ओडीओपी के जरिये गांव की मिट्टी बना रही ग्लोबल पहचान, टेराकोटा मिट्टी की राखियों की बढ़ी डिमांड

पांच साल पहले तक उपेक्षित रही गोरखपुर के माटी की विशिष्ट शिल्पकला 'टेराकोटा' को सीएम योगी के ओडीओपी के पंख मिले तो रोजगार और विकास के आसमान में इसकी उड़ान देखते ही बन रही है

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Mohit Saxena
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terracotta clay rakhis( Photo Credit : social media )

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पांच साल पहले तक उपेक्षित रही गोरखपुर के माटी की विशिष्ट शिल्पकला 'टेराकोटा' को सीएम योगी के ओडीओपी के पंख मिले तो रोजगार और विकास के आसमान में इसकी उड़ान देखते ही बन रही है. सरकार की तरफ से ब्रांडिंग का दायरा ग्लोबल हुआ तो इस पारंपरिक शिल्प में इनोवेशन की झड़ी लग गई है. टेराकोटा के परंपरागत उत्पाद बाजारों में धूम मचा रहे हैं तो अब मिट्टी की ज्वेलरी के बाद भाइयों की कलाइयों पर सजने को टेराकोटा की राखियां भी तैयार हो गई हैं. इनकी डिजाइन, रंगत और फिनिशिंग ऐसी की देखकर सहसा यकीन ही नहीं होगा कि ये मिट्टी से बनाई गई हैं. टेराकोटा मिट्टी से राखी बनाने की यह पहल गोरखपुर में डॉ भावना सिंघल ने शुरू की है. भावना ने टेराकोटा से जुड़ी महिलाओं को अपनी तरफ से डिजाइन देकर बड़े पैमाने पर टेराकोटा  की राखियां बनवाई हैं.

आज जब इन राखियों की प्रदर्शनी लगी तो लोगों को यकीन नही हुआ कि मिट्टी से भी इतनी शानदार राखी बन सकती है. इस प्रदर्शनी को आयोजित करने वाली महिलाओं का कहना है कि टेराकोटा की मूर्तियों की खूबसूरती को लेकर लोगों से मिली तारीफ से उनके मन मे इस शिल्प की राखियों को बनवाने का विचार आया. 

पिछले 1 महीने से गोरखपुर के गुलहरिया और झुंगिया इलाके में महिलाएं टेराकोटा मिट्टी से राखियों का निर्माण कर रही हैं, जिन्हें ग्लोबल पहचान दिलाने के लिए भावना और उनकी टीम काम कर रही है. गोरखपुर में इसके पहले टेराकोटा मिट्टी से ज्वेलरी बनाने का काम शुरु हुआ था जो आज काफी डिमांड में है. सोने के गहनों को टक्कर दे रहे इन आभूषणों की सुंदरता महिलाओं का ध्यान अपनी ओर खींच रही है. इस प्रदर्शनी में अपने भाइयों के लिए राखी खरीदने आयी महिलाओं का कहना है कि मिट्टी की बनी यह राखियां इतनी खूबसूरत और मजबूत हैं कि पहली नजर में ही वह उन्हें पसंद आ जा रही है. उन्हें गर्व हो रहा है कि उनके गोरखपुर की मिट्टी से बनी यह राखियां आज एक ब्रांड बन चुकी है और ऑनलाइन मार्केटिंग के जरिए पूरे देश में अब लोगों इन्हें पसंद कर रहे हैं.  

Source : Deepak Shrivastava

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