साल 1984 में सिख-विरोधी दंगों के दौरान हुईं हत्याओं से संबंधित महत्वपूर्ण फाइलें कानपुर में सरकारी रिकॉर्ड से गायब हैं. उत्तर प्रदेश के इस औद्योगिक नगर में 125 से ज्यादा सिखों की हत्या हुई थी. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की 31 अक्टूबर, 1984 को हत्या होने के बाद अल्पसंख्यकों की हत्या दिल्ली के बाद सबसे ज्यादा कानपुर में ही हुई थी.
साल 1984 के दंगों की फाइलों की दोबारा जांच करने के लिए राज्य सरकार द्वारा फरवरी, 2019 में गठित विशेष जांच टीम (एसआईटी) ने पाया कि कथित रूप से उस समय पुलिसकर्मियों द्वारा कथित रूप से दबा दी गईं हत्या और डकैती संबंधी कई फाइलें अब गायब हैं.
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कुछ मामलों में एसआईटी को प्राथमिकी और केस डायरियां तक नहीं मिलीं, जो यहां सिखों की हत्या मामले की जांच पर गंभीर सवाल खड़े करता है. महत्वपूर्ण दस्तावेज और केस की फाइलों के रहस्यमयपूर्ण तरीके से गायब होने के मुद्दे पर एसआईटी के चेयरमैन पूर्व पुलिस महानिदेशक अतुल ने आईएएनएस से कहा कि उन फाइलों का पता लगाने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं.
केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) में वरिष्ठ अधिकारी रह चुके उत्तर प्रदेश कैडर के पूर्व आईपीएस अधिकारी अतुल ने कहा, "हम तथ्यों का पता लगाना चाहते हैं. हम यह जानना चाहते हैं कि क्या पुलिस ने ठोस सबूत के अभाव में हत्या के मामले बंद कर दिए या उन्होंने कोर्ट में आरोपपत्र दाखिल कर दिए. हालांकि इस समय मैं विस्तार से नहीं बता सकता, क्योंकि हमें अभी तक हत्या से संबंधित कई मामलों की फाइलें नहीं मिली हैं."
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कानपुर में सिख-विरोधी दंगों के संबंध में हत्या, हत्या का प्रयास, डकैती, लूट, आगजनी, हमला और जान से मारने की धमकी के लगभग 1,250 मामले दर्ज हुए थे. आश्चर्यजनक रूप से गायब हुईं फाइलें हत्या और डकैती जैसे गंभीर अपराधों की हैं. सूत्रों ने कहा कि एसआईटी ने शुरुआत में 38 अपराधों को गंभीर माना, इनमें से 26 मामलों की जांच पुलिस ने बंद कर दी. एसआईटी ने इन मामलों को दोबारा खोलने की मांग की है, ताकि दोषी बच ना सकें.
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एसआईटी के पुलिस अधीक्षक (एसपी) बालेंदु भूषण ने जब इन फाइलों को जांचने का फैसला किया तो उन्होंने सबसे महत्वपूर्ण फाइलें गायब पाईं. एसपी ने गायब दस्तावेजों को ढूंढने के लिए प्रशासन को सतर्क कर दिया. उन्होंने ऐसे अपराधों के गवाहों से भी आगे आकर अपने बयान दर्ज कराने की अपील की.
इस बीच कानपुर के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) ने कहा कि मामला लगभग 35 साल पुराना है. उन्होंने कहा, "मैं फिलहाल कोई बयान नहीं दे सकता. हमें यह देखना होगा कि फाइलें क्या सरकारी नियम के अनुसार कई दस्तावेजों की तरह हटा दी गई हैं या किसी विशेष समय में इन्हें समाप्त कर दिया गया. फिर भी मामलों की संवेदनशीलता को देखते हुए हम इन दस्तावेजों को तलाशने में एसआईटी का पूरा सहयोग करेंगे."
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सुप्रीम कोर्ट में 2017 में दायर एक रिट याचिका पर कार्रवाई करते हुए उत्तर प्रदेश सरकार ने अतुल की अध्यक्षता में एसआईटी गठित की थी. एसआईटी के अन्य सदस्यों में सेवानिवृत्त जिला जज सुभाष चंद्र अग्रवाल, पूर्व अतिरिक्त महानिदेशक (अभियोजन) योगेश्वर कृष्ण श्रीवास्तव और एसपी बालेंदु भूषण हैं.
सरकार ने एसआईटी से उन मामलों की दोबारा जांच करने के लिए कहा है, जिनमें ट्रायल कोर्ट ने आरोपियों को निर्दोष सिद्ध कर दिया था. एसआईटी उन मामलों को भी देखेगी, जिनमें पुलिस ने क्लोजर रिपोर्ट लगा दी है.
Source : आईएएनएस