Advertisment

यूपी में बड़ी पार्टियों के मंसूबों पर पानी फेर सकते हैं छोटे दल

अपना दल एक कुर्मी केंद्रित पार्टी है और इसकी सांसद अनुप्रिया पटेल का कहना है कि वह अपने पिता स्वर्गीय सोनेलाल पटेल द्वारा शुरू किए गए कार्यों को आगे बढ़ा रही हैं.

author-image
Shailendra Kumar
एडिट
New Update
Small parties may upset the UP apple cart

यूपी में बड़ी पार्टियों के मंसूबों पर पानी फेर सकते हैं छोटे दल( Photo Credit : IANS)

Advertisment

"छोटी-छोटी चीजें कभी-कभी बड़ा असर दिखाने का माद्दा रखती हैं" - यह कहावत उत्तर प्रदेश के राजनीतिक परिदृश्य के लिए बिल्कुल फिट बैठता है. प्रदेश में फिलहाल कुछ ऐसी पार्टियां हैं, जो इस समय छोटी और महत्वहीन प्रतीत होती हैं, लेकिन वे बड़ी पार्टियों के मंसूबों पर पानी फेरने की क्षमता रखती हैं. वे भले ही अपने लिए सीटें नहीं जीत सकती हैं, मगर दूसरी पार्टियों के हाथों से कुछ सीटें खिसकाने में सक्षम हो सकती हैं. आईएएनएस-सी वोटर का ताजा सर्वे फिलहाल अनुमानित सीट बंटवारे में वृद्धि दर्शाता है. इन दलों को "अन्य" के रूप में वर्गीकृत किया गया है. इनकी संख्या 10 से बढ़कर 16 हो गई है. उत्तर प्रदेश की ये छोटी पार्टियां मुख्य रूप से जाति- या वर्ग-केंद्रित हैं और पिछले कुछ वर्षों में जमीनी स्तर पर यह मजबूत भी हुई हैं.

अपना दल

मिसाल के तौर पर एक दशक पहले तक यह राजनीतिक दल राज्य की राजनीति में लगभग अस्तित्वहीन ताकत था. पार्टी ने 2012 में राज्य विधानसभा में एक सीट जीतकर शुरुआत की और फिर 2014 में दो सीटों पर चुनाव लड़ा और दोनों में जीत हासिल की. इसने 2019 के लोकसभा चुनावों में अपने प्रदर्शन को दोहराया, जबकि 2017 के विधानसभा चुनावों में इसने नौ सीटें जीतीं. विधानसभा में सीटों की संख्या की बात करें तो अपना दल आज भी कांग्रेस से कहीं ज्यादा बड़ी राजनीतिक ताकत है.

यह भी पढ़ें : यूपी के सबसे लोकप्रिय सीएम बने योगी, मायावती और अखिलेश को छोड़ा पीछे

अपना दल एक कुर्मी केंद्रित पार्टी है और इसकी सांसद अनुप्रिया पटेल का कहना है कि वह अपने पिता स्वर्गीय सोनेलाल पटेल द्वारा शुरू किए गए कार्यों को आगे बढ़ा रही हैं. उन्होंने कहा, "मैं बस कुर्मी समुदाय को मजबूत करने की कोशिश कर रही हूं ताकि वे अपने बल पर उभर सकें. मेरे पिता भी यह चाहते थे."

ओबीसी जातियों के बीच शक्तिशाली यादव समुदाय के बाद कुर्मी ही हैं. यूपी के अधिकांश क्षेत्रों में इनकी आबादी दो से तीन प्रतिशत तक है. वर्तमान में अपना दल भाजपा का सहयोगी है, लेकिन संकेत है कि पार्टी गठबंधन से बाहर हो सकती है. यह पहले ही घोषणा कर चुका है कि यह आगामी पंचायत चुनाव अपने दम पर लड़ेगा.

यह भी पढ़ें : PM मेक इन इंडिया की बात करते हैं, लेकिन फोन, शर्ट सब मेड इन चाइना: राहुल गांधी

अपना दल के एक विधायक ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि यदि उनकी पार्टी 2022 के विधानसभा चुनावों से पहले भाजपा से अलग हो गई, तो भाजपा को काफी नुकसान होगा. उन्होंने कहा, "यहां तक कि वोटों में दो फीसदी बदलाव से कई सीटों का नुकसान होगा." उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में मुख्य रूप से कृषक समुदाय में पार्टी का समर्थन आधार है.

आम आदमी पार्टी

उत्तर प्रदेश में राजनीतिक किस्मत बदल सकने वाली एक और 'छोटी' पार्टी आम आदमी पार्टी (आप) है. आप 2022 में पहली बार राज्य की चुनावी राजनीति में अपनी शुरुआत करेगी. आप सांसद संजय सिंह ने कहा, "निश्चित तौर पर यहां राजनीतिक दृष्टि से एक खालीपन है क्योंकि सभी पार्टियां या तो धर्म या जाति पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं. कोई भी पार्टी महत्वपूर्ण मुद्दों के बारे में बात नहीं कर रही है. हमारे पास दिल्ली का शासन मॉडल है और हम इसे लोगों को दिखाएंगे."

यह भी पढ़ें : दमोह से प्रत्याशी पर कांग्रेस दुविधा में, कमलनाथ की रैली के बाद ऐलान संभव

सिंह पिछले साल अगस्त से बड़े पैमाने पर उत्तर प्रदेश का दौरा कर रहे हैं, जमीनी स्तर पर अपनी पार्टी के संगठनात्मक ढांचे का निर्माण कर रहे हैं. 2022 के चुनावों के लिए आप की रणनीति सत्तारूढ़ भाजपा के वोटबैंक में सेंध लगाने की है. आप मध्यम वर्ग पर ध्यान केंद्रित करेगी जो भाजपा ब्रांड की राजनीति में अलग-थलग पड़ गया है. पार्टी धीरे-धीरे कांग्रेस को दरकिनार कर रही है.

