प्रयागराज हाईकोर्ट ने एक याचिका पर फैसला सुनाते हुए कहा है कि यदि कोई कंपनी की सामपन प्रक्रिया चल रही है तो उसके खिलाफ लोन वसूली को लेकर सिविल वाद दाखिल नहीं किया जा सकता है. लेकिन इसमें गारंटर का दायित्व समाप्त नहीं होगा. साथ ही ये भी कहा गया है कि कंपनी की देनदारी सहित सभी मामले कंपीन न्यायाधीश द्वारा तय किए जाएंगे. कोर्ट ने अधीनस्थ न्यायालय द्वारा कंपनी एक्ट की धारा 446 के अंतर्गत सिविल वाद को नामंजूर करने के निर्णय को सही करार दिया है. यह आदेश जस्टिस सुधीर अग्रवाल और न्यायमूर्ति राजेंद्र कुमार की खंडपीठ ने अलीगढ़ के खालिद मुख्तार की प्रथम अपील को खारिज करते हुए दिया है.
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खालिद मुख्तार ने अलीगढ़ में दावा दायर किया था, जिसमें कहा गया कि मेसर्स प्रादेशीय औद्योगिक एवं इनवेस्टमेंट कार्पोरेशन ने मेसर्स बीके बैटरीज प्राइवेट लिमिटेड को लोन दिया. लोन अदा न करने पर गारंटर से वसूली की प्रक्रिया प्रारंभ की गई. गारंटर ने वसूली कार्यवाही के विरुद्ध निषेधज्ञा के लिए वाद दायर किया. कहा गया कि 1983 में लिए गए 30 लाख रुपये के लोन की वसूली गारंटर से नहीं की जा सकती है. कोर्ट ने कहा कंपनी का समापन हो रहा है इसलिए सिविल वाद दायर नहीं किया जा सकता.
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गारंटर का कहना था कि जितना उसका दायित्व है उतनी ही जवाबदेही होगी. वैसे तीन साल बाद वसूली कार्यवाही काल बाधित है. कोर्ट ने कहा कि अपीलकर्त्ता ने कंपनी जज से अनुमति नहीं ली है. अपीलकर्त्ता का कहना था कि पहले लोन लेने वाली कंपनी से वसूली की जाए. यह अर्जी कंपनी जज ने निरस्त कर दी तो सिविल वाद दायर किया गया था.