समाजवादी पार्टी बार-बार दावा कर रही है कि पार्टी में सब कुछ ठीक है, लेकिन शुक्रवार को ज़िलाध्यक्षों के लिए बुलाई गई बैठक के बाद जिस तरह से अखिलेश ने अपने घर पर अलग बैठक की, उस से यह साफ़ हो गया है कि पार्टी में सब कुछ ठीक नहीं है।
अखिलेश की बैठक के बाद अब शिवपाल यादव नरम पड़ते नजर आ रहे हैं। सपा के जिलाध्यक्षों के साथ हुई बैठक में शिवपाल ने आगामी चुनाव के बाद अखिलेश के दोबारा मुख्यमंत्री बनने की बात दुहराते हुए कहा कि विधानसभा चुनाव में अखिलेश ही सपा के मुख्यमंत्री पद के दावेदार होंगे। उन्होंने कहा, 'मैं तो स्टाम्प पर लिख कर देने को तैयार हूं कि अगला सीएम अखिलेश ही होंगे।'
साथ ही शिवपाल ने सभी जिला पदाधिकारियों को चुनाव की तैयारियों में पूरी तरह जुट जाने और आगामी पांच नवम्बर को लखनऊ में मनाए जाने वाले सपा के रजत जयन्ती समारोह को सफल बनाने के आदेश भी दिए। शिवपाल के बाद उनके बेटे ने भी अखिलेश की दावेदारी का समर्थन किया है। शिवपाल यादव के बेटे आदित्य यादव ने भी कहा, 'अखिलेश जी हमारे युवा नेता हैं और मुख्यमंत्री पद का चेहरा भी हैं। पार्टी में कोई कलह नहीं हैं।'
अखिलेश ने पिछले दिनों अपने पिता सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव को पत्र लिखकर कहा था कि वह आगामी तीन नवम्बर से अपनी विकास रथयात्रा शुरू करेंगे। ऐसे में उनके पांच नवम्बर को होने वाले सपा के रजत जयन्ती समारोह में शिरकत की सम्भावनाओं को लेकर भ्रम की स्थिति बन गई है।
पिछले कुछ महीनो में सपा के अंदर का घटनाक्रम तेजी से बदला है। अमर सिंह की वापसी के बाद से ही पार्टी की पुरानी धारा मज़बूत हो रही थी। जून महीने में माफिया-राजनेता मुख्तार अंसारी के भाई अफजाल अंसारी की अगुवाई वाले कौमी एकता दल (कौएद) के शिवपाल की पहल पर सपा में विलय को लेकर अखिलेश की नाराजगी के बाद पार्टी में तल्खी का दौर शुरू हो गया था। कुछ दिन बाद इस विलय के रद्द होने से यह कड़वाहट और बढ़ गई थी।
शिवपाल यादव पुराने तरीके से पार्टी चलाना चाहते हैं लेकिन अखिलेश वर्तमान राजनीतिक दिशा को ध्यान में रखकर आगे बढ़ना चाहते हैं। उन्हें भरोसा है कि उनके कार्यकाल में विकास हुआ है और लोग इन बातों को ध्यान में रखकर वोट करेंगे। अपने कार्यकाल के दौरान अखिलेश के लिए सबसे बड़ी मुश्किल यह होगी कि वह अपने बेलगाम नेताओं पर क़ाबू कैसे करें।
संगठन कौशल में माहिर माने जाने वाले शिवपाल को पिछले महीने अखिलेश की जगह सपा का प्रान्तीय अध्यक्ष बनाया गया था। जिसके बाद एक इंटरव्यू के दौरान अखिलेश ने कहा कि आगामी विधानसभा चुनाव के टिकट वितरण का अधिकार उन्हें दिया जाए और वह इससे कम पर समझौता करने को तैयार नहीं है। अध्यक्ष पद पर नियुक्त होते ही शिवपाल ने अखिलेश के क़रीबी नेताओं को हटाना शुरू कर दिया।
जिसके बाद अखिलेश ने संगठन से अलग रहकर अकेले ही कैंपेन चलाने का निर्णय लिया। सोशल मीडिया पर अखिलेश द्वारा ‘नेशनल समाजवादी पार्टी’ और ‘प्रगतिशील समाजवादी पार्टी’ बनाये जाने और चुनाव आयोग से ‘मोटरसाइकिल’ का चिह्न मांगे जाने की अटकलें लगातार बढ़ रही हैं। हालांकि अब शिवपाल यादव के नरम पड़ने के साथ सपा परिवार में जारी कलह के थमने के आसार लगाए जा रहे हैं।
Source : News Nation Bureau