सांसद ने कहा, "हम स्कूल फीस, बिजली बिल और स्वास्थ्य सुविधाओं के बारे में बात कर रहे हैं. मध्यम वर्ग इन क्षेत्रों में शासन की कमी का खामियाजा भुगत रहा है. हम उनके सामने अपना दिल्ली मॉडल रखेंगे, ताकि यह दिखाया जा सके कि सरकार चाहे तो कुछ भी असंभव नहीं है."

राजनीतिक विश्लेषक एच.आई. सिद्दीकी ने कहा, आप पार्टी खुद के लिए सीटें जीत सकती है अथवा नहीं जीत सकती है, लेकिन यह निश्चित रूप से बड़ी पार्टियों का खेल बिगाड़ने की भूमिका निभाएगी.

उन्होंने कहा, "उनके नेता जमीनी स्तर पर काम कर रहे हैं - संकट में फंसे परिवारों तक वे प्रत्यक्ष रूप से पहुंच रहे हैं. इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि आप पार्टी में कोई भी मंदिर, जाति, मुसलमानों आदि के बारे में बात नहीं करता है. वे लोगों के लिए रोटी, रोजगार और अच्छी शिक्षा की बात करते हैं, जो लोगों को आकर्षित कर रहा है. अन्य बड़ी पार्टियां केवल सोशल मीडिया तक खुद को सीमित कर रही हैं."

भीम आर्मी

उत्तर प्रदेश में अगले विधानसभा चुनाव में जिस 'छोटी' पार्टी को संभावित गेम चेंजर माना जा रहा है, वह पार्टी भीम आर्मी है. भीम आर्मी की कहानी पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले के एक स्थानीय नेता चंद्रशेखर आजाद के साथ शुरू होती है जो दलित सशक्तीकरण का चेहरा बने. साथ ही वह मोदी सरकार के खिलाफ विरोध का बिगुल फूंकने वाले एक कद्दावर नेता के रूप में भी उभर कर सामने आए, विशेष रूप से मायावती और उनकी बसपा के बाद प्रदेश में एक रिक्त स्थान बनने के परिदृश्य में.

दलित नेता चंद्रशेखर उस समय सुर्खियों में आए जब 2017 में सहारनपुर में जातिगत दंगे हुए. इसके बाद वह एक अत्यधिक लोकप्रिय युवा दलित नेता के रूप में उभरे. चन्द्रशेखर दलितों के लिए बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के स्थान पर एक आदर्श नेता साबित हो रहे हैं. वैसे बसपा अब तक दलित वोटों का एकमात्र संरक्षक रही है. यही वह वजह थी जिसने 2019 में 10 लोकसभा सीटों पर बसपा को जीत दिलाई.

सी-वोटर सर्वेक्षण में बसपा को दोगुनी सीट मिलने का अनुमान जताया गया है.

बसपा के एक विधायक ने कहा, "हमारी नेता (मायावती) के साथ समस्या यह है कि वह अपने आवास से बाहर नहीं जाती हैं. चाहे वह हाथरस की घटना हो या उन्नाव की घटना. उन्होंने दलित पीड़ितों के परिवारों से मिलने की जहमत भी नहीं उठाई, जबकि चंद्रशेखर हमेशा उनके पास पहुंचे."

लगभग दो दर्जन मामलों का सामना कर रहे चंद्रशेखर दलित युवाओं को आकर्षित करने के प्रयास में जुटे हुए हैं. उन्हें उम्मीद है कि बसपा का कुछ वोट उनकी झोली में आ सकता है. कांग्रेस जैसी पार्टियां उनको अपने पाले में लेने की भरसक कोशिश कर रही हैं, लेकिन इसकी अब तक कोई वजह उन्होंने नहीं बताई है.

सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी

उत्तर प्रदेश में बड़ा दावा करने वाली एक और 'छोटी' पार्टी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी है, जिसका नेतृत्व पूर्व मंत्री ओम प्रकाश राजभर कर रहे हैं. राजभर की पार्टी भाजपा की एक पूर्व सहयोगी पार्टी रही है. उन्होंने अब ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के साथ गठबंधन कर लिया है और समाजवादी पार्टी और शिवपाल यादव के नेतृत्व वाली प्रगतिशील समाजवादी पार्टी लोहिया के साथ गठबंधन की योजना बना रहे हैं.

उन्होंने कहा, "मैं भाजपा को दिखाऊंगा कि राजभर समुदाय को अपमानित करने का क्या मतलब है. पूर्वांचल में हमारी मजबूत उपस्थिति है - कुछ निर्वाचन क्षेत्रों में लगभग 18 प्रतिशत - और हम 2022 में अपनी ताकत दिखाएंगे." ये पार्टियां अपने लिए सीटें जीत सकती हैं अथवा नहीं भी जीत सकती हैं. लेकिन, उनके कारण दूसरी पार्टियों को निस्संदेह कुछ सीटों का नुकसान हो सकता है.

 

HIGHLIGHTS

  • पूर्वांचल में मुख्य रूप से कृषक समुदाय में पार्टी का समर्थन आधार है.
  • उत्तर प्रदेश की ये छोटी पार्टियां मुख्य रूप से जाति- या वर्ग-केंद्रित हैं
  • उत्तर प्रदेश में राजनीतिक किस्मत बदल सकने वाली है
Apna Dal Bheem Army aap aadmi party अपना दल Suheldev भीम आर्मी
Advertisment
Advertisment