दिल्ली की CBI कोर्ट ने बुधवार को 2005 में हुए BJP विधायक कृष्णानंद राय हत्याकांड में बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी समेत सभी आरोपियों को बरी कर दिया. सभी को संदेह का लाभ देते हुए बरी किया गया है. जब यह फैसला आया तो लोगों ने सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं. कि आखिर 14 सालों से चल रहे इस मुकदमे में आज कोई भी कातिल क्यों नहीं है. 400 राउंड गोलियां लगातार AK-47 से चलीं, 7 लोग मारे गए और अब कोई भी हत्यारा नहीं है. इस फैसले के बाद कृष्णानंद राय हत्याकांड को किसने मारा इसका राज दफन हो गया है.
7 शवों में से निकली 67 गोली
गाजीपुर में 29 नवंबर 2005 की शाम को भांवरकोल क्षेत्र के बसनिया पुलिया की करीब अपराधियों ने AK-47 से बीजेपी के विधायक कृष्णानंद राय (Krishnanand Rai) व उनके छह साथियों को गोली से भून दिया था. इसमें उनके साथ मुहम्मदाबाद से पूर्व ब्लॉक प्रमुख श्यामशंकर राय, अखिलेश राय, भांवरकोल ब्लॉक के मंडल अध्यक्ष रमेश राय, शेषनाथ पटेल, मुन्ना यादव और उनके बॉडीगार्ड निर्भय नारायण की हत्या कर दी गई थी.
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कृष्णानंद राय मुहम्मदाबाद विधानसभा क्षेत्र के भांवरकोल ब्लॉक के सियाड़ी गांव में एक क्रिकेट प्रतियोगिता का उद्घाटन करने के बाद सियाड़ी से बसनिया के लिए जा रहे थे. लेकिन लट्ठूडीह-कोटवा मार्ग पर उनकी मौत खड़ी थी. राय का काफिला जब बसनिया चट्टी के आगे बढ़ा तो उसी वक्त घात लगाकर बैठे हत्यारों ने उन पर गोली बारी शुरू कर दी.
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इस घटना में करीब 400 गोलियां चलाई गई थीं. मारे गए 7 लोगों के शरीर से 67 गोलियां निकली थीं. मुखबिरी इतनी सटीक थी कि अपराधियों को पता था कि राय अपने बुलेट प्रूफ वाहन में नहीं हैं. राय को मारने के बाद आरोपी निशानी के तौर पर अंगूठी निकाल ले गए थे.
गवाह ने मुकरते तो फैसला बदल जाता
मामले में फैसला सुनाते हुए स्पेशल जज अरुण भारद्वाज ने हत्या कांड को बेहद डराने वाला और भयानक बताया है. उन्होंने अपने फैसले में लिखा कि इस केस की जांच CBI और यूपी पुलिस दोनों ने की थी. कृष्णानंद की पत्नी अलका राय की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में केस को गाजीपुर से ट्रांसफर करके दिल्ली कर दिया.
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लेकिन दुर्भाग्यवश गवाहों के मुकरने से यह मामला अभयोजन की नाकामी बन गया. अगर गवाहों को ट्रायल के दौरान विटनेस प्रोटेक्श स्कीम-2018 के तहत लाभ मिलता तो नतीजा कुछ और होता.
भूमिहार समाज फैसले से नाराज
सोशल मीडिया पर इस फैसले के खिलाफ भूमिहार समाज में खासी नाराजगी देखने को मिली है. सोशल मीडिया पर लोगों ने पूछा कि केंद्र और राज्य में बीजेपी सत्ता में है. फिर भी सच्चाई जानते हुए वह अपने विधायक की हत्या का बदला नहीं ले पाई.
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सबूतों के अभाव में संदेह का लाभ देते हुए कृष्णानंद राय के हत्यारोपियों को बरी कर दिया गया. सबूतों के अभाव से यही मतलब निकलता है कि सीबीआई ने इस मामले में सही तरीके से तथ्य पेश नहीं किए. लोगों ने कई अलग-अलग तरह से पोस्ट करके अपनी नाराजगी निकाली.
Source : Yogendra Mishra