खुद या फिर दूसरे को जिताने की ताकत रखते हैं. 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 80 फीसदी ब्राह्मणों ने वोट किया. यूपी में कुल 58 ब्राह्मण विधायक जीते, जिनमें 46 विधायक बीजेपी से बने थे. वहीं, 2012 विधानसभा में जब सपा ने सरकार बनायी थी तब बीजेपी को 38 फीसदी ब्राह्मण वोट मिले थे. सपा के टिकट पर 21 ब्राह्मण समाज के विधायक जीतकर आए थे. 2007 विधानसभा में बीजेपी को 40 फीसदी ब्राह्मण वोट मिले थे. 2007 में BSP ने दलित-ब्राह्मण गठजोड़ का सफल प्रयोग किया था, जिसे बसपा ने सोशल इंजीनियरिंग का नाम दिया था.
HIGHLIGHTS
- लखनऊ में आज खुद मायावती करेंगी ब्राह्मण सम्मेलन को संबोधित
- मायावती ने इस वर्ग को साधने के लिए खुद ही मोर्चा संभाला
- सत्ता में वापसी के लिए 74 जिलों में हो चुके हैं सम्मेलन