गंगा-जमुनी तहजीब के शहर बनारस में गुरू पूर्णिमा के पर्व पर एक नई नजीर पेश की गई जब मुस्लिम महिलाओं ने हिंदू गुरू की पूजा-अर्चनाकर उनका आशार्वाद प्राप्त किया. गुरु के लिए जाति-धर्म की दीवार गिराते हुए लोग नजर आये.
गुरू का माल्यार्पण और उनके चरणों में वंदन और फिर आरती की. गुरू पूर्णिमा पर ऐसे नजारा दिखना तो आम बात है, लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि गुरू की इस तल्लिनता से पूजा करने वाली मुस्लिम महिलाएं है तो आप चौक जायेगें.
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वाराणसी के पातालपुरी मठ में मठ के पीठाधीश्वर बालकदास को गुरू मानकर पूजने वाली वाराणसी की मुस्लिम महिलाओं का मानना है कि गुरू का स्थान माता-पिता से भी बढ़कर है और गुरू ही ईश्वर को पाने का एक मात्र रास्ता दिखाता है. इसलिए गुरू-शिष्य के बीच मजहब की दिवार नहीं होती.
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जगतगुरू रामानंदचार्य के भी 12 शिष्यों में से एक कबीरदास भी थे. जो मुस्लिम परिवार के माने जाते थे.इस गुरु शिष्य परंपरा में बीएचयू के प्रोफेसर राजीव श्रीवास्तव भी अपने शिष्यों के साथ नजर आये. वाराणसी का पातालपुरी मठ गोस्वामी तुलसीदास के गुरू नरहरिदास महाराज जी का आश्रम है.
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जो जगतगुरू रामानंदचार्य के शिष्य थे. रामानंदचार्य जी की विचारधारा धर्म-मजहब से ऊपर उठकर थी और उन्होंने जिन 12 लोगों को अपना शिष्य बनाया था वे अलग-अलग धर्म-जाति के थे. इन्ही 12 शिष्यों ने पूरी दुनिया को शांति का संदेश दिया था.
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वाराणसी का पातालपुरी मठ उन्ही के बताए मार्ग पर चलता है और यहां सभी जाति-धर्म के लोग आते हैं. समय-समय पर काशी से ऐसा संदेश जाता है जो मौजूदा माहौल में पूरे देश और दुनिया के लिए एक नजीर साबित होता है. गुरू पूर्णिमा के पर्व पर भी गुरू शिष्य परम्परा के जरिए धर्म-मजहब को गिराती इस दिवार ने एक नई मिसाल कायम की है.
HIGHLIGHTS
- वाराणसी में मुस्लिम महिलाओं ने उतारी गुरु की आरती
- बताया गुरु ही है ईश्वर को पाने का रास्ता
- माता पिता से बढ़कर होता है गुरु का स्थान
Source : Yogendra Mishra