मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राजा सुहेलदेव की जयंती के मौके पर उनके भव्य स्मारक का उत्तर प्रदेश के बहराइच में शिलान्यास किया. इस मौके पर पीएम मोदी के साथ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और राजभर समाज के तमाम नेतागण मौजूद थे. सुहेलदेव की जयंती के अवसर पर प्रदेश में कई कार्यक्रम को भी आयोजित किया गया. बताया जा रहा है कि इस कदम का उत्तरप्रदेश की राजनीति में इस कदम का दीर्घकालिक असर पड़ेगा. बताया जा रहा है कि महाराजा सुहेलदेव की जयंती को विशिष्ट आयोजन बनाकर बीजेपी ओमप्रकाश राजभर के किले को भेदने के फिराक में लगी है.
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पूरे प्रदेश में जयंती को भव्य तरीके से मनाए जाने के पीछे पिछड़ा वोट बैंक को साधने की कवायद हो रही है. बीजेपी राजभर के वोटों को अपने पाले में लाने का प्रयास लगातार कर रही है. वहीं ओम प्रकाश राजभर ने राजा सुहेलदेव की जयंती के मौके पर पीएम मोदी और सीएम योगी पर जमकर हमला किया है. अपने फेसबुक अकाउंंट पर राजभर ने लिखा, 'विश्व के सबसे नंबर 1 झूठा प्रधानमंत्री मोदी जी और देश के नंबर 2 झूठा मुख्यमंत्री योगी जी जो महाराजा सुहेलदेव राजभर का पूरा नाम तक नहीं ले सका वह महाराजा सुहेलदेव राजभर के वंशजो को हिस्सेदारी,आरक्षण, शिक्षा,नौकरी बराबरी का अधिकार क्या दे पाएगा.'
एक अनुमान के अनुसार पूर्वाचल की दो दर्जन लोकसभा सीटों पर राजभर वोट 50 हजार से ढाई लाख तक हैं. घोसी, बलिया, चंदौली, सलेमपुर, गाजीपुर, देवरिया, आजमगढ़, लालगंज, अंबेडकरनगर, मछलीशहर, जौनपुर, वाराणसी, मिर्जापुर, भदोही जैसे जिलों में राजभर काफी प्रभावी हैं और निषाद समुदाय की तरह कई सीटों पर ये जीत-हार तय करते हैं. इसी को देखते हुए बीजेपी इस वोट बैंक को अपनी तरफ लाने के प्रयास में लगातार लगी हुई है.
पूर्वाचल में राजभर और पिछड़ों में मजबूत पैठ रखने वाले ओमप्रकाश राजभर असदुद्दीन ओवैसी के अलावा आठ छोटे दलों के साथ गठबंधन कर बीजेपी के वोटों की गणित बिगाड़ सकते हैं. इसको देखते हुए अब बीजेपी ने महाराजा सुहेलदेव के बहाने पूर्वाचल में राजभर वोटों को साधने में जुट गई है.
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गौरतलब है कि 1981 में कांशीराम के साथ राजनीति की शुरूआत करने वाले ओम प्रकाश राजभर ने 2001 में बसपा नेता मायावती से विवाद के बाद पार्टी छोड़ कर अपनी पार्टी का गठन किया. उनकी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी 2004 से यूपी और बिहार में कई जगह चुनाव लड़ रही है, लेकिन 2017 से पहले उसके उम्मीदवारों की भूमिका खेल बिगाड़ने वालों के तौर पर ही रही, जीतने वालों के रूप में नहीं. 2017 में विधान सभा में बीजेपी की प्रचंड जीत के पीछे, खासकर पूर्वाचल में, इस समुदाय और इस पार्टी की अहम भूमिका थी. ओमप्रकाश बीजेपी से अलग होंने के बाद लगातार छोटे दलों से समझौता करके 2022 में सत्ता काबिज होंने के प्रयास में लगे हैं. पंचायत चुनाव के लिए भी छोटे दलों का मोर्चा बनाकर बीजेपी को चुनौती देने का एलान किया है.
बीजेपी भी 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव को सेमीफाइनल मान रही है. इसलिए पूरी ताकत से जुटी है. आराक्षित वर्ग के वोटरों पर अपनी पैठ बना रही है. इसलिए पंचायत चुनाव का आरक्षण भी उन सभी सीट को किया गया है, जो पहले कभी आरक्षित नहीं रही है. राजभर समाज के वोटों को लेकर बीजेपी अतरिक्त सक्रिय है.
कौन थे राजा सुहेलदेव?
इतिहास के जानकारों ने बताया कि वाकया करीब 1000 साल पुराना है. इतिहास को यू टर्न देने वाली यह घटना बहराइच में हुई थी. महाराजा सुहेलदेव 11वीं सदी में श्रावस्ती के शासक थे. सुहेलदेव ने महमूद गजनवी के भांजे सालार मसूद को मारा था. राजभर और पासी जाति के लोग उन्हें अपना वंशज मानते हैं. जिनका पूर्वांचल के कई जिलों में खासा प्रभाव है. आपको बता दें कि 15 जून 1033 को श्रावस्ती के राजा सुहेलदेव और सैयद सालार मसूद के बीच बहराइच के चित्तौरा झील के तट पर युद्ध हुआ था. इस युद्ध में महाराजा सुहेलदेव की सेना ने सालार मसूद की सेना को गाजर-मूली की तरह काट डाला. राजा सुहेलदेव की तलवार के एक ही वार ने मसूद का काम भी तमाम कर दिया. युद्ध की भयंकरता का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि इसमें मसूद की पूरी सेना का सफाया हो गया. एक पराक्रमी राजा होने के साथ सुहेलदेव संतों को बेहद सम्मान देते थे. वह गोरक्षक और हिंदुत्व के भी रक्षक थे.
Source : News Nation Bureau