उत्तर प्रदेश में मुस्लिम समर्थक दलों को नई जमीन की तलाश

उत्तर प्रदेश की सत्ता पाने के लिए मुस्लिम समुदाय के वोट राजनीतिक दलों के लिए काफी महत्वपूर्ण माने जाते हैं. यही कारण है कि चुनाव के समय तकरीबन सारी पार्टियां विशेष रूप से मुस्लिम वोटरों को अपनी ओर खींचने में लग जाती हैं.

author-image
Dalchand Kumar
New Update
उत्तर प्रदेश में मुस्लिम समर्थक दलों को नई जमीन की तलाश

उत्तर प्रदेश में मुस्लिम समर्थक दलों को नई जमीन की तलाश( Photo Credit : IANS)

Advertisment

उत्तर प्रदेश की सत्ता पाने के लिए मुस्लिम समुदाय के वोट राजनीतिक दलों के लिए काफी महत्वपूर्ण माने जाते हैं. यही कारण है कि चुनाव के समय तकरीबन सारी पार्टियां विशेष रूप से मुस्लिम वोटरों को अपनी ओर खींचने में लग जाती हैं. साथ ही यहां कुछ क्षेत्रीय मुस्लिम पार्टियों का उदय धूमकेतु की तरह होता है. वे वोट पाती हैं, लेकिन बहुत दूर तक वह चल नहीं पाती हैं. वे अभी इस प्रदेश की राजनीति में नई जमीन तलाशते नजर आ रही हैं. उत्तर प्रदेश की कुल मुस्लिम आबादी तकरीबन 19 फीसदी है. ग्रामीण क्षेत्रों के मुकाबले शहरी क्षेत्रों में मुस्लिम वोटर ज्यादा हैं. शहरों में 32 फीसदी, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में 16 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं. राज्य के उत्तरी इलाके मुस्लिम बहुल हैं.

यह भी पढ़ेंः यूपी में नए डीजीपी की कवायद शुरू, अब तक ऐसा रहा है मौजूदा डीजीपी ओपी सिंह का कार्यकाल

बाबरी विध्वंस के बाद से सबसे ज्यादा मुस्लिम वोटों का लाभ मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी को मिला है. लेकिन, पिछले कुछ चुनावों से मुसलमानों का मुलायम से मोहभंग भी होता नजर आया है. इसके बाद उनका रुझान बसपा की ओर हुआ. हालांकि यहां अभी तक की तमाम क्षेत्रीय पार्टियां कोई कुछ खास नहीं कर पाई हैं. साल 2012 के विधानसभा चुनाव में चार सीटें जीतकर चौंकाने वाली पीस पार्टी भी पानी का बुलबुला साबित हुई. उलेमा कांउसिल, कौमी एकता दल एक ही परिवार और चेहरे की पार्टी रही हैं. लेकिन ये कुछ खास नहीं कर पाई हैं, न ही कोई बड़ी लीडरशिप तैयार कर पाई हैं.

अभी हाल में हुए उपचुनावों में असदुद्दीन ओवैसी के नेतृत्व वाली ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) ने एक सीट पर ही चुनाव लड़कर 20 हजार से अधिक वोट बटोरे और इससे सपा, बसपा और कांग्रेस का हिसाब गड़बड़ा दिया. इतना ही नहीं, प्रदेश में अल्पसंख्यक वर्ग केंद्रित राजनीति कर रही पीस पार्टी जैसे स्थानीय दलों को पीछे धकेल दिया है. यह सिलसिला कब तक चलता है, इस बारे में अभी कुछ कहा नहीं जा सकता. इस सीट पर एआईएमआईएम को 13.59 प्रतिशत वोट मिले हैं, जबकि उपचुनावों में उसकी कुल हिस्सेदारी 1.04 फीसद वोटों की रही. मुस्लिमों में ओवैसी की लोकप्रियता बने रहने से विपक्ष खासकर सपा व बसपा में बेचैनी है.

यह भी पढ़ेंः उत्तर प्रदेश में 24 आईपीएस अफसरों का तबादला, कई जिलों के कप्तान भी हटाए गए

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेशक प्रेमशंकर मिश्रा का कहना है कि उत्तर प्रदेश में कई मुस्लिम पार्टियों का उदय हुआ है, लेकिन वे बहुत कुछ कर नहीं पाई हैं. एक सीट पर वोट प्रतिशत बढ़ना कोई बड़ी बात नहीं, क्योंकि कभी-कभी प्रत्याशी के चेहरे पर भी वोट मिल जाता है. उन्होंने बताया कि ओवैसी 2014 के बाद से सक्रिय हैं. उन्हें कोई आपेक्षित सफलता नहीं मिली है. उनके जैसे पीस पार्टी, कौमी एकता दल, उलेमा काउंसिल एक पैकेट तक ही सीमित रहे या उनमें शामिल चेहरे के प्रभाव के कारण वोट मिले. अभी तक यूपी में अल्पसंख्यक वोट सपा के साथ जाता रहा है. उनके साथ भागीदारी के लिए कोई बड़ा संकट नहीं है. इसीलिए यहां पर मुस्लिम वोटों की राजनीति करने वाली पार्टियां यहां पर सफल नहीं हो पा रही है.

मुस्लिम लीग के प्रदेश अध्यक्ष मतीन खान का कहना है कि यहां पर जिस दल की सरकार बनती है, वह अपनी जाति के लोगों को आगे बढ़ाती है. अल्पसंख्यक वोटरों की अपनी मजबूरी है, इसीलिए वे सपा, बसपा और कांग्रेस में ही सीमित रहते हैं. इसमें मजबूत लीडरशिप इसलिए नहीं उभरी, क्योंकि ज्यादा कोशिश नहीं करते हैं. अभी तक यही देखा गया है. सपा, बसपा जैसे बड़े दल के लोग भी छोटी क्षेत्रीय मुस्लिम पार्टियों में घुस जाते हैं और पार्टी को पनपने नहीं देते, क्योंकि वह सब ट्रेंड रहते हैं. वे पार्टी को तोड़ने का प्रयास करते हैं. मुस्लिम पर्टियां इन्हें रोक नहीं कर पाती हैं. लेकिन आने वाले समय में बदलाव होगा.

यह वीडियो देखेंः

Uttar Pradesh Muslim Parties
Advertisment
Advertisment
Advertisment