फोर्ब्स मैगजीन ने भारत की 30 अंडर 30 की सूची जारी की है, जिसमें उत्तर प्रदेश से लखनऊ की रहने वाली पौलोमी पाविनी शुक्ला को भी शामिल किया गया है. पौलोमी शुक्ला द्वारा अनाथ बच्चों (Children) की शिक्षा के लिए किए गए काम के लिए लिए फोर्ब्स ने साल 2021 की अपनी सूची में शामिल किया है. फोर्ब्स की इस सूची में 30 ऐसे भारतीयों को शामिल किया गया है, जिन्होंने 30 साल की उम्र में ही अपने-अपने क्षेत्र में एक अलग मुकाम हासिल किया है. पेशे से अधिवक्ता (Advocate) पौलोमी शुक्ला पिछले काफी समय से अनाथ बच्चों की शिक्षा और उनके मौलिक अधिकार के लिए काम कर रही हैं. पौलोमी भारत में अनाथ बच्चों की दुर्दशा पर साल 2015 में 'वीकेस्ट ऑन अर्थ-ऑर्फंस ऑफ इंडिया' नाम से पुस्तक भी लिख चुकी हैं.
चहुंओर हो रही चर्चा
दुनिया भर में विभिन्न क्षेत्रों महत्वपूर्ण काम करने वाले लोगों को पहचान और सम्मान दिलाने के लिए विश्व की मशहूर फोर्ब्स पत्रिका हर साल 30 साल से कम उम्र के 30 लोगों की सूची जारी करती है. इस बार इस सूची में पौलोमी शुक्ला को भी शामिल किया गया है. पौलोमी ने 2018 में उच्चतम न्यायालय में अनाथ बच्चों के लिए जनहित याचिका भी दायर की थी. अपनी पुस्तक तथा जनहित याचिका के माध्यम से इनके द्वारा अनाथ बच्चों को शिक्षा तथा अन्य सुविधाओं में समान अवसर दिलवाने हेतु कई वर्षों से कार्य किया जा रहा है. फोर्ब्स की सूची में शामिल किए जाने पर न्यूज़ स्टेट से बातचीत में पौलोमी ने कहा कि अनाथ बच्चों को उनके अधिकार दिलाने के लिए उनका संघर्ष आगे भी जारी रहेगा. पौलोमी शुक्ला के योगदान और उपलब्धि के लिये आजकल चारों तरफ उनके नाम की चर्चा है और उनको लगातार बधाई मिल रही है. पौलोमी ने शहर में 'अडॉप्ट एन ऑरफेंज' कार्यक्रम की शुरुआत की है. इस अभियान में उन्हें स्थानीय कारोबारियों की मदद मिली है. ये कारोबारी अनाथ एवं जरूरतमंत बच्चों के लिए स्टेशनरी, किताबें एवं ट्यूशन फीस उपलब्ध कराते हैं.
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माता पिता आईएएस अफसर
पौलोमी के माता पिता दोनों आईएएस अफसर हैं. पिता प्रदीप शुक्ला लखनऊ के जिलाधिकारी रह चुके हैं. उनकी मां आराधना शुक्ला भी आईएएस है और जिलाधिकारी समेत कई महत्वपूर्ण पदों पर काम कर चुकीं हैं. पौलोमी पेशे से सुप्रीम कोर्ट की वकील हैं. अनाथ बच्चों की शिक्षा और समान अवसर के लिए कई राज्यों ने पौलोमी को सम्मानित भी किया जा चुका है. पौलोमी शुक्ला ने 2015 में अपने भाई के साथ मिलकर अनाथ बच्चों की दुर्दशा पर 'वीकेस्ट ऑन अर्थ-ऑर्फंस ऑफ इंडिया' पुस्तक लिखी, जिसे 'ब्लूम्सबरी' ने प्रकाशित किया था. पौलोमी ने 2018 में अनाथ बच्चों के लिए 19 मांगों को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका भी दायर की. उनकी इस याचिका पर उच्चतम न्यायालय ने केंद्र सरकार और देश के सभी राज्यों को नोटिस जारी करके एक महीने के अंदर जवाब दाखिल करने को कहा था.
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इस तरह मिली प्रेरणा
बच्चों के उत्थान और उनकी शिक्षा की दिशा में काम की शुरूआत के बारे में पौलोमी ने बताया कि 2001 में वह अपनी मां आराधना शुक्ला (आईएएस) के साथ हरिद्वार में थीं. उनकी मां तब वहां जिलाधिकारी के पद पर तैनात थीं. उसी वर्ष भुज में भूकंप ने सब तहस-नहस कर दिया था. बड़ी संख्या में बच्चे हरिद्वार के अनाथालय लाये गये थे. उन बच्चों की हालत ने झकझोर कर रख दिया था. यहीं से उन्हें बच्चों को काम करने की प्रेरणा मिली. पौलोमी कहतीं हैं कि पढ़ाई पूरी करने के बाद वह 11 राज्यों के 100 से अधिक अनाथालयों में बच्चों से मिलीं. उनके बारे में जाना और फिर उसी आधार पर भाई अमंद के साथ मिलकर पुस्तक लिखी. उनका यह काम अब भी जारी है. हालांकि वे कहती हैं कि जमीनी स्तर पर भी काम करने की जरूरत है और इसके लिए प्रयास जारी हैं.
HIGHLIGHTS
- पौलोमी के माता-पिता दोनों हैं प्रशासनिक अधिकारी
- भुज के भूकंप से मिली अनाथ बच्चों के लिए प्रेरणा
- खुद पेशे से सुप्रीम कोर्ट में वकील हैं पौलोमी