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कोविड से मौतों के आंकड़ों को लेकर जनता का आगरा प्रशासन पर बढ़ा आक्रोश

पारस अस्पताल प्रबंधन द्वारा ऑक्सीजन की आपूर्ति में कटौती के लिए मॉक ड्रिल से संबंधित जिला प्रशासन की एक असंवेदनशील रिपोर्ट को खारिज कर दिया गया, जिसके परिणामस्वरूप अप्रैल में 22 कोविड-19 रोगियों की कथित मौत हुई.

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Ravindra Singh
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covid death in agra

आगरा कोविड से मौतों के आंकड़े पर नाराज जनता( Photo Credit : आईएएनएस)

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आगरा के एक निजी अस्पताल में मॉक ड्रिल के कारण 22 कोविड-19 रोगियों की कथित मौत की दो सदस्यीय जांच की रिपोर्ट ने विपक्षी नेताओं और स्थानीय स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं का गुस्सा बढ़ा दिया है. पारस अस्पताल प्रबंधन द्वारा ऑक्सीजन की आपूर्ति में कटौती के लिए मॉक ड्रिल से संबंधित जिला प्रशासन की एक असंवेदनशील रिपोर्ट को खारिज कर दिया गया, जिसके परिणामस्वरूप अप्रैल में 22 कोविड-19 रोगियों की कथित मौत हुई. आगरा के जिलाधिकारी पी.एन. सिंह को ट्रोल किया जा रहा है और निशाना बनाया जा रहा है. एक वीडियो चैट के वायरल होने पर हंगामे के बाद आईएमए की स्थानीय शाखा ने जिला प्रशासन द्वारा सील किए गए पारस अस्पताल को पहले ही क्लीन चिट दे दी.

वीडियो में कथित तौर पर अस्पताल के निदेशक डॉ. अजिंक्य जैन को दिखाया गया है, जो किसी को मरीजों के लिए ऑक्सीजन की जरूरत का आकलन करने के लिए एक मॉक ड्रिल के बारे में बताया था. प्रशासन ने इसका जवाब दिया था कि उन तिथियों में 22 मौतों और ऑक्सीजन की कमी का आंकड़ा गलत था. जबकि शहर में डॉक्टरों को छोड़कर कोई भी आधिकारिक रिपोर्ट पर विश्वास नहीं कर रहा. प्रशासन का कहना है कि चिकित्सा बिरादरी की छवि खराब करने के लिए चलाया जा रहा अभियान महामारी के खिलाफ लड़ाई में मददगार नहीं होगा.

हालांकि उन तारीखों पर ऑक्सीजन की कमी के कारण मरने वाले लोगों के परिजनों की आधा दर्जन शिकायतों की जांच की जा रही है. सामान्य तौर पर मरने वालोंके आंकड़ों ने कई लोगों की भौंहें चढ़ा दी हैं. जबकि जिले में कोविड-19 से मौतों का आधिकारिक आंकड़ा लगभग 425 है, जबकि मृत्यु प्रमाणपत्र के लिए आवेदकों की संख्या और श्मशान द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़े लगभग 4,000 हैं. ग्रामीण क्षेत्र के आंकड़े अभी जुटाए जा रहे हैं.

प्रख्यात पर्यावरणविद् श्रवण कुमार सिंह के एक नाराज परिवार के सदस्य ने टिप्पणी की कि मेडिकेयर में देरी और तत्काल ऑक्सीजन की आपूर्ति न होने के आरोपों पर मानवीय रूप से जवाब देने के बजाय सरकारी तंत्र का आम तौर पर कठोर रवैया अधिक चिंताजनक है. बेशक एक महीने के लिए कीमती जीवन को बचाने के लिए आवश्यक हर चीज की कमी के साथ एक बड़ा स्वास्थ्य संकट था. जो युद्ध की कमान संभाल रहे थे, वे हारे हुए दिखे और हमेशा ऊपर से निर्देश की प्रतीक्षा करते देखे जाते थे. आज भी लगता है किसी ने कोई सबक नहीं सीखा.

Source : News Nation Bureau

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