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New Parliament House: नई संसद में स्थापित होने वाली सेंगोल स्टिक को लेकर क्यों छिड़ा विवाद? जानें क्या है पूरा मामला, देखें तस्वीरें

New Parliament House : पीएम नरेंद्र मोदी 28 मई को देश की नई संसद का उद्घाटन करेंगे. कई विपक्षी दलों ने राष्ट्रपति को दरकिनार कर प्रधानमंत्री मोदी के हाथों से नए संसद भवन के उद्घाटन का विरोध किया और समारोह का बॉयकॉट किया है.

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Deepak Pandey
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Sengol stick

sengol( Photo Credit : File Photo)

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New Parliament House : पीएम नरेंद्र मोदी 28 मई को देश की नई संसद का उद्घाटन करेंगे. कई विपक्षी दलों ने राष्ट्रपति को दरकिनार कर प्रधानमंत्री मोदी के हाथों से नए संसद भवन के उद्घाटन का विरोध किया और समारोह का बॉयकॉट किया है. सेंट्रल विस्टा के नाम से बनी संसद के उद्घाटन से पहले देश की सत्ता के राजदंड की प्रतीक सेंगोल स्टिक को पंडित जवाहर लाल नेहरू की वॉकिंग स्टिक बताए जाने को लेकर सियासी घमासान छिड़ा है. जानें क्या है पूरा मामला... 

सेंट्रल विस्टा के उद्घाटन के साथ ही सेंगोल भी सुर्खियों में है. सेंगोल का अर्थ राजदंड होता है. सेंगोल एक प्रकार की छड़ी या स्टिक है, जो राजदंड के रूप में राजाओं के पास होती थी. जब नए संसद भवन में भारतीय राजदंड की प्रतीक सेंगोल को स्थापित करने की बात उठी तो संस्कृति मंत्रालय इसके खोज में जुट गया. इसके लिए संस्कृति मंत्रालय ने इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र को सहयोग लिया. काफी खोजबीन के बाद कला केंद्र के एक्सपर्ट्स को पता चला कि इलाहाबाद के म्यूजियम में सेंगोल है. इसके बाद 4 नवंबर  2022 को इलाहाबाद म्यूजिम से सेंगोल को नेशनल म्यूजियम दिल्ली लाया गया. यहां प्रधानमंत्री मोदी को उद्घाटन समारोह में ये सेंगोल सौंपी जाएगी और वे नई संसद में स्पीकर के आसान के पास इसे स्थापित करेंगे.

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सेंगोल मिलने के बाद और जानकारी जुटाई गई तो पता चला कि ब्रिटिश वायसराय लार्ड माउंटबेटन ने आजादी के दौरान देश की सत्ता के हस्तान्तरण के समय देश के प्रथम पीएम पंडित जवाहर लाल नेहरू को ये सिंगोल सौंपी थी. दरअसल, ब्रिटिश सरकार से भारतीयों को पॉवर ट्रांसफर का प्रतीक ये सिंगोल बनी, जिसे देश के प्रतिनिधि के रूप में पंडित नेहरू ने उस समय स्वीकार किया था. 

पंडित जवाहर लाल नेहरू ने पहले इस सेंगोल को प्रयागराज में स्थित अपने पैतृक आवास आनंद भवन में भेजवा दिया था और फिर 1950 में इलाहाबाद म्यूजियम भेजवा गया. इलाहाबाद म्यूजियम की नेहरू गैलरी के एक शोकेस में 1950 से लेकर 4 नवंबर 2022 तक सेंगोल पड़ी रही. इस दौरान पंडित नेहरू को तोहफे में मिली सेंगोल को वाकिंग स्टिक बताया गया. शोकेस में सेंगोल के बारे में नोट में लिखा गया था 'गोल्डन वॉकिंग स्टिक गिफ्टेड तो पं. जवाहर लाल नेहरू'... हिंदी में इसे 'पं जवाहर लाल नेहरू को भेंट सुनहरी छड़ी' बताया गया. 

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हालांकि, नई संसद में स्थापित होने के लिए सेंगोल की डिमांड होने के बाद इलाहाबाद म्यूजियम ने सेंगोल के साथ दर्ज नोट में संशोधन किया और लिखा- 'गोल्डन स्टिक गिफ्टेड टू पं. जवाहर लाल नेहरू'.. भले ही सेंगोल अब दिल्ली जा चुकी है, लेकिन अब विवाद शुरू हो गया है. कई जानकारों ने सेंगोल को पंडित नेहरू की वाकिंग स्टिक बताए जाने पर आपत्ति जताई है और नोट में संसोधन को गलत बताया है. 

विवाद बढ़ने के बाद कई जानकारों ने इतिहास के पन्ने को पटलते हुए बताया कि 15 अगस्त 1947 को देश की सत्ता ब्रिटिश सरकार से लेकर भारतीयों को सौंपने के समय ब्रिटिश वायसराय लार्ड माउंटबेटन ने इच्छा जताई कि वो सत्ता के हस्तांतरण के समय सिंगोल को नेहरू को सौंपेंगे.. इसके लिए पंडित नेहरू ने आजाद भारत के पहले गवर्नर जनरल सी. राजगोपालाचारी को सेंगोल तैयार करवाने की जिम्मेदारी सौंपी थी. इसके बाद राजगोपालाचारी ने दक्षिण भारत के तमिलनाडु के चोल राजवंश के राजदंड की रिप्लिका तैयार करवाई, जिसे आजादी के नेहरू को सौंपा गया.

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नई संसद के उद्घाटन से पहले जब पीएमओ को भारत की इस धरोहर के बारे में पता चला तो संस्कृति मंत्रालय को इसकी खोज की जिम्मेदारी सौंपी गई. मद्रास के प्रसिद्ध ज्वैलर्स वुम्मिडी बंगारू चेट्टी एंड सन्स ने इस सेंगोल को तैयार किया था. आपको बता दें कि साल 1947 में सेंगोल को बनाने में 15 हजार रुपये खर्च हुए थे. 1947 से लेकर अब तक सेंगोल के इस सफर में उसे जिस तरह से नेहरू की निजी संपत्ति और उनकी वाकिंग स्टिक बताया गया, जिसे लेकर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है.

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