सपा और बसपा सीट बंटवारे में कोई एक सूत्र लागू नहीं हुआ है. हालांकि पहली प्राथमिकता 2014 के लोकसभा चुनाव के रिजल्ट को ही दी गई है. इसके अलावा पुराने नतीजों का भी अध्ययन किया गया है. उसके बाद यह तय किया गया है कि जो पार्टी जहां लगातार भारी रही है, उसे वहां की सीट दी गई है. जातीय समीकरणों और उपचुनाव नतीजों को भी ध्यान में रखा गया है. पिछले लोकसभा चुनाव में बसपा 34 सीटों पर दूसरे स्थान पर रही थी. वहीं सपा 31 सीटों पर दूसरे और पांच सीटों पर पहले नंबर की पार्टी बनी थी. दो उप चुनाव में भी सपा जीती. इस लिहाज से सपा 38 सीटों पर भारी थी, लेकिन सीट बंटवारे में उसे एक सीट कम मिली है तो बीएसपी को पिछले प्रदर्शन के मुकाबले चार सीट ज्यादा.
कौन सी सीट किसको जाएगी, इसका फैसला इस आधार पर किया गया है कि कहां किसका प्रदर्शन लगातार अच्छा रहा है. यही वजह है कि पिछले चुनाव नतीजों में 13 सीटें ऐसी हैं जहां बीएसपी पहले या दूसरे स्थान पर नहीं थी, लेकिन उसे वह सीटें मिली हैं. ये सीटें हैं सहारनपुर, बिजनौर, नगीना, अमरोहा, मेरठ, गौतमबुद्ध नगर, आंवला, फर्रुखाबाद, हमीरपुर, कैसरगंज, श्रावस्ती, बस्ती, लालगंज.
सपा को 15 ऐसी सीटें मिली हैं जहां वह पहले या दूसरे स्थान पर नहीं थी. ये सीटें हैं कैराना, गाजियाबाद, हाथरस, खीरी, हरदोई, लखनऊ, कानपुर, बांदा, फूलपुर, फैजाबाद, कौशांबी, महाराजगंज, चंदौली, मिर्जापुर, राबर्ट्सगंज.
पिछले चुनाव में खराब प्रदर्शन के बावजूद सीटें दिए जाने की कई वजहें हैं. फूलपुर, गोरखपुर में उपचुनाव में सपा जीत चुकी है. वहीं, लखनऊ और कानपुर जैसे शहर बीजेपी के गढ़ रह हैं लेकिन सपा का प्रदर्शन बीएसपी से हमेशा ही अच्छा रहा है. कानपुर से लेकर फिरोजाबाद और एटा तक ब्रज क्षेत्र सपा का गढ़ रहा है. इसी तरह बिजनौर, नगीना, अमरोहा, मेरठ, गौतमबुद्ध नगर सहित पश्चिमी यूपी में बीएसपी पिछली बार अच्छा नहीं कर पाई, लेकिन ये क्षेत्र पहले बीएसपी का गढ़ रहे हैं. पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनाव के बाद हुए नगर निकाय चुनावों में बीएसपी ने अच्छा प्रदर्शन किया. इस बार आरएलडी भी साथ है. इसके अलावा जातीय समीकरण भी ध्यान में रखे गए हैं. जहां दलित और मुसलमान ज्यादा हैं, वहां बीएसपी को और ओबीसी और मुसलमान बहुल सीट पर सपा को प्राथमिकता दी गई है.
Source : News Nation Bureau